प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) को सुरक्षा बलों को दंड में छूट देने के प्राथमिक कारणों में एक बताते हुए, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बुधवार को इसे वापस लेने की मांग करते हुए जम्मू-कश्मीर में हुए मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच 'स्वतंत्र और निष्पक्ष' प्राधिकार से कराने की मांग की।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ने सुरक्षा बलों के कर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले अनुमति या मंजूरी लेने की जरूरत को समाप्त करने की मांग की है और काफी समय से लंबित जम्मू-कश्मीर की इस समस्या के लिए 'राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी' को जिम्मेदार बताया है।
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बल के कर्मियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन की जवाबदेही तय करने में विफलता पर एमनेस्टी इंटरनेशनल की ओर से बुधवार जारी एक रिपोर्ट में उपरोक्त बातें कही गई हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 'सुरक्षा बलों को दंड में छूट देने के प्राथमिक कारणों में से एक है आफस्पा के प्रावधान ‘सात’ की मौजूदगी, जिसके तहत सुरक्षा बलों को कथित रूप से मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में अभियोजन से बचाया जाता है। इस कानूनी प्रावधान के तहत सुरक्षा बलों के सदस्यों के खिलाफ अभियोजन से पहले केंद्रीय और राज्य प्राधिकारों से पूर्वानुमति लेनी पड़ती है।’
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ने सुरक्षा बलों के कर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले अनुमति या मंजूरी लेने की जरूरत को समाप्त करने की मांग की है और काफी समय से लंबित जम्मू-कश्मीर की इस समस्या के लिए 'राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी' को जिम्मेदार बताया है।
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बल के कर्मियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन की जवाबदेही तय करने में विफलता पर एमनेस्टी इंटरनेशनल की ओर से बुधवार जारी एक रिपोर्ट में उपरोक्त बातें कही गई हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 'सुरक्षा बलों को दंड में छूट देने के प्राथमिक कारणों में से एक है आफस्पा के प्रावधान ‘सात’ की मौजूदगी, जिसके तहत सुरक्षा बलों को कथित रूप से मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में अभियोजन से बचाया जाता है। इस कानूनी प्रावधान के तहत सुरक्षा बलों के सदस्यों के खिलाफ अभियोजन से पहले केंद्रीय और राज्य प्राधिकारों से पूर्वानुमति लेनी पड़ती है।’
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