एएमयू के वीसी लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह, पीएम मोदी से मुलाकात करते हुए
नई दिल्ली:
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के एक प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की और इसके अल्पसंख्यक दर्जा को बहाल रखने में एनडीए सरकार के समर्थन की मांग की। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि इसका उन अल्पसंख्यकों पर अच्छा असर पड़ेगा जो उत्तेजित हैं और जिनके मन में आशंका है कि उनके अधिकारों का हनन हो रहा है।
विश्वविद्यालय के तीन 'ऑफ कैम्पस' (मुख्य परिसर से बाहर) केंद्रों - केरल, पश्चिम बंगाल और बिहार में कथित तौर पर अवैध रूप से स्थापित किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इनकी मंजूरी विश्वविद्यालय की सर्वोच्च नीति निर्माण इकाई, भारत सरकार और राष्ट्रपति ने दी थी।
करीब 40 मिनट की मुलाकात के बाद शाह ने प्रधानमंत्री से मुलाकात पर संतोष जाहिर किया। वह मुस्लिम समुदाय के कुछ प्रमुख सदस्यों के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे।
ज्ञापन में अनुरोध किया गया है कि एनडीए सरकार विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जा को बहाल रखने में पिछली यूपीए सरकार के मूल रुख पर लौटे। इसमें कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान अल्पसंख्यकों को अनुच्छेद 31 के तहत अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान स्थापित एवं संचालित करने का अधिकार देता है।
इसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि मुद्दे से निपटने में एनडीए के सहानुभूतिपूर्वक रुख रखने का मुसलमान युवाओं पर सकारात्मक असर होगा और इससे वे राष्ट्रीय मुख्यधारा में और अधिक जुड़ेंगे। इसने कहा है, 'एएमयू छात्रों ने अनुकरणीय तरीके से व्यवहार किया और इस मुद्दे पर आंदोलन नहीं किया।' इसने कहा है कि एनडीए सरकार के इस कदम का उन अल्पसंख्यकों पर बहुत अच्छा असर पड़ेगा जो फिलहाल क्षुब्ध हैं और आशंकित हैं कि उनके अधिकारों का हनन हो रहा है।
इसने यह भी याद दिलाया कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व के तहत बीजेपी जब जनता पार्टी का हिस्सा थी तब अपने घोषणापत्र में इसने विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक चरित्र कायम रखने का वादा किया था।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
विश्वविद्यालय के तीन 'ऑफ कैम्पस' (मुख्य परिसर से बाहर) केंद्रों - केरल, पश्चिम बंगाल और बिहार में कथित तौर पर अवैध रूप से स्थापित किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इनकी मंजूरी विश्वविद्यालय की सर्वोच्च नीति निर्माण इकाई, भारत सरकार और राष्ट्रपति ने दी थी।
करीब 40 मिनट की मुलाकात के बाद शाह ने प्रधानमंत्री से मुलाकात पर संतोष जाहिर किया। वह मुस्लिम समुदाय के कुछ प्रमुख सदस्यों के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे।
ज्ञापन में अनुरोध किया गया है कि एनडीए सरकार विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जा को बहाल रखने में पिछली यूपीए सरकार के मूल रुख पर लौटे। इसमें कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान अल्पसंख्यकों को अनुच्छेद 31 के तहत अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान स्थापित एवं संचालित करने का अधिकार देता है।
इसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि मुद्दे से निपटने में एनडीए के सहानुभूतिपूर्वक रुख रखने का मुसलमान युवाओं पर सकारात्मक असर होगा और इससे वे राष्ट्रीय मुख्यधारा में और अधिक जुड़ेंगे। इसने कहा है, 'एएमयू छात्रों ने अनुकरणीय तरीके से व्यवहार किया और इस मुद्दे पर आंदोलन नहीं किया।' इसने कहा है कि एनडीए सरकार के इस कदम का उन अल्पसंख्यकों पर बहुत अच्छा असर पड़ेगा जो फिलहाल क्षुब्ध हैं और आशंकित हैं कि उनके अधिकारों का हनन हो रहा है।
इसने यह भी याद दिलाया कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व के तहत बीजेपी जब जनता पार्टी का हिस्सा थी तब अपने घोषणापत्र में इसने विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक चरित्र कायम रखने का वादा किया था।
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