निर्भया के पिता बद्रीनाथ सिंह का फाइल फोटो...
नई दिल्ली:
16 दिसंबर 2012... इस तारीख को देश के इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता. चार साल पहले आज ही के दिन घटित इस घटना ने न सिर्फ देश, बल्कि दुनिया को भी हिलाकर रख दिया. छह लोगों ने राजधानी दिल्ली में एक चलती बस में निर्भया के साथ दरिंदगी की, जिसके चलते वह कुछ दिन तक जिंदगी और मौत से जूझती रही और फिर दुनिया से रुखसत हो गई. इस घटना के बाद दिल्ली समेत देशभर में लोगों के गुस्से का सैलाब उमड़ा. लोग आरोपियों के लिए सख्त से सख्त सजा की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए. सत्ता के गलियारे तक इस घटना से हिल गिए.
इन चार सालों में देश में हालात कितने बदले.. महिलाएं कितनी सुरक्षित हुईं.. कानून-व्यवस्था कितनी दुरुस्त हुई.. सरकारें और लोग कितने संवेदनशील हुए... इसको लेकर हमने निर्भया के पिता बद्रीनाथ सिंह से बातचीत की और उनकी राय जानी. उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-
1. निर्भया गैंगरेप की घटना को आज चार साल बीत गए. हालात कितने बदले हुए पाते हैं?
चार साल बीत गए, लेकिन हालात सुधरे नहीं, बल्कि और बद से बदतर होते चले जा रहे हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं. बच्चियों को भी नहीं बख्शा जा रहा. न्याय की तो कोई उम्मीद ही नहीं रहती. कोई भी घटना हो जाती है तो न्याय की उम्मीद करना ही नामुमकिन सा हो जाता है. जब हमारे केस (निर्भया मामले) में भी चार साल बाद न्याय नहीं मिला तो दूसरों में क्या उम्मीद रखेंगे. लोअर कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाते-जाते पता नहीं, जिसे न्याय चाहिए वह रहेगा भी या नहीं, कुछ पता नहीं होता. हालात अब भी नहीं बदले हैं. बस लोगों में जागृति जरूर आई है. समाज अपनी जगह ठीक है. जहां न्याय नहीं है.. व्यवस्था नहीं है तो वहां पर समाज भी क्या करेगा? लोग दो-चार दिन आवाज उठाएंगे, लेकिन कितने दिन तक उनकी आवाज बुलंद रहेगी. कितने दिन तक लोग ऐसी घटनाओं पर आंसू बहाएंगे. कुल मिलाकर हमारे देश में व्यवस्था बड़ी दर्दनाक है. जब हम सुप्रीम कोर्ट में जाते हैं.. वहां के हालात देखते हैं, तो लगता है कि पता नहीं भगवान ने हमें किसलिए जन्म दिया, क्यों धरती पर भेजा है.
2. ज्योति की कौन-कौन सी बातें हैं, जो आपके दिलो-दिमाग में आज भी बसी हैं?
ज्योति हमारे रोम-रोम में बसी है. कोई ऐसा दिन नहीं होता जब सुबह आंखें खुलती हों और ज्योति की याद न आए. कोई ऐसी रात नहीं होती जब हमें सोते वक्त ज्योति की यादें न सताती हो. कोई ऐसा समय नहीं होता, जहां मैं और ज्योति की मां बैठे हों और उसकी चर्चा न चलती हो. वह हर वक्त हमारे खयालों में रहती है. हम लोग एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं. हमारी स्थिति उसे मेडिकल की पढ़ाई करवाने की नहीं थी, लेकिन उसका यही कहना था कि 'पापा आप घबराइए नहीं. हम लोग मैनेज कर लेंगे. सारी व्यवस्था ठीक हो जाएगी. हां, थोड़ा वक्त जरूर लगेगा. जब मैं मेडिकल की पढ़ाई कर कुछ बन जाऊंगी तो सारे हालात बदल जाएंगे.' हमें उस पर हमेशा ही गर्व रहा है. दरअसल, हमारे एक बड़े भाई साहब जज हैं. हमने एक बार उसे बातों-बातों में कहा कि बेटा तुमको तो उनकी (जज की) बेटी होना चाहिए था, ताकि तुम अच्छे से पढ़ पातीं. तो ज्योति बोली 'नहीं पापा... मैं उनकी बेटी होती तो शायद नहीं पढ़ पाती. आप लोग हमारे लिए बहुत कुछ हैं. आपने ऐसी परिस्थिति में भी मुझे पढ़ाने के लिए कभी मना नहीं किया.' तो उसकी कुछ ऐसी यादें हैं, जो हमेशा ज़ेहन में रहती हैं.
