सुरंग से बाहर आने के बाद मजदूर
बिलासपुर:
नौ दिनों तक सुरंग में फंसे रहने के बाद दो मजदूरों की जिंदगी तो बड़ी मशक्कत के बाद बचा ली गई, लेकिन अब उन्होंने बताया है कि कैसे जिंदा रहने के लिए उन्हें कागज खाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
जिंदगी की आस छोड़ चुके एक मजदूर मनीराम जिन्हें बचाया गया ने आपबीती बताते हुए कहा कि मशीनों में पड़े कागज को खाकर उन्होंने काम चलाया और पीने के पानी के स्थान पर गंदे पाइप से रिस रहे पानी को पिया।
मनीराम की यादों में हादसा
मनीराम ने हादसे के उन पलों को याद करते हुए कहा, कि जब करीब 40 मीटर की गहराई में काम चल रहा था तभी अचानक चारों तरह मलबा आ गया और हमें लगा की अब सब कुछ समाप्त हो गया।
उल्लेखनीय है कि मनीराम और सतीश तोमर, तमाम अन्य मजदूरों के साथ 1200 फीट की बन रही सुरंग में काम कर रहे थे जब यह हादसा हुआ। यह सुरंग एक हाईवे प्रोजेक्ट का हिस्सा है।
तीन दिन तक फंसा रहा मिट्टी और पत्थरों में
सतीश ने बताया कि तीन दिनों तक तो वह पत्थरों और मट्टी के बीच फंसा रहा और बहुत मुश्किल से बाहर निकला। उल्लेखनीय है कि हादसे के चार दिन बाद कुछ लोगों को ऊपर से कुछ हरकतों का अंदेशा हुआ।
सतीश ने बताया कि मुझे फिर खुदाई की आवाजें सुनाईं दी। फिर एक बड़ा गड्ढ़ा खुदा और एक बड़ा सा पिंजरा नीचे आया। इस पिंजरे में एक कैमरा था। तब जाकर हमें पता चला कि हमें बचाने की कोशिशें हो रही हैं। इसके बाद शरीर में कुछ हिम्मत आई। इसी में कुछ खाने का सामान हम तक पहुंचा, पानी भी पहुंचाया गया। पहला सवाल जो सतीश ने बचाव कर्मियों से पूछा वह था, अभी दिन है या रात?
हीरो जैसे होने का एहसास
जब सतीश और मनीराम बाहर आए, तब उन्हें ऐसा लगा जैसे वे हीरो हैं और उन्होंने जीत का चिह्न दर्शाया। बाहर आने के बाद एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर आपमें हिम्मत हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं। करीब 50 बचावकर्मियों ने बारिश और अन्य दिक्कतों के बीच एक अन्य सुरंग खोदकर इन फंसे हुए मजदूरों को बाहर निकाला था।
जिंदगी की आस छोड़ चुके एक मजदूर मनीराम जिन्हें बचाया गया ने आपबीती बताते हुए कहा कि मशीनों में पड़े कागज को खाकर उन्होंने काम चलाया और पीने के पानी के स्थान पर गंदे पाइप से रिस रहे पानी को पिया।
मनीराम की यादों में हादसा
मनीराम ने हादसे के उन पलों को याद करते हुए कहा, कि जब करीब 40 मीटर की गहराई में काम चल रहा था तभी अचानक चारों तरह मलबा आ गया और हमें लगा की अब सब कुछ समाप्त हो गया।
उल्लेखनीय है कि मनीराम और सतीश तोमर, तमाम अन्य मजदूरों के साथ 1200 फीट की बन रही सुरंग में काम कर रहे थे जब यह हादसा हुआ। यह सुरंग एक हाईवे प्रोजेक्ट का हिस्सा है।
तीन दिन तक फंसा रहा मिट्टी और पत्थरों में
सतीश ने बताया कि तीन दिनों तक तो वह पत्थरों और मट्टी के बीच फंसा रहा और बहुत मुश्किल से बाहर निकला। उल्लेखनीय है कि हादसे के चार दिन बाद कुछ लोगों को ऊपर से कुछ हरकतों का अंदेशा हुआ।
सतीश ने बताया कि मुझे फिर खुदाई की आवाजें सुनाईं दी। फिर एक बड़ा गड्ढ़ा खुदा और एक बड़ा सा पिंजरा नीचे आया। इस पिंजरे में एक कैमरा था। तब जाकर हमें पता चला कि हमें बचाने की कोशिशें हो रही हैं। इसके बाद शरीर में कुछ हिम्मत आई। इसी में कुछ खाने का सामान हम तक पहुंचा, पानी भी पहुंचाया गया। पहला सवाल जो सतीश ने बचाव कर्मियों से पूछा वह था, अभी दिन है या रात?
हीरो जैसे होने का एहसास
जब सतीश और मनीराम बाहर आए, तब उन्हें ऐसा लगा जैसे वे हीरो हैं और उन्होंने जीत का चिह्न दर्शाया। बाहर आने के बाद एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर आपमें हिम्मत हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं। करीब 50 बचावकर्मियों ने बारिश और अन्य दिक्कतों के बीच एक अन्य सुरंग खोदकर इन फंसे हुए मजदूरों को बाहर निकाला था।
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