दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने अपने बेटे सैयद शाबान बुखारी को नायब शाही इमाम घोषित करने की रस्म में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह सहित देश-विदेश की कई प्रमुख हस्तियों को न्यौता भेजा है, हालांकि उनके मेहमानों की सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम नहीं है।
शाबान बुखारी को इस ऐतिहासिक मस्जिद का नायब शाही इमाम घोषित किए जाने की रस्म (दस्तारबंदी) आने वाली 22 नवंबर को होगी और 25 नवंबर को खास मेहमानों के लिए एक रात्रिभोज का आयोजन भी किया गया है।
बुखारी ने कहा, 'हमने शाबान की दस्तारबंदी के लिए देश और दुनिया में अपने सभी जानने वाले लोगों को न्यौता भेजा है। इसमें नेताओं, धर्मगुरुओं और कई दूसरे क्षेत्रों के लोगों को दावत दी गई है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ साहब को मैंने अपने पारिवारिक रिश्ते की हैसियत से न्यौता दिया है।'
जामा मस्जिद ट्रस्ट के पदाधिकारियों का कहना है कि इस आयोजन में शायद नवाज शरीफ खुद उपस्थित नहीं हो सकें। उनकी ओर से नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित मौजूद हो सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को न्यौता नहीं भेजे जाने के बारे में पूछे जाने पर बुखारी ने कहा, 'यह मेरा निजी मामला है और मैंने अपने हिसाब से लोगों को आमंत्रित किया है।' बुखारी ने बताया कि अक्तूबर, 2000 में जब उनकी दस्तारबंदी हुई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को न्यौता भेजा गया था, हालांकि खुद वाजपेयी नहीं पहुंचे थे, लेकिन अपने एक प्रतिनिधि को भेजा था।
शाही इमाम अहमद बुखारी ने इस आयोजन के लिए भाजपा के चार नेताओं गृहमंत्री राजनाथ सिंह, स्वास्थमंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन, दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष विजय गोयल तथा पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन को आमंत्रित किया है।
उन्होंने कहा, 'कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी तथा पार्टी के कई दूसरे बड़े नेताओं को न्यौता भेजा गया है। इसके अलावा मुलायम सिंह यादव, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी हमने न्यौता भेजा है।'
बुखारी के छोटे बेटे शाबान 19 साल के हैं और एमिटी विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। नायब शाही इमाम बनने का मतलब यह होगा कि अपने पिता के बाद वह जामा मस्जिद के अगले शाही इमाम होंगे।
दिल्ली में जामा मस्जिद वर्ष 1656 में बनकर तैयार हुई थी और पहली बार इसमें सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी की इमामत में ईद की नमाज अदा की गई थी। यहीं से शाही इमाम की परंपरा शुरू हुई और अब्दुल गफूर शाह बुखारी के खानदान के ही किसी व्यक्ति के शाही इमाम बनने की परंपरा चली आ रही है।
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