
फाइल फोटो
नई दिल्ली:
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों की बुधवार को दिल्ली में शुरू हुई पहली तीन दिवसीय समन्वय बैठक में संघ, सरकार और भाजपा के वरिष्ठ लोगों ने विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की। बताया जा रहा है कि इस बैठक में सरकार के कई मंत्रियों ने अपने-अपने मंत्रालयों के कामकाज का ब्योरा भी रखा। संघ ने अपनी चिंताओं से सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों को भी अवगत कराया।
बताया जाता है कि बैठक में जंतर मंतर पर वन रैंक, वन पेंशन की मांग को लेकर पूर्व सैनिकों के आंदोलन का मुद्दा भी उठा और संघ के पदाधिकारियों का मानना है कि पूर्व सैनिकों के आंदोलन के ज्यादा लम्बा चलने से सरकार की छवि प्रभावित हो सकती है और उसे चाहिए जितना जल्दी हो इसका समाधान किया जाना चाहिए।
भाजपा महासचिव राम माधव ने हालांकि कहा कि बैठक के दौरान कुछ समसामयिक विषय जरूर उठे, लेकिन यह विषय नहीं आया। उन्होंने कहा कि यह नीतिगत मुद्दा है जिस पर सरकार आगे बढ़ रही है।
बैठक में अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, मनोहर पर्रिकर, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बैठक के अंतिम दिन इसमें हिस्सा लेने की संभावना है।
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत की अध्यक्षता में हो रही इस समन्वय बैठक में सरकार के काम काज के बारे में चर्चा होने की खबरों पर सूत्रों ने कहा कि यह सरकार के बहीखाते की बैठक नहीं है बल्कि इसमें संघ से जुड़े विभिन्न संगठन मसलन सेवा भारती, विद्या भारती, वनवासी कल्याण, विश्व हिन्दू परिषद, विद्यार्थी परिषद आदि ने साल भर में क्या किया और आगे क्या करेंगे, उस पर प्रस्तुति दी जाती है।
सूत्र ने बताया कि इस बार बैठक ने थोड़ा अलग स्वरूप जरूर लिया है क्योंकि समाज में बहुत सारी घटनाएं घट रही है। देश भर में साल भर घूम-घूम कर जनता के सोच का जायजा लेने वाले संघ के अखिल भारतीय पदाधिकारियों से इनके बारे में व्यापक इनपुट मिले हैं।
ये पदाधिकारी समाज के अलग अलग लोगों से मिलने, समाज में क्या चल रहा है, लोगों के मन में क्या है, इसके बारे में अनुभव प्राप्त करते हैं। संघ के सूत्रों ने कहा कि समाज में वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) पर पूर्व सैनिकों की मांग, गुजरात में पाटीदार समुदाय का आरक्षण आंदोलन, जनगणना के आंकड़े, श्रम सुधार, संगठन विस्तार, शिक्षा नीति जैसे विषयों पर बैठक में विचारों के आदान प्रदान हो रहे हैं।
उनके अनुसार संघ के प्रमुख प्रचारक देश के विभिन्न क्षेत्रों के ताजा भ्रमण के दौरान जो देखते हैं, उससे जो आकलन निकालते हैं, बैठक में उस बारे में नोट्स साझा किए जाते हैं।
संघ की समन्वय बैठक में 93 मुख्य पदाधिकारी और 15 अनुषंगी संगठन ‘विचारों एवं नोट्स का आदान-प्रदान कर रहे हैं जो अर्थव्यवस्था, कृषि और शिक्षा समेत विविध विषयों से जुड़े हैं। बैठक के दौरान तीन दिनों में शीर्ष केंद्रीय मंत्रियों एवं भाजपा के प्रमुख नेता हिस्सा ले रहे हैं। आरएसएस का कहना है कि यह बैठक सरकार के कामकाज की समीक्षा करने के उद्देश्य ने नहीं बुलाई गई है बल्कि उसके कैलेंडर कार्यक्रम का हिस्सा है। ऐसी बैठक हर साल सितंबर और जनवरी में होती है।
बैठक के दौरान सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी, सहसरकार्यवाह कृष्ण गोपाल समेत संघ के विभिन्न संगठनों से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारी देश और विदेश में अपने अपने भ्रमणों के दौरान हुए अनुभव साझा कर रहे हैं।
आरएसएस की समन्वय बैठक ऐसे समय में हो रही है जब विवादित भूमि विधेयक पर विपक्ष और अपने कुछ सहयोगी दलों के दबाव में सरकार पीछे हटने को मजबूर हुई है और बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि तीन दिन की समन्वय बैठक में चार क्षेत्रों सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और शिक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा होगी। अलग-अलग सत्रों के दौरान केंद्रीय मंत्री बैठक में मौजूद रहेंगे।
