व्यापमं घोटाले के आरोपी सुधीर शर्मा की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
भोपाल की जेल में दो ऐसे कैदियों का एक साल पूरा होने जा रहा है, जिन्हें एक वक्त मध्य प्रदेश की राजनीति में 'बेहद ताकतवर' माना जाता था।
इनमें से एक हैं लक्ष्मीकांत शर्मा, जो वर्ष 2003 और 2013 के बीच राज्य के उच्च व तकनीकी शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री और खनन मंत्री रहे, और दूसरा है सुधीर शर्मा, जो '2000 के पहले दशक की शुरुआत में कॉलेज लेक्चरर की नौकरी छोड़कर मंत्री जी से सहायक के रूप में जुड़ा, और जिसकी बदौलत न सिर्फ उसने बेशुमार दौलत कमाई, बल्कि व्यापक राजनैतिक संपर्क भी स्थापित किए।
अगर लक्ष्मीकांत और सुधीर शर्मा पर लगे आरोपों की बात करें, तो दोनों ने हाथ आई ताकत के बूते गलत तरीकों से अथाह पैसा कमाया। दोनों पर आरोप है कि उन्होंने व्यापमं घोटाले में मुख्य भूमिका निभाई, जो कई साल तक मध्य प्रदेश तक सीमित रहा था, लेकिन पिछले कुछ दिनों में राष्ट्रीय स्कैन्डल बन गया है, क्योंकि चर्चाएं हैं कि इस घोटाले से जुड़े 30 से भी ज़्यादा लोग रहस्यमयी तरीके से मारे गए हैं।
व्यापमं घोटाले के नाम उस संस्था के नाम व्यावसायिक परीक्षा मंडल (संक्षेप में व्यापमं) से पड़ा, जो राज्य के कॉलेजों में दाखिले के साथ-साथ लगभग 40 सरकारी विभागों में भर्तियों के लिए भी परीक्षाएं आयोजित कराती है। असली परीक्षार्थियों के स्थान पर किसी अन्य से परीक्षाएं लिखवाने के लिए रिश्वतें ली गईं, और इसी को लेकर बड़े नताओं और वरिष्ठ नौकरशाहों पर गैरकानूनी कमाई के आरोप लगे।
48-वर्षीय सुधीर शर्मा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित एक स्कूल और बाद में विदिशा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापक के रूप में नौकरी की। लक्ष्मीकांत शर्मा से सुधीर की मुलाकात विदिशा में ही हुई, और उस समय लक्ष्मीकांत विधायक थे। वर्ष 2003 में लक्ष्मीकांत शर्मा जब उमा भारती की सरकार में खनन मंत्री बन गए, सुधीर ने उनके स्टाफ के रूप में काम करना शुरू किया, और वर्ष 2006 में सुधीर ने खनन के क्षेत्र में भाग्य आजमाने के लिए वह नौकरी भी छोड़ दी।
यह कदम सुधीर के लिए 'सोने की खान' साबित हुआ, और उसके बाद उसने कॉलेजों के ग्रुप VNS ग्रुप का अधिग्रहण किया, जिसमें इंजीनियरिंग और शैक्षणिक शिक्षा दी जाती थी। वर्ष 2010 में सुधीर को भारतीय जनता पार्टी के मध्य प्रदेश एजुकेशन सेल का प्रमुख बना दिया गया। वर्ष 2012 में सुधीर के चलते ही व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक (examination controller) के रूप पंकज त्रिवेदी की नियुक्ति हुई, जिसकी बदौलत भारी कमाई की गई। उस समय लक्ष्मीकांत शर्मा तकनीकी शिक्षा मंत्री थे।
जांचकर्ताओं के मुताबिक यह घोटाला इसी दौरान सबसे ज़्यादा फला-फूला। दो साल बाद, मेडिकल कॉलेजों में भर्ती में घपले के आरोप में पंकज त्रिवेदी गिरफ्तार हो गए, और उनके कब्ज़े से महत्वपूर्ण सबूत बरामद हुए, जिनमें कम्प्यूटर फाइलें भी शामिल थीं, जिनसे मामले के तार राज्यपाल रामनरेश यादव और लक्ष्मीकांत शर्मा जैसे कई राजनैतिक दिग्गजों से जुड़ गए।
वर्ष 2013 तक सुधीर और लक्ष्मीकांत शर्मा का प्रभुत्व लगभग खत्म हो गया था। व्यापमं को लेकर लगे आरोपों की वजह से लक्ष्मीकांत चुनाव हार चुके थे, और सुधीर के ठिकानों पर खनन के कारोबार को बढ़ावा देने की खातिर सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोपों के चलते छापे पड़ चुके थे।
वर्ष 2013 की ही एक इन्कम टैक्स रिपोर्ट के मुताबिक, सुधीर शर्मा के कब्ज़े से मिली डायरियों से पता चला कि 2010 से 2013 के बीच उसने बीजेपी और आरएसएस के शीर्ष नेताओं की हवाई टिकटों और यात्राओं से जुड़े अन्य खर्चे उठाए (जिनके नाम इनमें हैं, वे किसी भी तरह के गलत काम में शिरकत से इनकार कर चुके हैं)। रिपोर्ट के अनुसार, सुधीर शर्मा को व्यापमं घोटाले से जुड़े दो कॉलेजों से लगातार पैसा आता था, जो तुरंत ही मंत्री जी के सहायक को भेज दिए जाते थे। रिपोर्ट के मुताबिक, यहां मंत्री जी लक्ष्मीकांत शर्मा हैं, जिनके इस करोड़पति से 'गहरे ताल्लुकात' की जांच होनी चाहिए।
