
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
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लालू के करीबी शहाबुद्दीन को 11 साल बाद मिली जमानत
नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर बेल कराई रद
शहाबुद्दीन ने नीतीश पर साधा था निशाना, लालू ने साधी थी चुप्पी
हालांकि पिछले दिनों दोनों के बीच कई प्रमुख मुद्दों पर असहमति की खबरें आती रहीं लेकिन लालू का कहना है कि विपक्षी बीजेपी तथ्यों को तोड़-मोड़कर पेश करके नीतीश के साथ उनके गठबंधन को नुकसान पहुंचाना चाहती है. उनके इस दावे को बीजेपी के सिर ठीकरा फोड़ने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है.
माना जा रहा है कि मो शहाबुद्दीन के मसले पर नीतीश कुमार, लालू प्रसाद से नाराज थे. दरअसल जेल से बेल पर रिहा होने के बाद मो शहाबुद्दीन ने कहा था कि नीतीश कुमार तो ''परिस्थितियों के मुख्यमंत्री हैं''. इस टिप्पणी पर लालू प्रसाद ने खामोशी अख्तियार कर ली. शहाबुद्दीन के खिलाफ कुछ नहीं कहा. इसलिए मुख्यमंत्री के निकटस्थ सूत्रों के मुताबिक नीतीश, राजद सुप्रीमो से नाराज थे.
हालांकि बाद में शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने के मसले पर बढ़ती आलोचना के बीच राज्य सरकार ने उनकी बेल रद कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. वहां बिहार सरकार को सफलता मिली और 45 गंभीर मामलों के आरोपी शहाबुद्दीन को फिर से जेल जाना पड़ा.
लालू के समर्थकों का कहना है कि सीवान के आस-पास के क्षेत्रों में शहाबुद्दीन के रसूख के चलते लालू का 'साहेब' का विरोध सियासी लिहाज से उपयुक्त नहीं है. उल्लेखनीय है कि शहाबुद्दीन को इस इलाके में 'साहेब' के नाम से भी जाना जाता है. इसीलिए नीतीश कुमार ने शहाबुद्दीन की बेल रद कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया तो लालू प्रसाद ने इस कदम का खुले तौर पर समर्थन नहीं किया.
इसके विपरीत लालू ने नीतीश की जदयू के एक वरिष्ठ नेता से कहा कि मुख्यमंत्री, शहाबुद्दीन को जेल वापस भेजने में ''इतनी जल्दी क्यों मचा रहे हैं'' जबकि वह पहले ही 11 साल जेल में बिता चुके हैं. इस बात से भी उनकी नीतीश के साथ दूरी बढ़ी थी.
शराबबंदी के मामले में भी लालू प्रसाद निजी तौर पर मुख्यमंत्री से असहमत हैं. हालांकि नीतीश कुमार जोर-शोर से शराबबंदी नीति की पैरवी कर रहे हैं और निर्धारित अवधि से छह महीने पहले उन्होंने शराबबंदी लागू कर दी थी लेकिन इसको कठोर नीति कहकर जो आलोचना की जा रही है, लालू उससे सहमत माने जाते हैं.
इस सिलसिले में कुछ दिन पहले पटना हाई कोर्ट ने इस कानून को अवैध करार दिया था. उसके बाद राज्य सरकार के सुप्रीम कोर्ट का रुख करने के बाद शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे देते हुए कहा था कि वह इस नीति का अध्ययन करने के बाद निर्णय देगा.
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