भोपाल:
हाल ही में गुजरात में भारी बारिश से नौ एशियाई शेरों की मौत के बाद शेरों की प्रजाति को विलुप्त होने से बचाने के लिये इनमें से कुछ शेरों को मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर वन्यजीव अभ्यारण्य में स्थानांतरित करने की मांग केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से की गयी है।
वन्यजीवों और पर्यावरण की हितैषी संस्था ‘प्रयत्न’ के सचिव और वन्यप्राणी विशेषज्ञ अजय दुबे ने आज इस संबंध में एक ई-मेल केन्द्रीय वन मंत्री को भेजा है। ई मेल में उन्होंने कहा, ‘गुजरात में हाल ही में आई बारिश और बाढ़ से कई शेरों की मौत हो गयी और बाढ़ के बाद की स्थिति में वहां शेरों में महामारी फैलने का खतरा उत्पन्न हो हो गया है।’
इसमें उन्होंने लिखा है, ‘मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि आपके मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में गुजरात के गिर से मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर में शेरों के स्थानांतरण का विरोध करने संबंधी एक हलफनामा प्रस्तुत किया जाने वाला है। इससे न केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना होगी बल्कि खतरे में आई शेरों के इस नस्ल को दूसरा सुरक्षित घर देने के प्रयासों को भी धक्का लगेगा।’
ई मेल में उन्होंने कहा, ‘चूंकि आप मध्य प्रदेश से राज्यसभा से सांसद हैं, इसलिये भी आपको मध्य प्रदेश में शेरों के स्थानांतरण के प्रयासों को तेजी से अमल में लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करना चाहिये।’ दुबे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2013 में एक आदेश जारी किया था। जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि गुजरात के गीर से कुछ शेरों का स्थानांतरण मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर में किया जाये, लेकिन इस आदेश पर अब तक अमल नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि वन्य प्राणी विशेषज्ञों की राय के बाद न्यायालय ने यह आदेश दिया था। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूडब्ल्यूआई) देहरादून की 1986 में दी गयी। एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि इसमें महामारी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान देश में शेरों की रिहायश वाला यह अकेला स्थान होने से यहां उनकी नस्ल को खतरा बताया गया था तथा कुछ शेरों के यहां से स्थानांतरण का सुझाव दिया गया था।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में उनके द्वारा न्यायालय के आदेश की अवमानना का मामला न्यायालय में लगाया गया था। गुजरात में हाल ही में आई बाढ़ से कुछ शेरों की मौत के संबंध में एक रिपोर्ट शीघ्र ही पेश करके न्यायालय का ध्यान पुन: इस और लाया जायेगा। वर्ष 1993 में कुछ शेरों को मध्य प्रदेश में स्थानांतरण करने का निर्णय लिया था। लेकिन भाजपा शासित गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच लालफीताशाही और कानूनी तकरार के कारण इस निर्णय पर अब तक अमल नहीं हो पाया है।
वन्यजीवों और पर्यावरण की हितैषी संस्था ‘प्रयत्न’ के सचिव और वन्यप्राणी विशेषज्ञ अजय दुबे ने आज इस संबंध में एक ई-मेल केन्द्रीय वन मंत्री को भेजा है। ई मेल में उन्होंने कहा, ‘गुजरात में हाल ही में आई बारिश और बाढ़ से कई शेरों की मौत हो गयी और बाढ़ के बाद की स्थिति में वहां शेरों में महामारी फैलने का खतरा उत्पन्न हो हो गया है।’
इसमें उन्होंने लिखा है, ‘मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि आपके मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में गुजरात के गिर से मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर में शेरों के स्थानांतरण का विरोध करने संबंधी एक हलफनामा प्रस्तुत किया जाने वाला है। इससे न केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना होगी बल्कि खतरे में आई शेरों के इस नस्ल को दूसरा सुरक्षित घर देने के प्रयासों को भी धक्का लगेगा।’
ई मेल में उन्होंने कहा, ‘चूंकि आप मध्य प्रदेश से राज्यसभा से सांसद हैं, इसलिये भी आपको मध्य प्रदेश में शेरों के स्थानांतरण के प्रयासों को तेजी से अमल में लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करना चाहिये।’ दुबे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2013 में एक आदेश जारी किया था। जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि गुजरात के गीर से कुछ शेरों का स्थानांतरण मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर में किया जाये, लेकिन इस आदेश पर अब तक अमल नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि वन्य प्राणी विशेषज्ञों की राय के बाद न्यायालय ने यह आदेश दिया था। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूडब्ल्यूआई) देहरादून की 1986 में दी गयी। एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि इसमें महामारी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान देश में शेरों की रिहायश वाला यह अकेला स्थान होने से यहां उनकी नस्ल को खतरा बताया गया था तथा कुछ शेरों के यहां से स्थानांतरण का सुझाव दिया गया था।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में उनके द्वारा न्यायालय के आदेश की अवमानना का मामला न्यायालय में लगाया गया था। गुजरात में हाल ही में आई बाढ़ से कुछ शेरों की मौत के संबंध में एक रिपोर्ट शीघ्र ही पेश करके न्यायालय का ध्यान पुन: इस और लाया जायेगा। वर्ष 1993 में कुछ शेरों को मध्य प्रदेश में स्थानांतरण करने का निर्णय लिया था। लेकिन भाजपा शासित गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच लालफीताशाही और कानूनी तकरार के कारण इस निर्णय पर अब तक अमल नहीं हो पाया है।
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