3. निर्भया गैंगरेप केस के बाद भी कई हृदयविदारक घटनाएं हुईं. महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार और अपराध में अब भी कमी नहीं आई. आप कहां कमी पाते हैं.. सुधार की कहां जरूरत है?
कमी सिर्फ सरकार की मानसिकता की है. अदालतों में जजों की कमी है. महिलाओं के प्रति सरकार का पूर्ण ध्यान है ही नहीं. हम सारा दोष सरकार को देते हैं, क्योंकि इतने बड़े-बड़े, लंबे-चौड़े भाषण होते हैं.. बातें होती हैं, लेकिन महिलाओं को लेकर कोई नहीं कह पाता कि वे सुरक्षित हैं या नहीं... वह सुरक्षित होंगी या नहीं होंगी. जिनके साथ कुछ घटना हो जाती है, उन्हें कैसे न्याय मिलेगा? यहां पर आकर विश्वास टूट जाता है. क्रिमिनल मिठाई का डिब्बा लेकर जेल से निकलते हैं. यह दर्शाते हुए कि जो करना है, कर लो. जब पीड़ितों की ऐसी दुर्दशा हो तो हम तो सरकार का ही कुसूर कहेंगे.
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4. निर्भया केस का फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रायल चला, लेकिन क्या इंसाफ मिलने की रफ्तार से आप संतुष्ट हैं?
जहां तक कानून से मदद की बात है, जहां भी हम जाते हैं, तो लोग कहते हैं कि आपका केस सुप्रीम कोर्ट में है, आपको न्याय मिलेगा.. लेकिन ''मिलेगा'' ही कहते हैं न.. यह नहीं कहते कि कितने दिनों में न्याय मिलेगा. यही समस्या हमारे सामने है और अन्य मुद्दइयों के सामने भी. लोग कोर्ट के धक्के खाते रहते हैं. पुलिस वक्त पर चार्जशीट भी दाखिल नहीं कर पाती. संवेदनशील मामलों के पीड़ितों से सरकार के उच्च अधिकारी मिलकर बात करें, समस्या के समाधान को लेकर उनसे पूछें, तभी तो कुछ हो सकता है.
5. अब कितने लोग आपके साथ खड़े हैं. क्या उस समय का सहयोग अब केवल दिलासा में बदल गया है?
हमारे साथ खड़े लोगों में कमी नहीं आई है. सोशल मीडिया पर आज भी लोग हमारे साथ खड़े हैं. लोग हमेशा सड़कों पर नहीं रह सकते, लेकिन जनता का समर्थन हमारे पास आज भी बहुत है.
6. इस समय की 'आप' सरकार ने उस वक्त निर्भया मामले को जितनी संवेदनशीलता से उठाया था, क्या वह सरकार में आने के बाद उतनी ही संवेदनशील दिखती है?
जरा भी नहीं दिखती. क्योंकि उनकी सिर्फ बातें थीं. बातों में आकर विश्वास कर जनता पूर्ववर्ती सरकार को बदलकर उन्हें सत्ता में लाई, लेकिन यह सरकार अपना काम नहीं कर पाई. हमें सभी सरकारों से सिर्फ यही अपेक्षा है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून-व्यवस्था को सही करें. न्याय व्यवस्था को सही किया जाए, ताकि महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराध को रोका जा सके और उन्हें न्याय मिल सके.
7. महिलाओं के खिलाफ अपराध और अपनी बेटी के लिए पूर्ण इंसाफ को लेकर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ कहना चाहते हैं? आपकी उनसे क्या अपेक्षा है?
