विज्ञापन
This Article is From Aug 10, 2022

Cognitive Behavioral Therapy: क्या है कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी, क्यों और कैसे की जाती है? जानिए फायदे और तरीका

Cognitive Behavioral Therapy: कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी को बोलचाल की भाषा में सीबीटी भी कहा जाता है. ये एक किस्म की टॉक थेरेपी कही जा सकती है,.जिसमें साइकोलॉजिस्ट या फिर काउंसलर से संपर्क किया जाता है.

Cognitive Behavioral Therapy: क्या है कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी, क्यों और कैसे की जाती है? जानिए फायदे और तरीका
Cognitive Behavioral Therapy:

Cognitive Behavioral Therapy: दिनभर के बिजी शेड्यूल और उसके बाद मीडिया, सोशल मीडिया के दौर में अपनों से ही बात करने की फुर्सत नहीं है. हालात ये हैं कि माता पिता बच्चे एक ही कमरे में मौजूद होते हैं, लेकिन बातचीत का दौर बहुत छोटा होता है. उसके बाद सब अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो जाते हैं. कम बातचीत का नतीजा ये है कि जो बात करना चाहता है वो भी मन मसोस कर रह जाता है और अपने तनाव खुद ही झेलता है. ये तनाव कई बार सामान्य से आगे बढ़कर मानसिक बीमारी का रूप ले लेता है, जिससे निजात पाने के लिए फिर ऐसा कोई एक्सपर्ट ढूंढना पड़ता है जो सिर्फ बात करने के लिए समय दे सके. बातचीत के इसी तरीके को कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी कहा जाता है.

क्या होती है कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी? | What Is Cognitive Behavioral Therapy?

कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी को बोलचाल की भाषा में सीबीटी भी कहा जाता है. ये एक किस्म की टॉक थेरेपी कही जा सकती है, जिसमें साइकोलॉजिस्ट या फिर काउंसलर से संपर्क किया जाता है, जो तनाव से पीड़ित मरीजों से बातचीत करते हैं. खासतौर से किसी बुरे दौर से गुजरे मरीजों को इस तरह की थेरेपी की जरूरत होती है.

Chemotherapy से गुजर रहे मरीजों की Diet कैसी होनी चाहिए? यहां वह सब कुछ है जो आपको जानना चाहिए

कैसे की जाती है कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी? | How Is Cognitive Behavioral Therapy Done?

इस थेरेपी में काउंसलर सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति से सामान्य बातचीत करते हैं. इस बातचीत के जरिए काउंसलर ये जानने की कोशिश करते हैं कि व्यक्ति किस बात को लेकर तनाव में है. सके दिमाग में उठ रहे निगेटिव थॉट्स की वजह क्या है. इस बातचीत के जरिए वो मरीज के तनाव की जड़ तक जाने की कोशिश करते हैं.

  • कई बार मौजूदा दौर के हालात ठीक होते हैं. ऐसे में टॉक थेरेपी के तहत काउंसलर बचपन से जुड़ी बातचीत भी करते हैं.
  • थेरेपी के पांच से छह सत्र होने के बाद काउंसल किसी नतीजे पर पहुंचते हैं. और फिर उस तनाव की वजह को जड़ से दूर करने की कोशिश करते हैं.
  • मरीज की कंडीशन के हिसाब से काउंसलर ये तय करते हैं कि मरीजो को दवा देने की जरूरत है या नहीं.
  • इस थेरेपी की खास बात ये है कि इसे किसी भी उम्र में लिया जा सकता है. साथ ही जब तक दवा की जरूरत नहीं पड़ती तब तक मरीज को कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता.

महिलाओं के लिए 5 बेस्ट वर्कआउट्स, अपर बॉडी को करते हैं टोन और फ्लेक्सिबल

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com