
मिड डे मिल के लिए आधार नंबर जरूरी
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मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी किया
मिड डे मील स्कीम के तहत 12 लाख स्कूलों के 12 करोड़ बच्चों को भोजन
सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा, गरीब और जरूरतमंद बच्चों को होगा नुकसान
मिड डे मील स्कीम के तहत देश में 12 लाख स्कूलों के 12 करोड़ बच्चों को दोपहर का खाना दिया जाता है. इस योजना पर सरकार सालाना करीब साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये खर्च करती है. आठवीं तक के बच्चों को इस योजना के तहत खाना मिलता है.
गौरतलब है कि सरकार तमाम सुविधाएं आधार नंबर से जोड़ रही है. उसका कहना है कि वह इससे फर्जीवाड़ा रोकना चाहती है. लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि मिड डे मील जैसी योजना में आधार को जरूरी बनाना बहुत गलत है, क्योंकि इससे देश के बहुत गरीब और जरूरतमंद बच्चे इसके फायदे से महरूम रह जाएंगे. "फर्जीवाड़ा रोकने का ये तरीका नहीं है. उसे रोकने के लिए सरकार को योजना को उम्दा तरीके से लागू कराना चाहिए ताकि अधिक से अधिक बच्चे स्कूल आएं. हमने देखा है कि जहां लोगों की योजना में भागेदारी है और वह अच्छी तरह से चल रही है वहां कोई गड़बड़ी होंने की गुंजाइश ही नहीं रह जाती. जहां तक आधार का सवाल है हमने देखा है कि किस तरह पीडीएस और मनरेगा जैसी योजनाओं का फायदा लोगों को नहीं मिल रहा क्योंकि उनके फिंगर प्रिंट मैच नहीं करते.“
सरकार मे मिड डे मील स्कीम के तहत काम करने वाले रसोइयों के लिए भी आधार नंबर अनिवार्य कर दिया है. देश में करीब 25 लाख रसोइए स्कूलों में खाना बनाने का काम करते हैं जिन्हें 1000 रुपये महीने दिया जाता है.
सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए आधार की अनिवार्यता को लेकर पहले ही विवाद हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशानिर्देशों में साफ कहा है कि किसी व्यक्ति को सिर्फ आधार न होने की वजह से किसी सरकारी योजना के फायदे से महरूम नहीं रखा जा सकता. ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
उधर दिल्ली रोजी रोटी अभियान ने पीडीएस योजना में आधार की अनिवार्यता के खिलाफ दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दी है जिसकी सुनवाई अगले हफ्ते होगी. अभियान से जुड़ी अमृता जौहरी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के इतने साफ दिशा निर्देशों के बाद भी सरकार हर उस योजना में आधार को ला रही है जहां गरीबों को फायदा मिल सकता है.ऐसा लगता है कि सरकार आधार की आड़ में लागों को सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं से वंचित करना चाहती है."
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