पर्यावरण के ज़्यादातर जानकार मानते हैं कि धरती छठी व्यापक विलुप्ति यानी Mass Extinction के दौर से गुज़र रही है. एक अनुमान के अनुसार जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की क़रीब 150 से 200 प्रजातियां हर रोज़ विलुप्त हो रही हैं और ये दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. इसके लिए सबसे ज़्यादा इंसानी गतिविधियां ज़िम्मेदार हैं. जिनकी वजह से दुनिया की आबोहवा गर्म हो रही है, जो विलुप्ति की इस प्रक्रिया को लगातार तेज़ कर रही है. इन हालात में ज़रूरी है कि इस जीव जगत को बचाने की ठोस कोशिशें की जाएं. ऐसी ही एक कामयाब कोशिश उत्तराखंड के वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने की है . वन अनुसंधान शाखा ने जैव विविधता के संरक्षण की ख़ातिर विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी कई वनस्पतियों को बचाने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया है. अनुसंधान शाखा ने उत्तराखंड में फैली अपनी आठ रेंजों में पूरे देश की क़रीब 1145 वनस्पतियों का संरक्षण किया है जिनमें से कई विलुप्त होने की कगार पर हैं.
फोटो: ब्रह्मकमल (Saussurea obvallata)
उत्तराखंड की ख़ास बात ये है कि यहां तीन तरह के वन हैं. उष्ण कटिबंधीय (ट्रॉपिकल), सम शीतोष्ण (टैम्परेट) और अल्पाइन. इन तीनों प्रकार के वनों में पाई जाने वाली वनस्पतियों के जर्मप्लाज़्म का संरक्षण करना वन अनुसंधान शाखा का मुख्य लक्ष्य है. संरक्षण के इस काम में जुटे आईएफ़एस अधिकारी और उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक जर्मप्लाज़्म के संरक्षण का फ़ायदा ये होगा कि अगर कभी जलवायु परिवर्तन, तापमान में वृद्धि, अवैध दोहन, खनन या फिर वनों के कटान से किसी वनस्पति की प्रजाति अपनी प्राकृतिक जगह से विलुप्त हो जाती है तो राज्य के पास इनके जीवित पौधों का संग्रह सुरक्षित रहेगा जिसकी मदद से दोबारा उस वनस्पति को उसके प्राकृतिक वास में बहाल किया जा सकेगा.
फोटो: ग्रीन रोज़ ( Rhodobryum roseum)
वन अनुसंधान शाखा ने जिन 1145 प्रजातियों की वनस्पतियों का संरक्षण किया है उनमें से 386 औषधीय महत्व की हैं. 1145 प्रजातियों में वृक्षों की 375 प्रजातियां, झाड़ियों की 100 प्रजातियां, 110 शाकीय प्रजातियां यानी Herbs, ऑर्किड की 60 प्रजातियां, बांसों की 35 प्रजातियां, कैक्टस और सक्यूलेंट की 150 प्रजातियां, जंगली लताओं की 34 प्रजातियां और 22 तरह के जलीय पौधे (aquatic plants) शामिल हैं.
फोटो: बद्री तुलसी (Oregano vulgare)
इसके अलावा पहली बार निचले स्तर के पौधों जैसे 26 तरह के मॉस, 28 तरह के लाइकेन और दो तरह के एल्गाई यानी शैवाल का भी न केवल संरक्षण किया गया है बल्कि इनकी प्रजातियों की वैज्ञानिक पहचान भी निर्धारित करके इनका रिकॉर्ड तैयार किया गया है.
फोटो: ट्रे मैन (Gentiano Kurroo)
उत्तराखंड में वनस्पतियों की 70 से 80 प्रजातियां ऐसी हैं जो एन्डेमिक हैं यानी राज्य के बाहर दुनिया में कहीं नहीं पाई जातीं. इनमें से 46 को वन अनुसंधान शाखा ने संरक्षित किया है. उत्तराखंड के जैव विविधता बोर्ड ने राज्य में वनस्पति की 16 प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर पाया है.
फोटो: बोट ऑर्किड (Cymbidium iridioides)
इन 16 प्रजातियों में से 11 को अनुसंधान शाखा ने संरक्षित कर लिया है. इनमें मीठा विष, कुमाऊं पाम, पटवा, गैंती, रेड क्रेन ऑर्किड (नन ऑर्किड), वन पलाश, ट्री फर्न, अतीस, त्रायमाण वगैरह शामिल हैं. बाकी पांच लुप्तप्राय प्रजातियों को भी ढूंढ कर संरक्षित करने की कोशिशें जारी हैं.
फोटो: झूला घास (Everniastrum lichen)
कुल मिलाकर 68 ऐसी प्रजातियों को संरक्षित किया गया है जो IUCN (इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर) की रेड लिस्ट के हिसाब से दुर्लभ या लुप्त प्राय हो चुकी हैं. इनमे कई काफ़ी लोकप्रिय प्रजातियां हैं जैसे ब्रह्म कमल, चंदन, रक्त चंदन, तेजपात, अश्वगंधा, ब्राह्मी, अर्जुन, वज्रदंती, सालमपंजा ऑर्किड, बद्री तुलसी, थुनेर (टैक्सास बकाटा जिससे कैंसर की दवा बनती है) और भोजपत्र. उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली कुछ दुर्लभ प्रजातियां जैसे कुटकी, कूथ, चिरायता, समेवा, जटामासी, चिरौंजी, कासनी का भी संरक्षण किया गया है.
फोटो: फ़ाइकस कृष्णा (Ficus Krishnae)
हर प्रजाति से जुड़ी नौ जानकारियां विशेष रूप से दी गई हैं. इनमें प्रजाति का वैज्ञानिक कुल यानी फैमिली, वानस्पतिक नाम, स्थानीय नाम, उनका प्रयोग, उनके संरक्षण का स्तर और उनका मूल स्थान शामिल है. इसके अलावा ये भी बताया गया है कि किसी प्रजाति की वनस्पति वन अनुसंधान शाखा की किस रेंज में मौजूद है.
फोटो: द्रौपदीमाल ऑर्किड (Aerides multiflora.)
उत्तराखंड में वनस्पतियों की प्रजातियों का ये सबसे बड़ा संग्रह है और देश में जीवित पौधों के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है. इसका मुख्य उद्देश्य है वनस्पतियों के महत्व के बारे में आम जनता में जागरूकता बढ़ाना और उनसे जुड़े अनुसंधान को बढ़ावा देना. कोशिश ये भी है कि वन संरक्षण के नाम पर खर्च होने वाली पूंजी का कुछ हिस्सा इन दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण में भी खर्च करने को प्रोत्साहित किया जाए. उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखंड की वन अनुसंधान शाखा की ये नायाब मुहिम देश में वनस्पतियों के रख-रखाव की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी.
386 प्रजातियां औषधीय महत्व की
375 प्रजातियों के पेड़
100 प्रजातियों की झाड़ियां
110 शाकीय प्रजातियां
60 प्रजातियों के ऑर्किड
35 प्रजातियों के बांस
150 प्रजातियों के कैक्टर और सक्यूलेंट
34 प्रजातियों की जंगली लताएं
22 प्रजातियों के जलीय पौधे
26 किस्म की मॉस
28 किस्म के लाइकेन
2 किस्म के एल्गाई
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