सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
एक अभूतपूर्व दौरे में, सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत, विदेश सचिव विजय गोखले और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इस माह के शुरू में चुपचाप भूटान के दौरे पर गए जहां उन्होंने भूटान के नेतृत्व के साथ डोकलाम में हालात तथा इस पठार के आसपास चीन द्वारा रक्षा अवसंरचना का निर्माण किए जाने सहित प्रमुख रणनीतिक मुद्दों पर गहन चर्चा की.
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सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय सुरक्षा और रक्षा सहयोग के मुद्दों की समीक्षा की. इस दौरान दोनों पक्षों ने महत्वपूर्ण डोकलाम पठार में चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी तथा अवसंरचना विकास पर ध्यान केंद्रित किया. विभिन्न सरकारी सूत्रों ने बताया कि यह दौरा 6 और 7 फरवरी को हुआ और प्रमुख भारतीय अधिकारियों तथा भूटान सरकार के बीच बैठकों से ‘‘सकारात्मक’’ परिणाम सामने आए. इस बात पर भी विचार हुआ कि दोनों देशों के बीच रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को और अधिक मजबूत कैसे किया जाए.
जनरल रावत, डोभाल और गोखले का यह दौरा डोकलाम गतिरोध के बाद भारत की ओर से भूटान का पहला शीर्ष भारतीय अधिकारियों का दौरा था. भूटान और भारत दोनों ही पक्षों ने इस दौरे को गोपनीय रखा. इस दौरे से तीन दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भूटानी समकक्ष सेरिंग तोबगे के साथ गुवाहाटी में एक निवेश सम्मेलन से अलग बातचीत की थी. सूत्रों ने बताया कि भूटानी पक्ष ने भूटान तथा चीन के बीच सीमा वार्ताओं की स्थिति के बारे में भारतीय पक्ष को अवगत कराया और इस बात पर जोर दिया कि डोकलाम त्रिसंगम में थिम्पू शांति चाहता है.
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डोकलाम में पिछले साल 16 जून से 73 दिनों तक भारतीय और चीनी सैनिक आमने सामने थे. यह गतिरोध तब शुरू हुआ था जब भारतीय पक्ष ने चीनी सेना द्वारा विवादित डोकलाम त्रिसंगम पर किए जा रहे सड़क निर्माण कार्य को रोक दिया था. डोकलाम में चला यह गतिरोध 28 अगस्त 2017 को खत्म हुआ था. चीन और भूटान इलाके में विवाद के समाधान के लिए बातचीत कर रहे हैं. भारत का तर्क है कि इस त्रिसंगम से तीन देश जुड़े हैं, इसलिए इस मुद्दे पर उसका पक्ष भी सुना जाना चाहिए, खास कर 2012 में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच हुए समझौते की पृष्ठभूमि में.
भूटान के चीन के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं. भारत के करीबी मित्र और पड़ोसी के तौर पर भूटान के नयी दिल्ली के साथ राजनयिक और सैन्य संबंध रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि इस दौरे में सेना और विदेश मंत्रालय के कुछ अन्य प्रमुख अधिकारी भी गए थे.
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विदेश सचिव के दौरे के बारे में पूछे जाने पर एक राजनयिक सूत्र ने इसे ‘‘नियमित’’ बताया. पिछले नौ माह में यह जनरल रावत का दूसरा भूटान दौरा था. जनरल रावत चीन के साथ लगने वाली करीब 4,000 किमी लंबी सीमा पर भारत द्वारा पर्याप्त ध्यान दिए जाने की बात कहते हैं. पिछले माह उन्होंने कहा था कि समय आ गया है जब देश को अपना फोकस पश्चिम से उत्तरी सीमा की ओर करना चाहिए. सेना के सूत्रों ने बताया कि चीन के सैनिक उत्तरी डोकलाम में हैं और वह इलाके में अपनी अवसंरचना को भी मजबूत कर रहा है.
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भारतीय सेना भी चीन भारत सीमा पर कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों में अपने सैनिक की उपस्थिति को मजबूत कर रही है। साथ ही सीमाई अवसंरचना को भी बढ़ाया जा रहा है. पूर्व में रावत पिछले साल अप्रैल में भूटान गए थे जबकि तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर ने गत अक्तूबर में इस पड़ोसी देश का दौरा किया था. पिछले साल नवंबर में भूटान नरेश जिग्मे खेसर नमग्येल वांगचुक ने भारत का दौरा किया था.
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सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय सुरक्षा और रक्षा सहयोग के मुद्दों की समीक्षा की. इस दौरान दोनों पक्षों ने महत्वपूर्ण डोकलाम पठार में चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी तथा अवसंरचना विकास पर ध्यान केंद्रित किया. विभिन्न सरकारी सूत्रों ने बताया कि यह दौरा 6 और 7 फरवरी को हुआ और प्रमुख भारतीय अधिकारियों तथा भूटान सरकार के बीच बैठकों से ‘‘सकारात्मक’’ परिणाम सामने आए. इस बात पर भी विचार हुआ कि दोनों देशों के बीच रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को और अधिक मजबूत कैसे किया जाए.
जनरल रावत, डोभाल और गोखले का यह दौरा डोकलाम गतिरोध के बाद भारत की ओर से भूटान का पहला शीर्ष भारतीय अधिकारियों का दौरा था. भूटान और भारत दोनों ही पक्षों ने इस दौरे को गोपनीय रखा. इस दौरे से तीन दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भूटानी समकक्ष सेरिंग तोबगे के साथ गुवाहाटी में एक निवेश सम्मेलन से अलग बातचीत की थी. सूत्रों ने बताया कि भूटानी पक्ष ने भूटान तथा चीन के बीच सीमा वार्ताओं की स्थिति के बारे में भारतीय पक्ष को अवगत कराया और इस बात पर जोर दिया कि डोकलाम त्रिसंगम में थिम्पू शांति चाहता है.
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भूटान के चीन के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं. भारत के करीबी मित्र और पड़ोसी के तौर पर भूटान के नयी दिल्ली के साथ राजनयिक और सैन्य संबंध रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि इस दौरे में सेना और विदेश मंत्रालय के कुछ अन्य प्रमुख अधिकारी भी गए थे.
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भारतीय सेना भी चीन भारत सीमा पर कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों में अपने सैनिक की उपस्थिति को मजबूत कर रही है। साथ ही सीमाई अवसंरचना को भी बढ़ाया जा रहा है. पूर्व में रावत पिछले साल अप्रैल में भूटान गए थे जबकि तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर ने गत अक्तूबर में इस पड़ोसी देश का दौरा किया था. पिछले साल नवंबर में भूटान नरेश जिग्मे खेसर नमग्येल वांगचुक ने भारत का दौरा किया था.
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