थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है, जो आमतौर पर बच्चे में जन्म से ही होता है. यह एक वंशानुगत रोग यानी हेरेडिटरी है, जो जीन के माध्यम से माता-पिता से बच्चे में आता है. थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है. एक माइनर थैलेसीमिया और दूसरा मेजर थैलेसीमिया. माइनर थैलेसीमिया वाले बच्चों में खून कभी भी सामान्य के स्तर तक नहीं पहुंच पाता यह हमेशा कम रहता है, लेकिन ये स्वस्थ जीवन जी लेते हैं. वहीं, मुश्किल बड़ी मेजर थैलेसीमिया वाले बच्चों के लिए होती है. उन्हें लगभग हर 21 दिन या हर महीने खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है.
क्या होता है थैलेसीमिया?
क्योंकि थैलेसीमिया एक तरह का रक्त विकार यानी ब्लड डिसऑर्डर है. तो सबसे पहले समझते हैं खून को. ये तो हम सबको पता है कि खून पतला तरल पदार्थ है, जो हमारी नसों में दौड़ता है. यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा और लाल रंग का तरल द्रव्य है. खून को एक जीवित ऊतक यानी living tissue माना जाता है. द्वारका के मणिपाल हॉस्पिटल में रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट के हेड डॉ पुनीत खन्ना से एक वीडियो के दौरान बातचीत में हमें बताया था कि इंसान के खून में दो चीजों से मिलकर बना है. एक ब्लड सेल्स और दूसरी प्लाज्मा. ब्लड सेल्स तीन तरह के होते हैं पहले रेड ब्लड सेल, दूसरी वाइट ब्लड सेल, तीसरी प्लेट्लेट्स. प्लाज्मा खून का लिक्विड पार्ट है. इसी में ब्ल्ड सेल्स तैर कर शरीर के अंगों तक पहुंचते हैं. इतना ही नहीं प्लाज्मा ही आंतों से अवशोषित पोषक तत्वों को शरीर के अलग-अलग अंगों तक पहुंचाता है. यानी शरीर के हर अंग तक उसका भोजन पहुचाने का काम प्लाज्मा करता है यानी की प्लाज्मा ही आपके अंदर की दुनिया का स्वीगी डीलिवरी एजेंट है.
खैर ये तो हो गई आपके जीके की बात. अब प्लाज्मा से हट कर लौटते हैं थैलेसीमिया पर. ब्लड के सबसे कर्मठ कर्मचारी
इसमें लाल रक्त कणिकाएं यानी रेड ब्लड सेल्स होते हैं. ये शरीर के हर अंग तक आक्सीजन पहुंचाते हैं. ये रेड ब्लड सेल्स बोन मैरो लगातार बनाता रहता है. इनकी एक उम्र होती है, जो कुछ दिनों से लेकर 120 दिनों तक मानी जाती है. इसके बाद ये सेल्स ब्रेक हो जाते हैं. रेड ब्लड सेल्स के ब्रेक होने का प्रोसेस शरीर में एक तय अनुपात में चलता रहता है. आपका शरीर इस अनुपात को बरकरार रखता है, ताकी शरीर में खून की कमी न हो. लेकिन जब ये रेड ब्लड सेल्स सही तरीके से नहीं बनते या उनकी उम्र सामान्य से बहुत कम होती है यानी ये बहुत ही कम समय में ब्रेक हो जाते हैं तो इससे थैलेसीमिया की स्थिति पैदा होती है.
कैसे होता है थैलेसीमिया
बच्चे को माइनर थैलेसीमिया होगा या मेजर थैलेसीमिया यह पूरी तरह से उसके माता पिता क्रोमोजोम पर निर्भर होता है. अगर मां या पिता दोनों में से किए एक के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होते हैं, तो बच्चे मे माइनर थैलेसीमिया की संभावना बढ़ती है. वहीं, मां और पिता दोनों के ही क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं, तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति पैदा कर देता है. ऐसा होने पर बच्चे में जन्म के तीन से 6 महीने के बाद खून बनना बंद हो सकता है.
अब ये समझ लेते हैं कि थैलेसीमिया में शरीर के अंदर होता क्या है
थैलेसीमिया रोगी के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण सामान्य गति से नहीं हो पाता या जो रेड सेल्स बनते हैं या शरीर में मौजूद रहते हैं वे भी बहुत जल्दी ब्रेक हो जाते हैं यानी उनकी उम्र कम रहती है. ऐसे में यह शरीर की जरूरत के मुताबिक रेड ब्ल्ड सेल्स न बनने से शरीर के अंगों तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंचता और कई दूसरी तरह की परेशानियां हो सकती है.
बार-बार चढ़ाना पड़ता है खून
दुखद है कि जिन बच्चों में थैलेसीमिया रोग होता है वे बहुत उम्र नहीं देख पाते. आमतौर पर जो लंबी उम्र तक जीवित होते हैं वे भी उतने सेहतमंद या दुरुस्त नहीं होते. शरीर में रेड ब्लड सेल्स की तकरीबन 120 दिन होती है. लेकिन थैलेसीमिया के मरीजों में यह करीब-करीब 20 दिन की होती है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि इन लोगों को हर 21 दिन बाद खून चढ़ाया जाए.
क्यों और किसे होता है थैलेसीमिया?
असल में थैलेसीमिया एक वंशानुगत रोग है. यह माता-पिता से बच्चों में आता है. ऐसी कई जांच भी मौजूद हैं. जिनसे यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में पल रहे बच्चे में इसके होने की कितनी संभावना है. माता या पिता किसी एक को भी थैलेसीमिया है, तो गर्भ से ही बच्चा इस रोग से ग्रस्त हो सकता है. वहीं अगर माता-पिता दोनों ही माइनर थैलेसीमिया से पीडि़त हैं, तो भी बच्चे में मेजर थैलेसीमिया होने की संभावना काफी बढ़ जाती है.
क्योंकि यह एक वंशानुगत रोग है, तो इससे बचा कैसे जाए
इससे बचने के लिए जरूरी है कि अगर माता या पिता में से किसी एक को भी मेजर थैलेसीमिया है, तो वे डॉक्टरी निगरानी में बच्चा प्लान करें.
शादी से पहले लड़का और लड़की को अपने ब्लड टेस्ट करवा कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे दोनों ही माइनर थैलेसीमिया से पीडि़त न हों.
माता या पिता में से किसी एक को भी मेजर थैलेसीमिया है, तो गर्भधारण के चार महीने के अंदर भ्रूण की जांच कराई जा सकती है.
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