इलाहाबाद हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
इलाहाबाद:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय के आईआईटी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विजिटिंग फैकल्टी अनुंबध को खत्म करने के आदेश को दरकिनार कर दिया है। अदालत ने कहा कि देशविरोधी गतिविधियों जैसे आरोप लगाकर एकतरफा कार्रवाई करना 'नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत' के खिलाफ है।
न्यायमूर्ति वी.के. शुक्ला और न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी की खंडपीठ ने शुक्रवार को पांडेय की तरफ से दायर याचिका को अनुमति दे दी, जिन्होंने छह जनवरी 2016 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके अनुबंध को खत्म कर दिया गया था। उन्हें रसायन इंजीनियरिंग विभाग में 'विजिटिंग प्रोफेसर' नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल इस साल 30 जुलाई तक था।
उक्त आदेश में गांधीवादी कार्यकर्ता पांडेय को यह भी कहा गया कि उनके अनुबंध को खत्म करने का निर्णय आईआईटी (बीएचयू) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक में किया गया, जिसने उन्हें 'साइबर अपराध' और 'देशहित के खिलाफ' काम करने का दोषी पाया।
नक्सलियों से सहानुभूति रखने का था आरोप
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने बीएचयू में राजनीति विज्ञान के एक छात्र के पत्र का संज्ञान लिया, जिन्होंने पांडेय पर 'राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने और नक्सलियों से सहानुभूति रखने' का आरोप लगाया।
पांडेय के वकील राहुल मिश्रा ने तर्क दिया, 'संबंधित अधिकारियों ने यह निर्णय याचिकाकर्ता की आवाज को दबाने के लिए किया क्योंकि वह अलग विचारधारा के व्यक्ति हैं।' आदेश को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, 'यह मामला महज अनुबंध रद्द करने का नहीं है बल्कि दंडात्मक... छवि खराब करने वाला आदेश' है।
इसमें, 'साइबर अपराध करना और देशहित के खिलाफ काम करना जैसे भारी शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।' अदालत ने कहा, 'ये सभी आरोप गंभीर हैं और याचिकाकर्ता के व्यवहार और चरित्र पर गंभीर आक्षेप लगाते हैं और जिस तरीके से एकतरफा यह निर्णय किया गया है उसे हम मंजूरी नहीं दे सकते।'
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
न्यायमूर्ति वी.के. शुक्ला और न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी की खंडपीठ ने शुक्रवार को पांडेय की तरफ से दायर याचिका को अनुमति दे दी, जिन्होंने छह जनवरी 2016 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके अनुबंध को खत्म कर दिया गया था। उन्हें रसायन इंजीनियरिंग विभाग में 'विजिटिंग प्रोफेसर' नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल इस साल 30 जुलाई तक था।
उक्त आदेश में गांधीवादी कार्यकर्ता पांडेय को यह भी कहा गया कि उनके अनुबंध को खत्म करने का निर्णय आईआईटी (बीएचयू) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक में किया गया, जिसने उन्हें 'साइबर अपराध' और 'देशहित के खिलाफ' काम करने का दोषी पाया।
नक्सलियों से सहानुभूति रखने का था आरोप
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने बीएचयू में राजनीति विज्ञान के एक छात्र के पत्र का संज्ञान लिया, जिन्होंने पांडेय पर 'राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने और नक्सलियों से सहानुभूति रखने' का आरोप लगाया।
पांडेय के वकील राहुल मिश्रा ने तर्क दिया, 'संबंधित अधिकारियों ने यह निर्णय याचिकाकर्ता की आवाज को दबाने के लिए किया क्योंकि वह अलग विचारधारा के व्यक्ति हैं।' आदेश को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, 'यह मामला महज अनुबंध रद्द करने का नहीं है बल्कि दंडात्मक... छवि खराब करने वाला आदेश' है।
इसमें, 'साइबर अपराध करना और देशहित के खिलाफ काम करना जैसे भारी शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।' अदालत ने कहा, 'ये सभी आरोप गंभीर हैं और याचिकाकर्ता के व्यवहार और चरित्र पर गंभीर आक्षेप लगाते हैं और जिस तरीके से एकतरफा यह निर्णय किया गया है उसे हम मंजूरी नहीं दे सकते।'
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