पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाग़पत ज़िले में गन्ना किसानों की ख़ुदकुशी के मुद्दे पर केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहन सिंह से जब एनडीटीवी-इंडिया ने सवाल पूछा कि उनके कार्यकाल में हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आत्माहत्या के मामलों की वह कितनी ज़िम्मेदारी लेते हैं और कैसे उनकी सरकार पिछली सरकार से इस मामले में अलग है, तो कृषि मंत्री ने एक अलग ही अंदाज़ में मुस्कुराते हुए कहा 'आपका ये कहना सही है की ये ख़ुदकुशी मेरी ही सरकार में हुई हैं, लेकिन ये है कलियुग… सतयुग में और त्रेता में जो पाप करता है वह उसका प्रायश्चित करता था, लेकिन कलियुग में पाप कोई करता है और प्रायश्चित किसी और को करना पड़ता है।''
कृषिमंत्री राधामोहन सिंह कुछ हलके अंदाज़ में पिछली केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ये बता रहे थे कि आज के हालात पिछली सरकार की देन है। लेकिन हाल ही में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस मामले के लिए सीधे तौर पर मौजूदा राज्य सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था।
इन दो बयानों से ये तो साफ़ है कि मौजूदा केंद्र सरकार इस मामले की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। ये बात भी सही है कि इस मामले में सीधे तौर पर केंद्र सरकार ज़िम्मेदार नहीं ठहराई जा सकती, क्योंकि कृषि राज्य के अधिकार का मामला है और उसके पास इस मामले में केंद्र से ज़्यादा अधिकार हासिल हैं।
लेकिन गन्ना किसानों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के वक़्त बीजेपी ने हमसे वायदा किया था की आप हमको वोट दो और गन्ने का पैसा दिलवाएंगे।
आपको याद दिला दूं की अकेले उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर करीब पांच हज़ार करोड़ रुपये बकाया हैं और आर्थिक हालात बिगड़ने के चलते आज़ादी के बाद पहली बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
वैसे मौजूदा केंद्र सरकार ने किसानों का पैसा दिलवाने के लिए चीनी मिलों को 4400 करोड़ का ब्याज रहित लोन और चीनी पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर चीनी मिलों को राहत देने की कोशिश की है, जिससे मिलों के पास पैसा आए और वे किसानों का पैसा चुकाए।
हालांकि यह कोई नई कोशिश नहीं है। पिछली केंद्र सरकार भी इसी तरह की कोशिश कर रही थी, लेकिन समस्या साल दर साल यूहीं चली आ रही थी।
यानि इस मामले में नई सरकार ने जो कदम उठाये, वह वही पुराने थे जो पिछली सरकार उठाती, जबकि उम्मीद ये थी कि नई सरकार कुछ नया करेगी, जिससे हालात सुधरेंगे लेकिन आज भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान कुछ नए क़दमों की बाट जोह रहे हैं।
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