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This Article is From Apr 21, 2015

मिशन क्लीन गंगा के लिए खर्च होंगे 25 हजार करोड़ रुपये

मिशन क्लीन गंगा के लिए खर्च होंगे 25  हजार करोड़ रुपये
वाराणसी: गंगा सफाई को लेकर अब कुछ हलचल होती दिखाई पड़ रही हालांकि अभी ये हलचल जांच पड़ताल और योजनाओं को बनाने की क़वायद तक ही है।

इसी के तहत वाराणसी में नमामि गंगा प्लान को कैसे सफल किया जाये, गंगा में गिर रहे नाले और सीवर को कैसे रोका जाये, इसके लिये कितने एमएलडी का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाये और गंगा के घाटों को कैसे साफ़ किया जाये, इस पर वाराणसी के नगर निगम और अधिकारीयों से बात कर ठोस क़दम उठाने के लिए के लिये नेशनल मिशन क्लीन गंगा के संयुक्त सचिव टीवीएसएन प्रसाद सोमवार को वाराणसी पहुंचे।

उन्होंने बनारस के घाट और अस्सी नाले का घूम कर जायजा भी लिया। इस दौरान उन्होंने बताया कि अब तक गंगा की सफाई के लिए जितना खर्च हुआ उससे 6 गुना ज्यादा खर्च होगा। यही नहीं घाटों की सफाई और गंगा में फेंके जा रहे पूजा के सामानों को निकालने के लिए अब एजेंसियो को जिम्मा सौपा जायेगा। ये भी जानकारी दी कि अब तक गंगा के लिए 4 हजार करोड़ रुपये खर्च हो गए हैं और अब इससे 6 गुना खर्च होगा जो 25 हजार करोड़ रुपये तक आएगा जिसकी मंजूरी के लिए हमने कैबिनेट को डिटेल भेज दी हैं।

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से मिशन गंगा की रफ़्तार को तेजी देने की कवायद शुरू हो रही है। साथ ही गंगा की सफाई गंगा के सात प्रदेशों और शहरों से भी शुरू की जाएगी। जिसमें वाराणसी में एक नया ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जायेगा। वाराणसी में गंगा में लगभग 300 एमएलडी शहर का सीवेज गिरता है, जिसमे से केवल 102 एमएलडी ही सीवेज ट्रीट हो पाता है।

गंगा सफाई में कुछ ऐसी योजना भी शुरू हो रही हैं जो गंगा को ऊपर से भी साफ़ किया जा सके, जैसे गंगा में फेंकी जा रही गन्दगी या पूजा के सामानों को गंगा से निकालना, जिसके लिए सात एजेंसियों से बात भी हो गयी है जो गंगा में से पूजा के सामानों को निकालेंगे। यही नहीं, नई योजना के तहत गंगा किनारों, घाट की सफाई करने के लिए वैक्युम क्लीनर से भी साफ़ करने की योजना लाई जा रही हैं। गंगा में कोई गन्दगी न फैला सके इसके लिये एक टास्क फ़ोर्स गठित करने की भी बात है।

कहने का मतलब ये कि गंगा की सफाई की ये क़वायद वही पुरानी है जो पिछली सरकारें करती रही हैं। इसमे करोड़ों रुपया भी बहा लेकिन गंगा की हालत क्या है ये आप देख ही रहे है। एक बार फिर ये वैसी ही क़वायद लगती है। यही वजह है कि नदी वैज्ञानिक और गंगा बेसिन अथॉरिटी का हिस्सा रहे प्रोफ़ेसर बी.डी. त्रिपाठी बताते है कि अब तक गंगा को साफ़ करने के लिए करोड़ों की योजनाएं आईे और पैसा खर्च भी हुआ पर गंगा पहले से भी मैली हुई। इसलिए जरूरी है कि गंगा के प्रदूषण को साफ़ करने की बजाय गंगा के पानी को छोड़ा जाए, तभी गंगा साफ़ हो पाएगी और उसके बाद ही सभी योजनाएं लागू भी हो पाएंगी।

गंगा के नेचुरल फ्लो को लाने की बात दशकों से उठ रही है लेकिन कोई भी सरकार इसको न जाने क्यों नज़र अंदाज़ कर भारी भरकम खर्च वाली योजनाओं पर भरोसा कर रही है जिससे गंगा कभी साफ़ नहीं हो सकी। ये बात आम लोग और गंगा पर काम कर रहे लोगों की समझ से परे है।

बहरहाल नामानि गंगे और नेशनल रिवर फॉर गंगा काम चाहे जैसे भी करे, इनका पहला प्रयास फिलहाल गंगा में जाने वाले प्रदुषण को रोकना है जिसकी शुरुआत गंगा किनारे बसे शहरों से की जायेगी और खर्च भी ज्‍यादा आएगा। अब देखना ये होगा कि पहले की सरकारों की तरह योजनाएं सिर्फ योजनाओं तक सिमित रहती हैं कि गंगा को कुछ इसका फायदा भी होगा।

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