अब्दुल हमीद के शौर्य को सलाम करते हुए वर्ष 2000 में विशेष डाक टिकट जारी किया गया था।
पाकिस्तान के खिलाफ जंग में असाधारण बहादुरी का परिचय देने वाले देश के रणवांकुरों में 'परमवीर चक्र' अब्दुल हमीद का नाम भी पूरे सम्मान से लिया जाता है। यूपी के हमीद ने 1965 की भारत-पाक युद्ध में अकेले दम पर दुश्मन के कई टैंकों को ध्वस्त कर भारतीय खेमे में जबर्दस्त जोश का संचार किया था। साहस का परिचय देते हुए उन्होंने लगभग अकेले दम पर इस काम को अंजाम दिया था देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले इस जांबाज को महावीर चक्र और परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।
बचपन से ही साहसभरे काम करने में आता था मजा
आज ही के दिन यानी 1 जुलाई, 1933 को यूपी के ग़ाज़ीपुर ज़िले में एक साधारण से मुस्लिम परिवार में जन्मे हमीद को बचपन से ही साहसिक काम करने मे आनंद आता था। कुश्ती के शौकीन हमीद को लाठी चलाने के अलावा तैराकी करने में भी मजा आता था। सेना के जवानों को देखकर युवा हमीद के मन में अजब सा रोमांच भर जाता था और देश की सेवा करने की इच्छा उनके मन में जागती थी। देशसेवा के अपने इस जज्बे को पूरा करने के लिए वे वर्ष 1954 में सेना में भर्ती हुए और ग्रेनेडियर्स इन्फैन्ट्री रेजीमेंट में सेवाएं देनी प्रारंभ की। काम के प्रति अपने समर्पण के कारण जल्द ही उन्होंने साथियों के बीच अलग पहचान बना ली।
दुश्मन की फौज को अपनी जमीं पर देख खून खौल उठा
सेना ने भी उनके समर्पण भाव की कद्र करते हुए उन्होंने लांस नायक के रूप में प्रमोट कर दिया। वर्ष 1962 के भारत-चीन वार में भी हमीद को सैनिक के रूप में देश की सेवा करने का अवसर मिला। हालांकि दुश्मन के छक्के छुड़ाने की उनकी इच्छा 1965 के वार के दौरान पूरी हुए। पाकिस्तान की फौज ने हमला बोल दिया। 10 सितंबर 1965 को दुश्मन की फौजें आगे बढ़ीं और अमृतसर तक जा पहुंची। पाकिस्तानी सैनिकों को देश की सरजमीं पर देखकर तो हमीद का खून खौल उठा। उन्होंने तय किया कि दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने देंगे। इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान के टैंकों से भी दो-दो हाथ करने की ठानी।
उल्टे पांव लौटने का मजबूर हुई पाकिस्तानी फौज
पाकिस्तान के पेटन टैंकों को आगे बढ़ते देखकर हमीद ने ऐसे काम को अंजाम दिया जिसकी दुश्मन की सेना ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। अपनी तोपयुक्त जीप को उन्होंने ऊंचे स्थान पर ले जाकर ताबड़तोड़ गोले बरसाए और तीन टैंकों को नष्ट कर डाला। गौरतलब है कि अमेरिका में निर्मित पेटन टैंकों को पाकिस्तान की सैन्य क्षमता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था। हालांकि इस काम को अंजाम देने में उन्हें शहादत देनी पड़ी। पाकिस्तानी फौज की जवाबी फायरिंग में उन्हें जान गंवानी पड़ी लेकिन उनके इस साहस भरे काम ये दुश्मन की सेना के हौसले पस्त हो गए और बाद में उसे उल्टे पांव वापस लौटने को मजबूर होना पड़ा। 33 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश के लिए जान कुरबान कर दी।
सेना ने अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा
हमीद के इस जज्बे को सेल्यूट करते हुए सेना ने उन्हें अपने सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा, यह सम्मान उनकी विधवा रसूलन बी ने प्राप्त किया। सैन्य डाक सेवा ने 10 सितंबर, 1979 को उनके सम्मान में एक विशेष आवरण जारी किया है। वर्ष 2000 में देश ने अपने इस बहादुर सपूत पर एक विशेष डाक टिकट जारी किया। चौथी ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की स्मृति में सीमा पर उनकी मजार का निर्माण किया है यहां हर साल उनके शहादत दिवस पर समारोह का आयोजन किया जाता है। वाकई पूरे देश को अपने इस वीर सपूत अब्दुल हमीद पर नाज है...।
