7 साल के अविनाश राउत और उसके पिता की एक पुरानी तस्वीर
नई दिल्ली:
दिल्ली के लॉडो सराय इलाके में एक ही परिवार के तीन लोगों का दुखद अंत हो गया। पहले डेंगू की वजह से 7 साल के अविनाश ने दम तोड़ दिया और फिर बेटे की मौत से दुखी उसके माता-पिता लक्ष्मीचंद और बबीता ने घर की चौथी मंजिल से कूदकर मौत को गले लगा लिया। दंपति ने एक सुसाइड नोट भी लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा कि उनका बेटा उन्हें बुला रहा है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, लॉडो सरॉय में किराये के एक मकान में रहने वाले ओडिशा के लक्ष्मीचंद्र और उनकी पत्नी बबीता अपने सात साल के बच्चे अविनाश के साथ रहते थे। अविनाश पहली कक्षा में पढ़ता था।
लक्ष्मीचंद्र के पड़ोसियों के मुताबिक, 7 सितंबर की शाम अविनाश की तबियत बिगड़ गई। इससे पहले वह 3-4 दिन घर के पास ही एक नर्सिंग होम में भर्ती रहा। हालत सुधरती ना देख मां-बाप बच्चे को मैक्स साकेत और फिर मूलचंद मेडिसिटी हॉस्पीटल ले गए, लेकिन दोनों अस्पतालों ने बेड की कमी की बात कहकर बच्चे को भर्ती करने से मना कर दिया। उसके बाद बच्चे को तुगलकाबाद इलाके के बत्रा हॉस्पीटल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।
बच्चे की मौत से दुखी उसकी मां बबिता ने पहले हॉस्पीटल में ही खुदकुशी करने की कोशिश की, लेकिन किसी तरह लक्ष्मीचंद्र ने रोक लिया। हालांकि बच्चे का अंतिम संस्कार करने के बाद 8-9 सितंबर की रात लक्ष्मीचंद्र और बबिता ने अपने हाथ में दुपट्टा बांधकर घर की चौथी मंजिल से छलांग लगा दी।
सरकार ने दिए जांच के आदेश
इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने जांच के आदेश दे दिए हैं और दिल्ली सरकार ने साकेत के मैक्स और मूलचंद मेडिसिटी अस्पताल को नोटिस जारी किया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है कि दोनों ही अस्पतालों के लायसेंस भी रद्द किए जा सकते थे, लेकिन डेंगू के लगातार बढ़ते मामलों की वजह से ऐसा करना मुमकिन नहीं हो पा रहा है।
अस्पताल ने दी सफाई
वहीं मूलचंद मेडिसिटी अस्पताल का कहना है कि जब बच्चे को लाया गया, तब उसकी नब्ज़ काफी कम थी और उसका इलाज भी किया गया था। लेकिन बेड की कमी की वजह से उसे बत्रा अस्पताल भेज दिया गया, जिसके लिए मूलचंद ने अपनी ही एम्बुलेंस का प्रबंध करवाया था।
दिल्ली में डेंगू के बढ़ते मामले
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल दिल्ली में डेंगू के 1,259 मामले सामने आए हैं, जिनमें 3 लोगों की मौत हो चुकी है। दिल्ली में कुल 33 सरकारी और करीब 1000 प्राइवेट नर्सिंग होम और अस्पताल हैं। सरकारी अस्पतालों में डेगूं के मरीजों के लिए 30 बेड होना अनिवार्य है। इसके अलावा 10 प्रतिशत बेड और बढ़ाने को कहा गया है। बहरहाल तमाम सरकारी दावों की हकीकत अविनाश और उसके मां बाप की दुखद मौत से साफ हो जाती है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, लॉडो सरॉय में किराये के एक मकान में रहने वाले ओडिशा के लक्ष्मीचंद्र और उनकी पत्नी बबीता अपने सात साल के बच्चे अविनाश के साथ रहते थे। अविनाश पहली कक्षा में पढ़ता था।
लक्ष्मीचंद्र के पड़ोसियों के मुताबिक, 7 सितंबर की शाम अविनाश की तबियत बिगड़ गई। इससे पहले वह 3-4 दिन घर के पास ही एक नर्सिंग होम में भर्ती रहा। हालत सुधरती ना देख मां-बाप बच्चे को मैक्स साकेत और फिर मूलचंद मेडिसिटी हॉस्पीटल ले गए, लेकिन दोनों अस्पतालों ने बेड की कमी की बात कहकर बच्चे को भर्ती करने से मना कर दिया। उसके बाद बच्चे को तुगलकाबाद इलाके के बत्रा हॉस्पीटल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।
बच्चे की मौत से दुखी उसकी मां बबिता ने पहले हॉस्पीटल में ही खुदकुशी करने की कोशिश की, लेकिन किसी तरह लक्ष्मीचंद्र ने रोक लिया। हालांकि बच्चे का अंतिम संस्कार करने के बाद 8-9 सितंबर की रात लक्ष्मीचंद्र और बबिता ने अपने हाथ में दुपट्टा बांधकर घर की चौथी मंजिल से छलांग लगा दी।
सरकार ने दिए जांच के आदेश
इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने जांच के आदेश दे दिए हैं और दिल्ली सरकार ने साकेत के मैक्स और मूलचंद मेडिसिटी अस्पताल को नोटिस जारी किया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है कि दोनों ही अस्पतालों के लायसेंस भी रद्द किए जा सकते थे, लेकिन डेंगू के लगातार बढ़ते मामलों की वजह से ऐसा करना मुमकिन नहीं हो पा रहा है।
अस्पताल ने दी सफाई
वहीं मूलचंद मेडिसिटी अस्पताल का कहना है कि जब बच्चे को लाया गया, तब उसकी नब्ज़ काफी कम थी और उसका इलाज भी किया गया था। लेकिन बेड की कमी की वजह से उसे बत्रा अस्पताल भेज दिया गया, जिसके लिए मूलचंद ने अपनी ही एम्बुलेंस का प्रबंध करवाया था।
दिल्ली में डेंगू के बढ़ते मामले
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल दिल्ली में डेंगू के 1,259 मामले सामने आए हैं, जिनमें 3 लोगों की मौत हो चुकी है। दिल्ली में कुल 33 सरकारी और करीब 1000 प्राइवेट नर्सिंग होम और अस्पताल हैं। सरकारी अस्पतालों में डेगूं के मरीजों के लिए 30 बेड होना अनिवार्य है। इसके अलावा 10 प्रतिशत बेड और बढ़ाने को कहा गया है। बहरहाल तमाम सरकारी दावों की हकीकत अविनाश और उसके मां बाप की दुखद मौत से साफ हो जाती है।
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