नई दिल्ली:
केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी ने दिल्ली हाइकोर्ट को एक हलफनामे में ये बताया है कि देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स में मौजूदा सीवीओ की नियुक्ति उसकी (सीवीसी की) पूर्व सहमति (प्रायर अप्रूवल) के बिना हुई।
एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के बारे में सीवीसी की ओर से दिये गये हलफनामे के पैरा 11.3 में कहा गया है कि 14 अगस्त 2014 को मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेटरी और सीवीओ को एम्स के सीवीओ का पदभार शुरू में तीन महीने के लिये दिया गया जिसके लिये सीवीसी की पूर्व सहमति नहीं ली गई।
गौरतलब है कि एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी को हटाने के लिये एनडीए सरकार की ओर से यही दलील दी गई थी कि चतुर्वेदी की नियुक्ति के लिये सीवीसी की पूर्व सहमति नहीं ली गई लेकिन अब सीवीसी के हलफनामे से साफ हो गया है कि मौजूदा सीवीओ मनोज झलानी को भी सरकार ने सीवीसी की पूर्व सहमति के बिना नियुक्ति किया। हालांकि बाद में केंद्र सरकार ने झलानी के नाम पर सीवीसी की सहमति ली लेकिन उसमें भी नियमों की अनेदखी की गई।
एम्स के सीवीओ के पद पर नियुक्त किये गये मनोज झलानी स्वास्थ्य मंत्रालय के भी सीवीओ हैं। उन्हें एम्स के सीवीओ के पद पर नियुक्त करने के लिये सरकार ने जो तरीका अपनाया वह भी सवालों के घेरे में है। विजिलेंस मेन्युअल का पैरा 2.6.1 कहता है किसी भी स्वायत्त (ऑटोनोमस) संस्थान में सीवीओ नियुक्त करने के लिये संस्थान की ओर से ही उसके (संस्थान के) तीन अधिकारियों का पैनल भेजा जाएगा।
जिस अधिकारी के नाम पर सीवीसी सहमति देगा वही सीवीओ नियुक्त होगा, लेकिन मनोज झलानी के मामले में यह तरीका नहीं अपनाया गया। मंत्रालय ने एम्स के अधिकारियों की जगह अपने ही स्वास्थ्य मंत्रालय के तीन अधिकारियों का पैनल भेजा। ये तीन अधिकारी है, श्री मनोज झलानी, श्री राकेश कुमार और सुश्री धरित्री पांडा। ये तीनों स्वास्थ्य मंत्रालय में ही ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर हैं।
सवाल उठता है कि सरकार ने कैसे एम्स के अधिकारियों की जगह स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का नाम सीवीसी के पास भेजे जबकि संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ शिकायत करने वाले जे पी नड्डा सीवीसी मैनुअल के इसी नियम की दुहाई देते रहे हैं। केंद्र में पिछले साल नई मोदी सरकार बनने के बाद संजीव चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटा दिया गया जिससे काफी विवाद खड़ा हुआ था।
एनडीटीवी इंडिया ने आपको ख़बर दिखाई थी कि उस वक्त बतौर सांसद जे पी नड्डा ने न केवल संजीव चतुर्वेदी को हटाने के लिये स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को चिट्ठियां लिखी बल्कि ये भी कहा कि एम्स में भ्रष्टाचार के उन मामलों की जांच रोकी जाए जो चतुर्वेदी ने उजागर किये हैं।
नड्डा ने तब अपनी चिट्ठियों में केंद्र सरकार को एम्स में अपनी पसंद के नए सीवीओ का नाम भी सुझाया था। अब सीवीसी के हलफनामे से यह सवाल भी खड़ा होता है कि जे पी नड्डा ने एम्स के अधिकारी की जगह मंत्रालय के अधिकारी को सीवीओ क्यों बनाया जो उनके मातहत काम करता है।
एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के बारे में सीवीसी की ओर से दिये गये हलफनामे के पैरा 11.3 में कहा गया है कि 14 अगस्त 2014 को मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेटरी और सीवीओ को एम्स के सीवीओ का पदभार शुरू में तीन महीने के लिये दिया गया जिसके लिये सीवीसी की पूर्व सहमति नहीं ली गई।
गौरतलब है कि एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी को हटाने के लिये एनडीए सरकार की ओर से यही दलील दी गई थी कि चतुर्वेदी की नियुक्ति के लिये सीवीसी की पूर्व सहमति नहीं ली गई लेकिन अब सीवीसी के हलफनामे से साफ हो गया है कि मौजूदा सीवीओ मनोज झलानी को भी सरकार ने सीवीसी की पूर्व सहमति के बिना नियुक्ति किया। हालांकि बाद में केंद्र सरकार ने झलानी के नाम पर सीवीसी की सहमति ली लेकिन उसमें भी नियमों की अनेदखी की गई।
एम्स के सीवीओ के पद पर नियुक्त किये गये मनोज झलानी स्वास्थ्य मंत्रालय के भी सीवीओ हैं। उन्हें एम्स के सीवीओ के पद पर नियुक्त करने के लिये सरकार ने जो तरीका अपनाया वह भी सवालों के घेरे में है। विजिलेंस मेन्युअल का पैरा 2.6.1 कहता है किसी भी स्वायत्त (ऑटोनोमस) संस्थान में सीवीओ नियुक्त करने के लिये संस्थान की ओर से ही उसके (संस्थान के) तीन अधिकारियों का पैनल भेजा जाएगा।
जिस अधिकारी के नाम पर सीवीसी सहमति देगा वही सीवीओ नियुक्त होगा, लेकिन मनोज झलानी के मामले में यह तरीका नहीं अपनाया गया। मंत्रालय ने एम्स के अधिकारियों की जगह अपने ही स्वास्थ्य मंत्रालय के तीन अधिकारियों का पैनल भेजा। ये तीन अधिकारी है, श्री मनोज झलानी, श्री राकेश कुमार और सुश्री धरित्री पांडा। ये तीनों स्वास्थ्य मंत्रालय में ही ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर हैं।
सवाल उठता है कि सरकार ने कैसे एम्स के अधिकारियों की जगह स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का नाम सीवीसी के पास भेजे जबकि संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ शिकायत करने वाले जे पी नड्डा सीवीसी मैनुअल के इसी नियम की दुहाई देते रहे हैं। केंद्र में पिछले साल नई मोदी सरकार बनने के बाद संजीव चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटा दिया गया जिससे काफी विवाद खड़ा हुआ था।
एनडीटीवी इंडिया ने आपको ख़बर दिखाई थी कि उस वक्त बतौर सांसद जे पी नड्डा ने न केवल संजीव चतुर्वेदी को हटाने के लिये स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को चिट्ठियां लिखी बल्कि ये भी कहा कि एम्स में भ्रष्टाचार के उन मामलों की जांच रोकी जाए जो चतुर्वेदी ने उजागर किये हैं।
नड्डा ने तब अपनी चिट्ठियों में केंद्र सरकार को एम्स में अपनी पसंद के नए सीवीओ का नाम भी सुझाया था। अब सीवीसी के हलफनामे से यह सवाल भी खड़ा होता है कि जे पी नड्डा ने एम्स के अधिकारी की जगह मंत्रालय के अधिकारी को सीवीओ क्यों बनाया जो उनके मातहत काम करता है।
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