इस बार बैठक में शामिल होने वालों की संख्या लगभग दोगुनी है।
बताया जाता है कि बैठक में जंतर मंतर पर वन रैंक, वन पेंशन की मांग को लेकर पूर्व सैनिकों के आंदोलन का मुद्दा भी उठा और संघ के पदाधिकारियों का मानना है कि पूर्व सैनिकों के आंदोलन के ज्यादा लम्बा चलने से सरकार की छवि प्रभावित हो सकती है और उसे चाहिए जितना जल्दी हो इसका समाधान किया जाना चाहिए।
भाजपा महासचिव राम माधव ने हालांकि कहा कि बैठक के दौरान कुछ समसामयिक विषय जरूर उठे, लेकिन यह विषय नहीं आया। उन्होंने कहा कि यह नीतिगत मुद्दा है जिस पर सरकार आगे बढ़ रही है।
बैठक में अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, मनोहर पर्रिकर, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बैठक के अंतिम दिन इसमें हिस्सा लेने की संभावना है।
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत की अध्यक्षता में हो रही इस समन्वय बैठक में सरकार के काम काज के बारे में चर्चा होने की खबरों पर सूत्रों ने कहा कि यह सरकार के बहीखाते की बैठक नहीं है बल्कि इसमें संघ से जुड़े विभिन्न संगठन मसलन सेवा भारती, विद्या भारती, वनवासी कल्याण, विश्व हिन्दू परिषद, विद्यार्थी परिषद आदि ने साल भर में क्या किया और आगे क्या करेंगे, उस पर प्रस्तुति दी जाती है।
सूत्र ने बताया कि इस बार बैठक ने थोड़ा अलग स्वरूप जरूर लिया है क्योंकि समाज में बहुत सारी घटनाएं घट रही है। देश भर में साल भर घूम-घूम कर जनता के सोच का जायजा लेने वाले संघ के अखिल भारतीय पदाधिकारियों से इनके बारे में व्यापक इनपुट मिले हैं।
ये पदाधिकारी समाज के अलग अलग लोगों से मिलने, समाज में क्या चल रहा है, लोगों के मन में क्या है, इसके बारे में अनुभव प्राप्त करते हैं। संघ के सूत्रों ने कहा कि समाज में वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) पर पूर्व सैनिकों की मांग, गुजरात में पाटीदार समुदाय का आरक्षण आंदोलन, जनगणना के आंकड़े, श्रम सुधार, संगठन विस्तार, शिक्षा नीति जैसे विषयों पर बैठक में विचारों के आदान प्रदान हो रहे हैं।
उनके अनुसार संघ के प्रमुख प्रचारक देश के विभिन्न क्षेत्रों के ताजा भ्रमण के दौरान जो देखते हैं, उससे जो आकलन निकालते हैं, बैठक में उस बारे में नोट्स साझा किए जाते हैं।
संघ की समन्वय बैठक में 93 मुख्य पदाधिकारी और 15 अनुषंगी संगठन ‘विचारों एवं नोट्स का आदान-प्रदान कर रहे हैं जो अर्थव्यवस्था, कृषि और शिक्षा समेत विविध विषयों से जुड़े हैं। बैठक के दौरान तीन दिनों में शीर्ष केंद्रीय मंत्रियों एवं भाजपा के प्रमुख नेता हिस्सा ले रहे हैं। आरएसएस का कहना है कि यह बैठक सरकार के कामकाज की समीक्षा करने के उद्देश्य ने नहीं बुलाई गई है बल्कि उसके कैलेंडर कार्यक्रम का हिस्सा है। ऐसी बैठक हर साल सितंबर और जनवरी में होती है।
बैठक के दौरान सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी, सहसरकार्यवाह कृष्ण गोपाल समेत संघ के विभिन्न संगठनों से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारी देश और विदेश में अपने अपने भ्रमणों के दौरान हुए अनुभव साझा कर रहे हैं।
आरएसएस की समन्वय बैठक ऐसे समय में हो रही है जब विवादित भूमि विधेयक पर विपक्ष और अपने कुछ सहयोगी दलों के दबाव में सरकार पीछे हटने को मजबूर हुई है और बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि तीन दिन की समन्वय बैठक में चार क्षेत्रों सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और शिक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा होगी। अलग-अलग सत्रों के दौरान केंद्रीय मंत्री बैठक में मौजूद रहेंगे।
इस बार बैठक में शामिल होने वालों की संख्या लगभग दोगुनी है।
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