हमारी पीएम से सिर्फ यही अपेक्षा है कि जैसे उन्होंने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को चलाया, उसी तरह देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई अभियान चलाएं.
इन चार सालों में देश में हालात कितने बदले.. महिलाएं कितनी सुरक्षित हुईं.. कानून-व्यवस्था कितनी दुरुस्त हुई.. सरकारें और लोग कितने संवेदनशील हुए... इसको लेकर हमने निर्भया के पिता बद्रीनाथ सिंह से बातचीत की और उनकी राय जानी. उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-
1. निर्भया गैंगरेप की घटना को आज चार साल बीत गए. हालात कितने बदले हुए पाते हैं?
चार साल बीत गए, लेकिन हालात सुधरे नहीं, बल्कि और बद से बदतर होते चले जा रहे हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं. बच्चियों को भी नहीं बख्शा जा रहा. न्याय की तो कोई उम्मीद ही नहीं रहती. कोई भी घटना हो जाती है तो न्याय की उम्मीद करना ही नामुमकिन सा हो जाता है. जब हमारे केस (निर्भया मामले) में भी चार साल बाद न्याय नहीं मिला तो दूसरों में क्या उम्मीद रखेंगे. लोअर कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाते-जाते पता नहीं, जिसे न्याय चाहिए वह रहेगा भी या नहीं, कुछ पता नहीं होता. हालात अब भी नहीं बदले हैं. बस लोगों में जागृति जरूर आई है. समाज अपनी जगह ठीक है. जहां न्याय नहीं है.. व्यवस्था नहीं है तो वहां पर समाज भी क्या करेगा? लोग दो-चार दिन आवाज उठाएंगे, लेकिन कितने दिन तक उनकी आवाज बुलंद रहेगी. कितने दिन तक लोग ऐसी घटनाओं पर आंसू बहाएंगे. कुल मिलाकर हमारे देश में व्यवस्था बड़ी दर्दनाक है. जब हम सुप्रीम कोर्ट में जाते हैं.. वहां के हालात देखते हैं, तो लगता है कि पता नहीं भगवान ने हमें किसलिए जन्म दिया, क्यों धरती पर भेजा है.
2. ज्योति की कौन-कौन सी बातें हैं, जो आपके दिलो-दिमाग में आज भी बसी हैं?
ज्योति हमारे रोम-रोम में बसी है. कोई ऐसा दिन नहीं होता जब सुबह आंखें खुलती हों और ज्योति की याद न आए. कोई ऐसी रात नहीं होती जब हमें सोते वक्त ज्योति की यादें न सताती हो. कोई ऐसा समय नहीं होता, जहां मैं और ज्योति की मां बैठे हों और उसकी चर्चा न चलती हो. वह हर वक्त हमारे खयालों में रहती है. हम लोग एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं. हमारी स्थिति उसे मेडिकल की पढ़ाई करवाने की नहीं थी, लेकिन उसका यही कहना था कि 'पापा आप घबराइए नहीं. हम लोग मैनेज कर लेंगे. सारी व्यवस्था ठीक हो जाएगी. हां, थोड़ा वक्त जरूर लगेगा. जब मैं मेडिकल की पढ़ाई कर कुछ बन जाऊंगी तो सारे हालात बदल जाएंगे.' हमें उस पर हमेशा ही गर्व रहा है. दरअसल, हमारे एक बड़े भाई साहब जज हैं. हमने एक बार उसे बातों-बातों में कहा कि बेटा तुमको तो उनकी (जज की) बेटी होना चाहिए था, ताकि तुम अच्छे से पढ़ पातीं. तो ज्योति बोली 'नहीं पापा... मैं उनकी बेटी होती तो शायद नहीं पढ़ पाती. आप लोग हमारे लिए बहुत कुछ हैं. आपने ऐसी परिस्थिति में भी मुझे पढ़ाने के लिए कभी मना नहीं किया.' तो उसकी कुछ ऐसी यादें हैं, जो हमेशा ज़ेहन में रहती हैं.
