प्रतीकात्मक फोटो
मुंबई:
मुंबई से 16 भारतीय इस साल कुवैत गए थे, लेकिन उनका आरोप है कि महीने डेढ़ महीने बाद ही उन्हें काम मिलना बंद हो गया है. एक वीडियो के जरिए वे अपनी तकलीफ बता रहे हैं उनका कहना है कि कंपनी वापस लौटने नहीं दे रही वहीं भारतीय दूतावास भी उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से वाया मुंबई 16 नौजवान 4 फरवरी को कुवैत पहुंचे थे. इमारत और सड़क सफाई के काम में लगी एक कंपनी का इन्हें कॉन्ट्रैक्ट मिला था लेकिन आरोप है कि अब कारपेंटर की जगह यह दिहाड़ी मजदूर बना दिए गए हैं. आमदनी इतनी कम कि दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो रहा है. वीडियो में एक शख्स कह रहा है " हमें छह महीने हो गए हैं, डेढ़ महीने तक काम मिला अब काम है नहीं कंपनी के पास. खाने को भी कुछ नहीं मिल रहा ... हम लोग बहुत परेशान हैं. हम वापस लौटना चाहते हैं. दूतावास जाते हैं तो कोई सुनवाई नहीं होती, वे कहते हैं जाकर अपने मुदीर से बात करो, मुदीर कहता है कि भारत जाना है तो पैसे दो टिकट मंगवाओ फिर जाने है तो जाओ. लेकिन हम कहां से पैसे लाएंगे. इतने पैसे लगाकर आए, यहां से पैसे लगाकर कैसे जाएंगे, हम बहुत गरीब हैं। हमें किसी तरह भारत जाना है।"
इन लोगों का आरोप है कि कंपनी पासपोर्ट वापस नहीं कर रही. भारतीय दूतावास भी इनकी कोई मदद नहीं कर रहा. बड़ी मुश्किलों से उन्होंने यह वीडियो भेजा है, जिसके बाद मुंबई से सटे नालासोपारा में रहने वाले एक शख्स ने उनकी शिकायत विदेश मंत्रालय तक पहुंचाई है. राष्ट्रीय चौहान महासंघ के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश चौहान के मुताबिक अध्यक्ष, उनकी परिस्थिति बहुत खराब है घरवाले बहुत रो रहे हैं. दोनों एक-दूसरे से मिलने को तरस रहे हैं. कंपनी के मालिक का कहना है कि 50000 रुपये देने पर ही हम पासपोर्ट देंगे. सरकार की तरफ से कुछ खास पहल नहीं दिख रही है.
खाड़ी देशों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 60 लाख भारतीय काम करते हैं, लेकिन तेल के खेल और राजनीतिक अस्थिरता से वहां की कंपनियां बंद हो गई हैं. इससे कई भारतीयों के सामने रोजी का संकट खड़ा हो गया है. वहीं कुछ मामले ऐसे भी हैं जो ठगी और फर्जीवाड़े के चक्कर में विदेशों में जा फंसे हैं. विदेश मंत्रालय सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय है, ऐसे में परेशान परिजनों को उम्मीद है कि महीने बात जाने के बाद ऐसी सक्रियता ज़मीन पर भी दिखे और उनके अपने वापस लौट आएं.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से वाया मुंबई 16 नौजवान 4 फरवरी को कुवैत पहुंचे थे. इमारत और सड़क सफाई के काम में लगी एक कंपनी का इन्हें कॉन्ट्रैक्ट मिला था लेकिन आरोप है कि अब कारपेंटर की जगह यह दिहाड़ी मजदूर बना दिए गए हैं. आमदनी इतनी कम कि दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो रहा है. वीडियो में एक शख्स कह रहा है " हमें छह महीने हो गए हैं, डेढ़ महीने तक काम मिला अब काम है नहीं कंपनी के पास. खाने को भी कुछ नहीं मिल रहा ... हम लोग बहुत परेशान हैं. हम वापस लौटना चाहते हैं. दूतावास जाते हैं तो कोई सुनवाई नहीं होती, वे कहते हैं जाकर अपने मुदीर से बात करो, मुदीर कहता है कि भारत जाना है तो पैसे दो टिकट मंगवाओ फिर जाने है तो जाओ. लेकिन हम कहां से पैसे लाएंगे. इतने पैसे लगाकर आए, यहां से पैसे लगाकर कैसे जाएंगे, हम बहुत गरीब हैं। हमें किसी तरह भारत जाना है।"
इन लोगों का आरोप है कि कंपनी पासपोर्ट वापस नहीं कर रही. भारतीय दूतावास भी इनकी कोई मदद नहीं कर रहा. बड़ी मुश्किलों से उन्होंने यह वीडियो भेजा है, जिसके बाद मुंबई से सटे नालासोपारा में रहने वाले एक शख्स ने उनकी शिकायत विदेश मंत्रालय तक पहुंचाई है. राष्ट्रीय चौहान महासंघ के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश चौहान के मुताबिक अध्यक्ष, उनकी परिस्थिति बहुत खराब है घरवाले बहुत रो रहे हैं. दोनों एक-दूसरे से मिलने को तरस रहे हैं. कंपनी के मालिक का कहना है कि 50000 रुपये देने पर ही हम पासपोर्ट देंगे. सरकार की तरफ से कुछ खास पहल नहीं दिख रही है.
खाड़ी देशों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 60 लाख भारतीय काम करते हैं, लेकिन तेल के खेल और राजनीतिक अस्थिरता से वहां की कंपनियां बंद हो गई हैं. इससे कई भारतीयों के सामने रोजी का संकट खड़ा हो गया है. वहीं कुछ मामले ऐसे भी हैं जो ठगी और फर्जीवाड़े के चक्कर में विदेशों में जा फंसे हैं. विदेश मंत्रालय सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय है, ऐसे में परेशान परिजनों को उम्मीद है कि महीने बात जाने के बाद ऐसी सक्रियता ज़मीन पर भी दिखे और उनके अपने वापस लौट आएं.
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