प्रतीकात्मक तस्वीर...
नई दिल्ली:
देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल और मेडिकल रिसर्च संस्थान एम्स ने डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र 65 से बढ़ाकर 67 किए जाने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा है, लेकिन एनडीटीवी इंडिया को पता चला है कि इस प्रस्ताव को न केवल जल्दबाज़ी में भेजा गया, बल्कि तय प्रक्रिया की अनदेखी भी की गई और इस प्रस्ताव से एम्स फैकल्टी में नाराज़गी है और एसोसिएशन ने उम्र बढ़ाए जाने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है.
हालांकि, एम्स के डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र 65 से बढ़ाकर 67 करने का प्रस्ताव सुनने में बड़ा अच्छा लगता है कि अनुभवी डॉक्टर दो साल और यहां सेवाएं देंगे, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को एम्स की फैकल्टी की ओर से लिखी गई चिट्ठी इस प्रस्ताव को सवालों के घेरे में लाती है.
एम्स फैकल्टी एसोसिएशन यानी फेम्स की ओर से हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा को एक चिट्टी ( जिसकी एक कॉपी एनडीटीवी इंडिया के पास है) इसी महीने 19 तारीख को लिखी गई. इस चिट्ठी में कहा गया है कि, 'कार्यकाल खत्म होने के बाद एम्स के कुछ सीनियर डॉक्टरों की पूरे अधिकारों के साथ ठेके पर दुबारा नियुक्ति करना संस्थान की ऑटोनोमी और काम करने के माहौल के साथ समझौता है'.
लेकिन इस चिट्टी के लिखे जाने के दो दिन बाद ही 21 अक्टूबर को एम्स की महत्वपूर्ण गवर्निंग और इंस्टिट्यूट बॉडी की मीटिंग में डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की उम्र दो साल बढ़ाने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेज दिया गया.
एम्स में आज करीब 800 डॉक्टर हैं. अनुभवी डॉक्टरों को एम्स में रोकना फायदेमंद हो सकता है, लेकिन जानकार बताते हैं कि यहां डॉक्टरों की रिटारमेंट की उम्र बढ़ाने का ये प्रस्ताव चंद डॉक्टरों को ही फायदा पहुंचाता है. असल में कुछ सीनियर डॉक्टरों की रिटायरमेंट के बाद ठेके पर की गई नियुक्ति पर सवाल उठे तो उसे बाद ही ये प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा गया.
पड़ताल बताती है कि एम्स में रेडियोथैरेपी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ जीके रथ (जो एम्स के रोटरी कैंसर रिसर्च संस्थान के प्रमुख और नेशनल कैंसर संस्थान के भी प्रमुख हैं) की सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें सभी अधिकारों के साथ ठेके (कॉन्ट्रेक्ट) पर तीन साल का एक्सटेंशन सीधे अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट ने दिया. एम्स के कई डॉक्टर इसे संस्थान की स्वायत्तता से समझौता मान रहे हैं.
इसके बाद ही एम्स की दो महत्वपूर्ण समितियों गवर्निंग बॉडी और इंस्टिट्यूट बॉडी की बैठक 21 अक्टूबर को हुई. माना जा रहा है कि ये बैठक कई दूसरे रिटायर हो रहे सीनियर डॉक्टरों की फिर से नियुक्ति का रास्ता खोलने के लिए है, ताकि डॉक्टरों के एक्सटेंशन को कानूनी मान्यता मिल सके.
जो सवाल उठ रहे हैं उनमें प्रमुख ये है कि प्रस्ताव को वित्त मंत्रालय, एचआरडी मंत्रालय और कार्मिक मंत्रालय के पास मशविरे के लिए भेजे बगैर ही सीधे कैबिनेट को क्यों भेज दिया गया?
सच ये भी है कि प्रस्ताव के पास होने पर कई सालों से महत्वपूर्ण विभागों के प्रमुख के पद पर बैठे सीनियर डॉक्टर वहीं जमे रहेंगे, जिससे युवा डॉक्टरों में नाराजगी और हताशा है. बुधवार शाम को एम्स फैकल्टी एसोसिएशन ने एक प्रेस रिलीज के जरिए सरकार से मांग की कि रिटायरमेंट की उम्र तभी बढ़ाई जाए, जब विभागाध्यक्षों के लिए रोटेशन पॉलिसी भी लागू हो. यानि तय समय बाद एचओडी बदले जाएं. अपनी चिट्ठी में एसोसिएशन ने कहा है कि इस बारे में एम्स की सर्वोच्च समितियों (गवर्निंग बॉडी और इंस्टिट्यूट बॉडी) ने 2012 में ही आदेश जारी किया हुआ है, जिसे सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है.
