छत्तीसगढ़ के पू्र्व मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता अजीत जोगी (Ajit Jogi) का शुक्रवार को 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वह पिछले लंबे समय से बीमार चल रहे थे. भारतीय राजनीति में अजीत जोगी का नाम देश के बड़े नेताओं में शुमार होता है. कांग्रेस (Congress) पार्टी से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं. 29 अप्रैल 1946 को बिलासपुर के पेंड्रा में जन्मे अजीत प्रमोद कुमार जोगी के दादाजी हिंदू धर्म के सतनामी समाज से ताल्लुक रखते थे. बाद में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था. अजीत जोगी ने भोपाल के मौलाना आजाद कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी से मकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और साल 1968 में यहां से गोल्ड मेडलिस्ट रहे.
अर्जुन सिंह के खास अधिकारियों में थे जोगी
शिक्षा पूरी करने के बाद अजीत जोगी ने रायपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर के रूप में सेवाएं दीं. इसके बाद उनका चयन भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के लिए हो गया, बाद में वह भारतीय प्रशासनिक सेवा यानि आईएएस के लिए भी चुन लिए गए. भारतीय प्रशासनिक सेवा के दौरान साल 1981 से 1985 तक अजीत जोगी इंदौर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर रहे.
जानकार बताते हैं कि इसी दौरान अजीत जोगी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम अर्जुन सिंह के संपर्क में आए. जोगी की गिनती अर्जुन सिंह के चहेते अधिकारियों में होती थी. लेकिन जोगी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत पूर्व पीएम राजीव गांधी के संपर्क में आने के बाद हुई.
1986 से 87 के बीच अजीत जोगी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण समिति की जिम्मेदारी दी गई. 1986 से लेकर 98 तक अजीत जोगी दो बार के राज्यसभा सदस्य रहे.1998 में जोगी पहली बार रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से लिए चुने गए. इसी दौरान उन्हें कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी भी सौंपी.
नए राज्य के साथ मिली नई जिम्मेदारी
साल 2000 में छत्तीसगढ़ को अलग राज्य घोषित किया गया और अजीत जोगी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. ये जिम्मेदारी जोगी ने साल 2003 तक संभाली. 2003 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी हार गई और राज्य में पहली बार रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. इन चुनावों में जोगी खुद मरवाही सीट से मैदान में थे और उन्होंने बीजेपी के नंद कुमार साई को 54 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. इन चुनावों में कांग्रेस ने 37 सीटें जीती थी.
लोकसभा चुनाव में जीत के बाद भी केंद्र में नहीं मिला मौका
इसके बाद साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में अजीत जोगी ने कांग्रेस की तरफ से छत्तीसगढ़ की महासमुंद सीट से चुनाव लड़ा. इस दौरान उनका मुकाबला कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल से था. जोगी ने विद्याचरण शुक्ल जैसे दिग्गज नेता को हराकर छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपना कद सबसे ऊपर कर लिया. इन चुनावों में केंद्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी लेकिन अजीत जोगी को सरकार में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई. जोगी अभी भी छत्तीसगढ़ की राजनीति में ही खुद को आजमाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने सांसद का अपना कार्यकाल पूरा ना करके वापस विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया.
नहीं छूटा राज्य की राजनीति का मोह
साल 2008 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जोगी एक बार फिर मरवाही से मैदान में उतरे. इस बार भी राज्य में कांग्रेस की हार हुई लेकिन अजीत जोगी ने बंपर वोटों से चुनाव जीता. अजीत जोगी ने बीजेपी के ध्यान सिंह पोर्ते को 42 से ज्यादा हराया था. इसके बाद साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में जोगी मैदान में नहीं उतरे. छत्तीसगढ़ बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब अजीत जोगी ने विधानसभा का अपना कार्यकाल पूरा किया. 2013 में हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी मरवाही विधानसभा सीट से अपने बेटे अमित जोगी को मैदान में उतारा. अमित जोगी ने बीजेपी समीरा पैकरा को 46 से ज्यादा वोटों से हराया था. इसके बाद साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में अजीत जोगी ने महासमुंद लोकसभा सीट से एक बार फिर ताल ठोकी. लेकिन इस बार जोगी मोदी हवा में बीजेपी के चंदूलाल साहू से 1217 वोटों से हार गए.
2018 में जोगी पत्नी और बहू समेत मैदान में उतरे थे
2018 विधानसभा चुनाव में राज्य के पहले मुख्यमंत्री जोगी पहली बार कांग्रेस पार्टी से अलग चुनाव लड़े. अजीत जोगी अपनी अलग पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCC-J) के साथ मैदान में उतरे. राज्य की 90 सीटों में जोगी की पार्टी 55 सीटों पर चुनाव लड़ी बाकि 35 सीटों पर जेसीसीजे ने बीएसपी को समर्थन किया है.
अजीत जोगी खुद मरवाही सीट से चुनाव लड़े और जीते थे. वहीं कोटा विधानसभा सीट से उनकी पत्नी रेणु जोगी भी चुनाव जीती थीं. बहू ऋचा जोगी अकलतरा सीट से बीएसपी के टिकट पर मैदान में उतरीं थी और बहुत कम अंतर से हारीं थी. 90 में से 60 सीटों पर बीएसपी जेसीसी गठबंधन ने 7 सीटें जीती थी जिनमें से 5 सीटें जोगी की पार्टी ने जीती थी वहीं 2 सीटों पर बीएसपी ने जीत दर्ज की थी.
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