3. निर्भया गैंगरेप केस के बाद भी कई हृदयविदारक घटनाएं हुईं. महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार और अपराध में अब भी कमी नहीं आई. आप कहां कमी पाते हैं.. सुधार की कहां जरूरत है?
कमी सिर्फ सरकार की मानसिकता की है. अदालतों में जजों की कमी है. महिलाओं के प्रति सरकार का पूर्ण ध्यान है ही नहीं. हम सारा दोष सरकार को देते हैं, क्योंकि इतने बड़े-बड़े, लंबे-चौड़े भाषण होते हैं.. बातें होती हैं, लेकिन महिलाओं को लेकर कोई नहीं कह पाता कि वे सुरक्षित हैं या नहीं... वह सुरक्षित होंगी या नहीं होंगी. जिनके साथ कुछ घटना हो जाती है, उन्हें कैसे न्याय मिलेगा? यहां पर आकर विश्वास टूट जाता है. क्रिमिनल मिठाई का डिब्बा लेकर जेल से निकलते हैं. यह दर्शाते हुए कि जो करना है, कर लो. जब पीड़ितों की ऐसी दुर्दशा हो तो हम तो सरकार का ही कुसूर कहेंगे.
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निर्भया फंड : योजनाओं के धीमे क्रियान्वयन पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को फटकार
निर्भया कांड - तीन माह में कानून में बदलाव पर अदालत चार साल में नहीं बदली
निर्भया कांड की बरसी पर याद आते सवाल...
निर्भया के बाद कानून में बहुत कुछ बदला होगा, लेकिन समाज कतई नहीं बदला...
4. निर्भया केस का फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रायल चला, लेकिन क्या इंसाफ मिलने की रफ्तार से आप संतुष्ट हैं?
जहां तक कानून से मदद की बात है, जहां भी हम जाते हैं, तो लोग कहते हैं कि आपका केस सुप्रीम कोर्ट में है, आपको न्याय मिलेगा.. लेकिन ''मिलेगा'' ही कहते हैं न.. यह नहीं कहते कि कितने दिनों में न्याय मिलेगा. यही समस्या हमारे सामने है और अन्य मुद्दइयों के सामने भी. लोग कोर्ट के धक्के खाते रहते हैं. पुलिस वक्त पर चार्जशीट भी दाखिल नहीं कर पाती. संवेदनशील मामलों के पीड़ितों से सरकार के उच्च अधिकारी मिलकर बात करें, समस्या के समाधान को लेकर उनसे पूछें, तभी तो कुछ हो सकता है.
5. अब कितने लोग आपके साथ खड़े हैं. क्या उस समय का सहयोग अब केवल दिलासा में बदल गया है?
हमारे साथ खड़े लोगों में कमी नहीं आई है. सोशल मीडिया पर आज भी लोग हमारे साथ खड़े हैं. लोग हमेशा सड़कों पर नहीं रह सकते, लेकिन जनता का समर्थन हमारे पास आज भी बहुत है.
6. इस समय की 'आप' सरकार ने उस वक्त निर्भया मामले को जितनी संवेदनशीलता से उठाया था, क्या वह सरकार में आने के बाद उतनी ही संवेदनशील दिखती है?
जरा भी नहीं दिखती. क्योंकि उनकी सिर्फ बातें थीं. बातों में आकर विश्वास कर जनता पूर्ववर्ती सरकार को बदलकर उन्हें सत्ता में लाई, लेकिन यह सरकार अपना काम नहीं कर पाई. हमें सभी सरकारों से सिर्फ यही अपेक्षा है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून-व्यवस्था को सही करें. न्याय व्यवस्था को सही किया जाए, ताकि महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराध को रोका जा सके और उन्हें न्याय मिल सके.
7. महिलाओं के खिलाफ अपराध और अपनी बेटी के लिए पूर्ण इंसाफ को लेकर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ कहना चाहते हैं? आपकी उनसे क्या अपेक्षा है?
हमारी पीएम से सिर्फ यही अपेक्षा है कि जैसे उन्होंने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को चलाया, उसी तरह देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई अभियान चलाएं.
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