बचपन से ही साहसभरे काम करने में आता था मजा
आज ही के दिन यानी 1 जुलाई, 1933 को यूपी के ग़ाज़ीपुर ज़िले में एक साधारण से मुस्लिम परिवार में जन्मे हमीद को बचपन से ही साहसिक काम करने मे आनंद आता था। कुश्ती के शौकीन हमीद को लाठी चलाने के अलावा तैराकी करने में भी मजा आता था। सेना के जवानों को देखकर युवा हमीद के मन में अजब सा रोमांच भर जाता था और देश की सेवा करने की इच्छा उनके मन में जागती थी। देशसेवा के अपने इस जज्बे को पूरा करने के लिए वे वर्ष 1954 में सेना में भर्ती हुए और ग्रेनेडियर्स इन्फैन्ट्री रेजीमेंट में सेवाएं देनी प्रारंभ की। काम के प्रति अपने समर्पण के कारण जल्द ही उन्होंने साथियों के बीच अलग पहचान बना ली।
दुश्मन की फौज को अपनी जमीं पर देख खून खौल उठा
सेना ने भी उनके समर्पण भाव की कद्र करते हुए उन्होंने लांस नायक के रूप में प्रमोट कर दिया। वर्ष 1962 के भारत-चीन वार में भी हमीद को सैनिक के रूप में देश की सेवा करने का अवसर मिला। हालांकि दुश्मन के छक्के छुड़ाने की उनकी इच्छा 1965 के वार के दौरान पूरी हुए। पाकिस्तान की फौज ने हमला बोल दिया। 10 सितंबर 1965 को दुश्मन की फौजें आगे बढ़ीं और अमृतसर तक जा पहुंची। पाकिस्तानी सैनिकों को देश की सरजमीं पर देखकर तो हमीद का खून खौल उठा। उन्होंने तय किया कि दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने देंगे। इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान के टैंकों से भी दो-दो हाथ करने की ठानी।
उल्टे पांव लौटने का मजबूर हुई पाकिस्तानी फौज
पाकिस्तान के पेटन टैंकों को आगे बढ़ते देखकर हमीद ने ऐसे काम को अंजाम दिया जिसकी दुश्मन की सेना ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। अपनी तोपयुक्त जीप को उन्होंने ऊंचे स्थान पर ले जाकर ताबड़तोड़ गोले बरसाए और तीन टैंकों को नष्ट कर डाला। गौरतलब है कि अमेरिका में निर्मित पेटन टैंकों को पाकिस्तान की सैन्य क्षमता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था। हालांकि इस काम को अंजाम देने में उन्हें शहादत देनी पड़ी। पाकिस्तानी फौज की जवाबी फायरिंग में उन्हें जान गंवानी पड़ी लेकिन उनके इस साहस भरे काम ये दुश्मन की सेना के हौसले पस्त हो गए और बाद में उसे उल्टे पांव वापस लौटने को मजबूर होना पड़ा। 33 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश के लिए जान कुरबान कर दी।
सेना ने अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा
हमीद के इस जज्बे को सेल्यूट करते हुए सेना ने उन्हें अपने सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा, यह सम्मान उनकी विधवा रसूलन बी ने प्राप्त किया। सैन्य डाक सेवा ने 10 सितंबर, 1979 को उनके सम्मान में एक विशेष आवरण जारी किया है। वर्ष 2000 में देश ने अपने इस बहादुर सपूत पर एक विशेष डाक टिकट जारी किया। चौथी ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की स्मृति में सीमा पर उनकी मजार का निर्माण किया है यहां हर साल उनके शहादत दिवस पर समारोह का आयोजन किया जाता है। वाकई पूरे देश को अपने इस वीर सपूत अब्दुल हमीद पर नाज है...।
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