इस बारे में पीएमओ और हेल्थ मिनिस्ट्री को एनडीटीवी इंडिया की ओर भेजे गए सवालों के जवाब नहीं आए, लेकिन एम्स के डॉक्टरों ने स्वास्थ्य मंत्री को चिट्टी लिखकर ये कहा है कि ऐसे प्रस्ताव को सहमति देना संस्थान में डॉक्टरों की नेताओं और मंत्रियों के साथ साठगांठ को बढ़ाएगा.
हालांकि, एम्स के डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र 65 से बढ़ाकर 67 करने का प्रस्ताव सुनने में बड़ा अच्छा लगता है कि अनुभवी डॉक्टर दो साल और यहां सेवाएं देंगे, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को एम्स की फैकल्टी की ओर से लिखी गई चिट्ठी इस प्रस्ताव को सवालों के घेरे में लाती है.
एम्स फैकल्टी एसोसिएशन यानी फेम्स की ओर से हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा को एक चिट्टी ( जिसकी एक कॉपी एनडीटीवी इंडिया के पास है) इसी महीने 19 तारीख को लिखी गई. इस चिट्ठी में कहा गया है कि, 'कार्यकाल खत्म होने के बाद एम्स के कुछ सीनियर डॉक्टरों की पूरे अधिकारों के साथ ठेके पर दुबारा नियुक्ति करना संस्थान की ऑटोनोमी और काम करने के माहौल के साथ समझौता है'.
लेकिन इस चिट्टी के लिखे जाने के दो दिन बाद ही 21 अक्टूबर को एम्स की महत्वपूर्ण गवर्निंग और इंस्टिट्यूट बॉडी की मीटिंग में डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की उम्र दो साल बढ़ाने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेज दिया गया.
एम्स में आज करीब 800 डॉक्टर हैं. अनुभवी डॉक्टरों को एम्स में रोकना फायदेमंद हो सकता है, लेकिन जानकार बताते हैं कि यहां डॉक्टरों की रिटारमेंट की उम्र बढ़ाने का ये प्रस्ताव चंद डॉक्टरों को ही फायदा पहुंचाता है. असल में कुछ सीनियर डॉक्टरों की रिटायरमेंट के बाद ठेके पर की गई नियुक्ति पर सवाल उठे तो उसे बाद ही ये प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा गया.
पड़ताल बताती है कि एम्स में रेडियोथैरेपी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ जीके रथ (जो एम्स के रोटरी कैंसर रिसर्च संस्थान के प्रमुख और नेशनल कैंसर संस्थान के भी प्रमुख हैं) की सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें सभी अधिकारों के साथ ठेके (कॉन्ट्रेक्ट) पर तीन साल का एक्सटेंशन सीधे अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट ने दिया. एम्स के कई डॉक्टर इसे संस्थान की स्वायत्तता से समझौता मान रहे हैं.
इसके बाद ही एम्स की दो महत्वपूर्ण समितियों गवर्निंग बॉडी और इंस्टिट्यूट बॉडी की बैठक 21 अक्टूबर को हुई. माना जा रहा है कि ये बैठक कई दूसरे रिटायर हो रहे सीनियर डॉक्टरों की फिर से नियुक्ति का रास्ता खोलने के लिए है, ताकि डॉक्टरों के एक्सटेंशन को कानूनी मान्यता मिल सके.
जो सवाल उठ रहे हैं उनमें प्रमुख ये है कि प्रस्ताव को वित्त मंत्रालय, एचआरडी मंत्रालय और कार्मिक मंत्रालय के पास मशविरे के लिए भेजे बगैर ही सीधे कैबिनेट को क्यों भेज दिया गया?
सच ये भी है कि प्रस्ताव के पास होने पर कई सालों से महत्वपूर्ण विभागों के प्रमुख के पद पर बैठे सीनियर डॉक्टर वहीं जमे रहेंगे, जिससे युवा डॉक्टरों में नाराजगी और हताशा है. बुधवार शाम को एम्स फैकल्टी एसोसिएशन ने एक प्रेस रिलीज के जरिए सरकार से मांग की कि रिटायरमेंट की उम्र तभी बढ़ाई जाए, जब विभागाध्यक्षों के लिए रोटेशन पॉलिसी भी लागू हो. यानि तय समय बाद एचओडी बदले जाएं. अपनी चिट्ठी में एसोसिएशन ने कहा है कि इस बारे में एम्स की सर्वोच्च समितियों (गवर्निंग बॉडी और इंस्टिट्यूट बॉडी) ने 2012 में ही आदेश जारी किया हुआ है, जिसे सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है.
इस बारे में पीएमओ और हेल्थ मिनिस्ट्री को एनडीटीवी इंडिया की ओर भेजे गए सवालों के जवाब नहीं आए, लेकिन एम्स के डॉक्टरों ने स्वास्थ्य मंत्री को चिट्टी लिखकर ये कहा है कि ऐसे प्रस्ताव को सहमति देना संस्थान में डॉक्टरों की नेताओं और मंत्रियों के साथ साठगांठ को बढ़ाएगा.
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