पुल के निर्माण में जुटे सैनिक
नई दिल्ली:
नई दिल्ली में युमना नदी के किनारे होने वाले आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम में सेना के इस्तेमाल को लेकर विवाद शुरू हो गया है। यहां 11 मार्च से लेकर 13 मार्च तक होने वाले विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के लिए सेना यमुना नदी पर तैरने वाला पुल बना रही है। अब तक सेना एक पुल बना चुकी है और दूसरा बना रही है। संभावना यह है कि वह तीसरा पुल भी बनाएगी।
रक्षा मंत्रालय के आदेश पर पुल निर्माण
सेना का तर्क है कि वह यह काम रक्षा मंत्रालय के आदेश पर कर रही है। दबे स्वर में सेना यह भी कह रही है कि जब वह कुंभ और कॉमनवेल्थ गेम्स में पुल बना सकती है तो फिर यहां क्यों नहीं? ध्यान रहे कि कुंभ और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे कार्यक्रम सीधे सरकार करवाती है जबकि यह कार्यक्रम आर्ट ऑफ लिविंग नाम की राजिस्टर्ड संस्था करा रही है।
सेना की गरिमा को दांव पर लगाना गलत
सेना के करीब 120 जवान दिन रात लगे हैं। पचासों ट्रक भी इसी काम में लगे हुए हैं। लेकिन लाख टके का सवाल है कि यह महोत्सव आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से आयोजित निजी कार्यक्रम है और इसमें सेना का इस्तेमाल कहां तक जायज है। कहने को इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जाएंगे लेकिन इसके आयोजन में न तो सीधे तौर दिल्ली और न ही केन्द्र सरकार शामिल है। असम राइफल्स के पूर्व डीजी लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय कहते हैं कि बेशक यह रक्षा मंत्रालय के कहने पर हो रहा है लेकिन यह सरासर गलत है। आम आदमी के पैसों के राष्ट्रीय संसाधन का दुरुपयोग हो रहा है। यह कोई राष्ट्रीय पर्व नहीं है जिसके लिए सेना की गरिमा को दांव पर लगाया जाए।
लाखों लोगों की सुरक्षा का सवाल
सेना के सूत्रों का कहना है कि सरकार इस बात से डरी हुई है कि अगर यहां लाखों लोग जमा होते हैं और कोई भगदड़ मच जाती है तो बिना पुल के लोग जाएंगे कहां? पुल के होने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि कार्यक्रम को बेहतर तरीके से निपटाया जा सकेगा।
रक्षा मंत्रालय के आदेश पर पुल निर्माण
सेना का तर्क है कि वह यह काम रक्षा मंत्रालय के आदेश पर कर रही है। दबे स्वर में सेना यह भी कह रही है कि जब वह कुंभ और कॉमनवेल्थ गेम्स में पुल बना सकती है तो फिर यहां क्यों नहीं? ध्यान रहे कि कुंभ और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे कार्यक्रम सीधे सरकार करवाती है जबकि यह कार्यक्रम आर्ट ऑफ लिविंग नाम की राजिस्टर्ड संस्था करा रही है।
सेना की गरिमा को दांव पर लगाना गलत
सेना के करीब 120 जवान दिन रात लगे हैं। पचासों ट्रक भी इसी काम में लगे हुए हैं। लेकिन लाख टके का सवाल है कि यह महोत्सव आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से आयोजित निजी कार्यक्रम है और इसमें सेना का इस्तेमाल कहां तक जायज है। कहने को इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जाएंगे लेकिन इसके आयोजन में न तो सीधे तौर दिल्ली और न ही केन्द्र सरकार शामिल है। असम राइफल्स के पूर्व डीजी लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय कहते हैं कि बेशक यह रक्षा मंत्रालय के कहने पर हो रहा है लेकिन यह सरासर गलत है। आम आदमी के पैसों के राष्ट्रीय संसाधन का दुरुपयोग हो रहा है। यह कोई राष्ट्रीय पर्व नहीं है जिसके लिए सेना की गरिमा को दांव पर लगाया जाए।
लाखों लोगों की सुरक्षा का सवाल
सेना के सूत्रों का कहना है कि सरकार इस बात से डरी हुई है कि अगर यहां लाखों लोग जमा होते हैं और कोई भगदड़ मच जाती है तो बिना पुल के लोग जाएंगे कहां? पुल के होने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि कार्यक्रम को बेहतर तरीके से निपटाया जा सकेगा।
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