नई दिल्ली:
एयर इंडिया के लिए बोइंग विमानों की खरीद के मामले में सरकार पर जल्दबाज़ी दिखाने का आरोप लगाने वाले महालेखापरीक्षक ने ठीक पांच साल पहले बिल्कुल उलटी बात कही थी। 2005−2006 में सीएजी ने सरकार पर लेटलतीफ़ी का आरोप लगाते हुए कहा था कि उसे जल्द से जल्द एयर इंडिया का बेड़ा बढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए। 2006 में संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने कहा था कि एयर इंडिया में विमानों को शामिल करने की सही नीति नहीं है और सन 2000 से ही ये राष्ट्रीय कंपनी लीज़ के विमानों के भरोसे है। रिपोर्ट में कहा गया कि कंपनी समय समय पर विमानों की ज़रूरतों की समीक्षा तो करती है लेकिन खरीदारी नहीं करती। पांच साल बाद इसी सीएजी ने एयर इंडिया के लिए 50 बोइंग विमानों के सौदे पर सवाल उठाए हैं। सीएजी ने कहा है कि 1996 में रखे गए 28 विमानों की खरीद के प्रस्ताव पर फ़ैसला लेने में आठ साल लगे लेकिन बोइंग से सात महीने में ही सौदा कर लिया गया।