प्रतीकात्मक चित्र
मेंगलुरु:
एक सहकारी सोसायटी का 50,400 रुपये का कर्ज नहीं चुका पाने के कारण अपना 2.29 एकड़ खेत गंवाने के बाद एक व्यक्ति पिछले 14 सालों से जंगल में रह रहा है।
उस व्यक्ति की इस हालत के बारे में जानकारी सामने के बाद जिले के अधिकारी उसके पुनर्वास के लिए प्रयास कर रहे हैं। यह व्यक्ति सुलिया के पास जंगलों में एकाकी जीवन जीने को मजबूर है और टोकरी बुनकर अपना जीवन यापन कर रहा है।
वर्ष 2002 में चंद्रशेखर गौड़ा (43) 50,400 रुपये का कर्ज नहीं चुका सके और नेल्लुरू कामराजे सहकारी सोसायटी ने उनकी 2.29 एकड़ जमीन नीलाम कर दी। इसके बाद उनका वनवास शुरू हुआ और अपने रहने के लिए स्थान खोजने की जुगत में वह पिछले 14 सालों से जंगल में रह रहे हैं।
उन्होंने एक पुरानी कार खरीदी और सुलिया के निकट जंगल में उसे खड़ा करके कार को ही अपना घर बना लिया। इन सालों में टोकरियों को बेचने के लिए सप्ताह में एक बार वह 21 किलोमीटर पैदल चल कर सुलिया जाते हैं। वह एक टोकरी 40 रुपये में बेचते हैं।
इस कहानी को हाल में एक कन्नड़ चैनल ने प्रसारित किया जिसके बाद दक्षिण कन्नड़ के उपायुक्त एबी इब्राहिम का ध्यान गौड़ा की स्थिति पर गया। डीसी कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि इब्राहिम ने गौड़ा के पुनर्वास के लिए पहल शुरू कर दी है।
उस व्यक्ति की इस हालत के बारे में जानकारी सामने के बाद जिले के अधिकारी उसके पुनर्वास के लिए प्रयास कर रहे हैं। यह व्यक्ति सुलिया के पास जंगलों में एकाकी जीवन जीने को मजबूर है और टोकरी बुनकर अपना जीवन यापन कर रहा है।
वर्ष 2002 में चंद्रशेखर गौड़ा (43) 50,400 रुपये का कर्ज नहीं चुका सके और नेल्लुरू कामराजे सहकारी सोसायटी ने उनकी 2.29 एकड़ जमीन नीलाम कर दी। इसके बाद उनका वनवास शुरू हुआ और अपने रहने के लिए स्थान खोजने की जुगत में वह पिछले 14 सालों से जंगल में रह रहे हैं।
उन्होंने एक पुरानी कार खरीदी और सुलिया के निकट जंगल में उसे खड़ा करके कार को ही अपना घर बना लिया। इन सालों में टोकरियों को बेचने के लिए सप्ताह में एक बार वह 21 किलोमीटर पैदल चल कर सुलिया जाते हैं। वह एक टोकरी 40 रुपये में बेचते हैं।
इस कहानी को हाल में एक कन्नड़ चैनल ने प्रसारित किया जिसके बाद दक्षिण कन्नड़ के उपायुक्त एबी इब्राहिम का ध्यान गौड़ा की स्थिति पर गया। डीसी कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि इब्राहिम ने गौड़ा के पुनर्वास के लिए पहल शुरू कर दी है।
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