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This Article is From Jul 11, 2013

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में जाति आधारित रैलियों पर रोक लगाई

हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में मांग की गई थी कि ऐसी रैलियां रोकी जाएं, क्योंकि इनसे समाज में भेदभाव बढ़ता है। अदालत ने याचिका पर फैसला आने तक ऐसी रैलियों पर रोक लगा दी है।
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लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने गुरुवार को एक अहम फैसले में पूरे उत्तर प्रदेश में जातियों के आधार पर की जा रही राजनीतिक दलों की रैलियों पर तत्काल रोक लगा दी।

अदालत ने मामले में पक्षकारों केंद्र तथा राज्य सरकार समेत भारत निर्वाचन आयोग एवं चार राजनीतिक दलों कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को नोटिस जारी किए हैं।

न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह तथा न्यायमूर्ति महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने यह आदेश स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया है। याचिकाकर्ता का कहना था कि उत्तर प्रदेश में जातियों पर आधारित राजनीतिक रैलियों की बाढ़ आ गई है और सियासी दल ब्राह्मण रैली, क्षत्रिय रैली, वैश्य सम्मेलन आदि नाम देकर अंधाधुंध जातीय रैलियां कर रहे हैं।

याचिका करने वाले का तर्क था कि इससे सामाजिक एकता और समरसता को जहां नुकसान हो रहा है, वहीं ऐसी जातीय रैलियां तथा सम्मेलन समाज में लोगों के बीच जहर घोलने का काम कर रहे हैं, जो संविधान की मंशा के खिलाफ है। उधर, राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोदियाल पेश हुईं। याची ने याचिका में केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्रीय निर्वाचन आयोग और कांग्रेस, बीजेपी, सपा तथा बीएसपी को पक्षकार बनाया है।

गौरतलब है कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीएसपी ने प्रदेश के करीब 40 जिलों में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन आयोजित किए थे। उसके अलावा सपा ने भी पिछले महीने लखनऊ में ऐसा ही सम्मेलन किया था। साथ ही उसने मुस्लिम सम्मेलन भी आयोजित किए थे।

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