भारत में हर साल 24 लाख लोगों की मौत अचानक दिल का दौरा पड़ने से होती है, जिसमें से 17 लाख लोग ऐसे हैं, जो समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं और अगर ये लोग समय पर अस्पताल पहुंच जाएं तो इनमें से 12 लाख लोगों की जानें बचाई जा सकती है। ये कहना है भारत के जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन में मानक महासचिव के तौर पर काम करने वाले डॉ केके अग्रवाल का।
एनडीटीवी इंडिया ने रोड पर एंबुलेंस को रास्ता देने को लेकर राइट-लेन को बनाइए लाइफ-लेन नाम से मुहिम छेड़ी हुई है जिसके ज़रिए हम लगातार सड़कों की हकीकत और ट्रैफिक से जूझती एंबुलेंस की तस्वीर आम लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इस मुहीम का मकसद किसी भी कराण जाम में फंसी एंबुलेंस और उसमें जीवन और मौत से लड़ती जिंदगी को आप रास्ता देने में देरी ना करें। क्योंकि वक्त का एक-एक लम्हा मरीज़ के लिए कीमती होता है और ऐसी सूरत में फौरन इलाज ना मिले तो जान पर बन सकती है। ये बात सिर्फ दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था की नहीं है बल्कि पूरे देश का हाल कुछ ऐसा ही है जिसकी तस्दीक आंकड़े भी करते हैं।
इस मुहिम को मुकाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आम-लोगों पर है। हमारी कोशिश बस उन्हें जागरूक करने की है। याद कीजिए कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान बनी ब्लू-लेन जिसका इस्तेमाल सिर्फ खिलाड़ियों और खेल से जुड़े अधिकारियों के लिए होता था, लेकिन आम काम वाले दिनों में किसी एक लेन को हमेशा खाली रखने से बेहतर है इमरजेंसी के हालात में उसे फौरन खाली कर देना। दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट सीपी, ट्रैफिक अनिल शुक्ला के अनुसार नियम से ज्य़ादा ज़रूरी है कि लोग समझदार और जिम्मेदार बनें। इस संदर्भ में समय-समय पर ट्रैफिक पुलिस भी मुहिम चलाती रहती है। इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने इमरजेंसी एंबुलेंस की राह में रोड़ा बनने वाली गाड़ियों को लेकर 2000 रुपये का चालान काटने का भी नियम बनाया है।
समस्या एक सोच का भी है, किसी एंबुलेंस को रास्ता देने भर से अगर मरीज़ को कुछ मिनटों पहले इलाज मिल सकता है और ये लम्हे उसके लिए बेशकीमती हो सकते हैं तो ऐसे में हम खुद को राह का रोड़ा बनाकर देरी के जिम्मेदार क्यों बनें।
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