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This Article is From Apr 10, 2018

सरकार ने भी माना देश में बढ़े दलितों पर अत्याचार के मामले, ये है आंकड़ा

हालांकि गृह मंत्रालय की तरफ से लोक सभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक  2015 से 2016 के बीच तीन अहम राज्यों में दलितों के खिलाफ अपराध में गिरावट दर्ज हुई है.

सरकार ने भी माना देश में बढ़े दलितों पर अत्याचार के मामले, ये है आंकड़ा
सरकार ने लोकसभा में दिए हैं आंकड़े
नई दिल्ली: एससी-एसटी ऐक्ट में ढिलाई के बाद चले हंगामे के बीच सरकार ख़ुद मानती है कि दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं. वहीं बीजेपी के दलित सांसद भी इस मुद्दे पर सरकार से नाराजगी जता रहे हैं. जिनमें उदित राज, सावित्री बाई फूले, अशोक कुमार दोहरे, छोटे लाल और यशवंत सिंह शामिल हैं.  बीजेपी के इन पांच सांसदों ने बीते दिनों दलितों को लेकर अपनी ही सरकार के रवैये पर सवाल खड़े किए. इसकी ठोस वजह भी है. उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं. यह बात इस साल 6 फरवरी को गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने लोकसभा में दिये लिखित जवाब में कहा है कि यूपी में  साल 2015 में दलितों से अपराध के 8357 मामले दर्ज हुए जबकि साल 2016 में 10426 (+24.75% बढ़ोत्तरी) दर्ज हुए.

दलितों पर अत्यचार बढ़े, बीजेपी के दलित सांसद खुलकर जता रहे असंतोष

हालांकि गृह मंत्रालय की तरफ से लोक सभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक  2015 से 2016 के बीच तीन अहम राज्यों में दलितों के खिलाफ अपराध में गिरावट दर्ज हुई है. जिनमें बिहार, राजस्थान और महाराष्ट्र शामिल हैं. अगर इन राज्यों के आंकड़ों की बात करें तो ये कुछ इस तरह हैं.

बिहार : साल 2015 में 6367 मामले, साल 2016-5701 मामले (-10.46%)
राजस्थान : साल 2015 में 5911 मामले, साल 2016 में 5134 मामले (-13.44%)
महाराष्ट्र : साल 2015 में 1804 मामले, साल 2016 में 1750 मामले (- 2.99%)


वहीं इस मामले में एससी-एसटी आयोग के पूर्व अध्यक्ष का दावा है, 'हमारे कार्यकाल में दलितों के खिलाफ अपराध सही तरीके से रिकार्ड किया जाने लगा है. SC कमिशन की तरफ से सभी राज्यों से कहा गया है कि वो दलितों के खिलाफ अपराध की घटनाओं को रजिस्टर करें.' 
 
वीडियो : दलित बीजेपी सांसद नाराज

आपको बता दें कि 2016 में दलित समुदाय के खिलाफ अपराध के 40,801 मामले दर्ज किए गए. दलितों का आक्रोश सड़कों पर साफ दिखता रहा.कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलितों के हमदर्द बनने का दावा करते हैं, लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि अपने समाज के सबसे पिछड़े समुदाय को लेकर हमारे लोकतंत्र की चुनौतियां अभी बाक़ी हैं.

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