26 मई 2014 को पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में 'मोदी लहर' के दम पर बीजेपी पहली बार केंद्र की सत्ता में अपने दम पर सरकार बनाई थी. देश के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण घटना थी क्योंकि पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के निधन के बाद कांग्रेस ने राजीव गांधी की अगुवाई में प्रचंड बहुत से सरकार बनाई थी लेकिन फिर बाद में 30 दशकों तक गठबंधन की राजनीति का दौर शुरू हो गया. साझेदारी की राजनीति ने देश का भला कम नुकसान ज्यादा किया, ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण रहे हैं जहां सिद्धांत कम, व्यक्तिगत स्वार्थ महत्वाकांक्षाओं ने कई सरकारों को बनया और बिगाड़ा.
देश के राजनीतिक इतिहास में 26 मई अहम है क्योंकि 2014 में शानदार चुनावी जीत के बाद नरेन्द्र मोदी ने आज ही के दिन देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी. 2019 में नरेन्द्र मोदी ने लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला और इस बार भी 26 मई की तारीख का एक खास महत्व था. दरअसल 26 मई 2019 को ही राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई थी कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 30 मई को नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरे होने को है और इस देश में शासन करते हुए उसे 6 साल हो गए हैं. लेकिन साल 2020 इस केंद्र सरकार के सामने कई संकटों को साथ लेकर आया है.
कोरोना वायरस का प्रकोप
साल के शुरुआत में ही कोरोना वायरस का संकट देश में शुरू हो गया था. तब से लेकर के आंकड़ों पर ध्यान दें तो कोरोना के मरीजों की संख्या डेढ़ लाख से बस थोड़ा ही कम रह गई है. इस बीमारी से 4 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है. हालांकि केंद्र सरकार का दावा है कि कोरोना से लड़ने लिए बेड, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन और तमाम उपकरण पर्याप्त मात्रा में जुटा लिए गए हैं. लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये है कि इस बीमारी की जब तक कोई वैक्सीन नहीं मिल जाती है, कुछ भी कहना मुश्किल है. पूरी दुनिया में इस बीमारी का प्रकोप है.
लॉकडाउन ने छीनी नौकरी
कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए बीते 25 मार्च से देश में लॉकडाउन जारी है. इसके चलते उद्योग-धंधे, दुकानें, रेल-मेट्रो, हाइवे सेवाएं, बसें, मॉल सब कुछ बंद कर दिया गया. इससे हालात ये पैदा हुए कि मजदूरों-कामगारों के पास काम नहीं था और उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया. बड़ी कंपनियों ने भी छंटनी शुरू कर दिया. प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया.
चीन सीमा पर दे रहा है चुनौती
चीन के वुहान से फैले कोरोना वायरस की वजह से पहले ही इस देश को पूरी दुनिया के लोग शक की निगाहों से देख रही है. इसी बीच भारत के साथ भी उसका तनाव चरम पर पहुंच गया है. लद्धाख में जहां बीआरओ के कामकाज पर आपत्ति जताई है और आक्रामक तरीके से सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है. कई बार भारतीय सेना के साथ उसके सैनिकों की झड़प भी हो चुकी है. कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की हरकतें परेशान करनी वाली हैं. वह लगातार अपने सैनिकों की संख्या सीमा पर बढ़ा रहा है.
टिड्डियों का हमला
इसी बीच अफ्रीकी देशों से चले टिड्डियों के एक झुंड ने किसानों के लिए एक बड़ा संकट पैदा कर दिया है. इनकी वजह से हजारों करोड़ रुपये की फसल का नुकसान होने की आशंका है. मध्य प्रदेश से निकलकर अब ये महाराष्ट्र के विदर्भ में पहुंच गई हैं. यूपी के झांसी में कल ही फायर ब्रिगेड को केमिकल के साथ तैयार रहने के लिए कहा गया है. कहा जा रहा है कि 27 साल बाद टिड्डियों का ऐसा हमला हुआ है.
आर्थिक मोर्चे पर चुनौती
साल 2019 से ही आशंका जताई जा रही थी कि पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है और रही-सही कसर कोरोन वायरस ने पूरी कर दी है. भारत में भी इस संकट से अछूता नहीं है. जो प्रवासी मजदूर पलायन करके अपने घरों की ओर वापस लौटे हैं उनको रोजगार देना बड़ी चुनौती है. भारत पहले से ही बेरोजगारी झेल रहा था. ऐसे में जब आर्थिक गतिविधियां ठप हैं इन प्रवासियों की रोजी-रोटी की व्यवस्था करने बड़ी चुनौती है.
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