राज्य सरकार ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब यह जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के हवाले है, सो, इंतज़ार करना होगा।
इनमें से एक हैं लक्ष्मीकांत शर्मा, जो वर्ष 2003 और 2013 के बीच राज्य के उच्च व तकनीकी शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री और खनन मंत्री रहे, और दूसरा है सुधीर शर्मा, जो '2000 के पहले दशक की शुरुआत में कॉलेज लेक्चरर की नौकरी छोड़कर मंत्री जी से सहायक के रूप में जुड़ा, और जिसकी बदौलत न सिर्फ उसने बेशुमार दौलत कमाई, बल्कि व्यापक राजनैतिक संपर्क भी स्थापित किए।
अगर लक्ष्मीकांत और सुधीर शर्मा पर लगे आरोपों की बात करें, तो दोनों ने हाथ आई ताकत के बूते गलत तरीकों से अथाह पैसा कमाया। दोनों पर आरोप है कि उन्होंने व्यापमं घोटाले में मुख्य भूमिका निभाई, जो कई साल तक मध्य प्रदेश तक सीमित रहा था, लेकिन पिछले कुछ दिनों में राष्ट्रीय स्कैन्डल बन गया है, क्योंकि चर्चाएं हैं कि इस घोटाले से जुड़े 30 से भी ज़्यादा लोग रहस्यमयी तरीके से मारे गए हैं।
व्यापमं घोटाले के नाम उस संस्था के नाम व्यावसायिक परीक्षा मंडल (संक्षेप में व्यापमं) से पड़ा, जो राज्य के कॉलेजों में दाखिले के साथ-साथ लगभग 40 सरकारी विभागों में भर्तियों के लिए भी परीक्षाएं आयोजित कराती है। असली परीक्षार्थियों के स्थान पर किसी अन्य से परीक्षाएं लिखवाने के लिए रिश्वतें ली गईं, और इसी को लेकर बड़े नताओं और वरिष्ठ नौकरशाहों पर गैरकानूनी कमाई के आरोप लगे।
48-वर्षीय सुधीर शर्मा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित एक स्कूल और बाद में विदिशा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापक के रूप में नौकरी की। लक्ष्मीकांत शर्मा से सुधीर की मुलाकात विदिशा में ही हुई, और उस समय लक्ष्मीकांत विधायक थे। वर्ष 2003 में लक्ष्मीकांत शर्मा जब उमा भारती की सरकार में खनन मंत्री बन गए, सुधीर ने उनके स्टाफ के रूप में काम करना शुरू किया, और वर्ष 2006 में सुधीर ने खनन के क्षेत्र में भाग्य आजमाने के लिए वह नौकरी भी छोड़ दी।
यह कदम सुधीर के लिए 'सोने की खान' साबित हुआ, और उसके बाद उसने कॉलेजों के ग्रुप VNS ग्रुप का अधिग्रहण किया, जिसमें इंजीनियरिंग और शैक्षणिक शिक्षा दी जाती थी। वर्ष 2010 में सुधीर को भारतीय जनता पार्टी के मध्य प्रदेश एजुकेशन सेल का प्रमुख बना दिया गया। वर्ष 2012 में सुधीर के चलते ही व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक (examination controller) के रूप पंकज त्रिवेदी की नियुक्ति हुई, जिसकी बदौलत भारी कमाई की गई। उस समय लक्ष्मीकांत शर्मा तकनीकी शिक्षा मंत्री थे।
जांचकर्ताओं के मुताबिक यह घोटाला इसी दौरान सबसे ज़्यादा फला-फूला। दो साल बाद, मेडिकल कॉलेजों में भर्ती में घपले के आरोप में पंकज त्रिवेदी गिरफ्तार हो गए, और उनके कब्ज़े से महत्वपूर्ण सबूत बरामद हुए, जिनमें कम्प्यूटर फाइलें भी शामिल थीं, जिनसे मामले के तार राज्यपाल रामनरेश यादव और लक्ष्मीकांत शर्मा जैसे कई राजनैतिक दिग्गजों से जुड़ गए।
वर्ष 2013 तक सुधीर और लक्ष्मीकांत शर्मा का प्रभुत्व लगभग खत्म हो गया था। व्यापमं को लेकर लगे आरोपों की वजह से लक्ष्मीकांत चुनाव हार चुके थे, और सुधीर के ठिकानों पर खनन के कारोबार को बढ़ावा देने की खातिर सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोपों के चलते छापे पड़ चुके थे।
वर्ष 2013 की ही एक इन्कम टैक्स रिपोर्ट के मुताबिक, सुधीर शर्मा के कब्ज़े से मिली डायरियों से पता चला कि 2010 से 2013 के बीच उसने बीजेपी और आरएसएस के शीर्ष नेताओं की हवाई टिकटों और यात्राओं से जुड़े अन्य खर्चे उठाए (जिनके नाम इनमें हैं, वे किसी भी तरह के गलत काम में शिरकत से इनकार कर चुके हैं)। रिपोर्ट के अनुसार, सुधीर शर्मा को व्यापमं घोटाले से जुड़े दो कॉलेजों से लगातार पैसा आता था, जो तुरंत ही मंत्री जी के सहायक को भेज दिए जाते थे। रिपोर्ट के मुताबिक, यहां मंत्री जी लक्ष्मीकांत शर्मा हैं, जिनके इस करोड़पति से 'गहरे ताल्लुकात' की जांच होनी चाहिए।
राज्य सरकार ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब यह जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के हवाले है, सो, इंतज़ार करना होगा।
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