पीरियड्स औरत की लाइफ का नेचुरल प्रोसेस है और इसका महिलाओं की सेहत से गहरा नाता भी होता है. पीरियड्स का ज्यादा या कम होना, जल्दी या देर से होना, ये सारी चीजें महिलाओं की सेहत पर असर डालते हैं. पीरियड्स को लेकर कई सवाल होते हैं, जो बार-बार महिलाओं के मन में आते रहते हैं, जैसे इर्रेगुलर पीरियड्स क्या हैं ?, पीरियड्स के दौरान शरीरिक संबंध बनाना ठीक है या गलत? पीरियड्स शुरू होने की नॉर्मल एज क्या है? पीरियड्स की सही जानकारी किसी भी लड़की या महिला के जीवन को आसान बनाने में मदद कर सकती है. इसलिए आइए आज हम डॉ. नुपुर गुप्ता (निदेशक, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, फोर्टिस गुरुग्राम) से पीरिड्स से जुड़े इन तमाम सवालों के जवाब बारे में जानते हैं, जो आपके पीरिड्स से जुड़े सारी आशंकाओं को दूर कर सकते हैं.
सवाल: हर महीने पीरियड्स क्यों होते है ? नॉर्मल मेंस्ट्रुअल साइकिल क्या है ? पीरियड्स को कब असामान्य कहा जा सकता है ?जवाब : हर महीने अंडेदानी एक एग बनाती है. अगर एग को स्पर्म नहीं मिलता, तो गर्भाशय में तैयार ब्लड और टिशू की परत की जरूरत खत्म हो जाती है और ऐसे में यही परत नष्ट होकर यूट्रस से बाहर निकल जाती है, जिसे पीरियड्स कहते हैं. नॉर्मल मेंस्ट्रुअल साइकिल 3 से 5 दिन दिन तक रहता है और 21 से 35 दिन में वापस आ जाता है. लेकिन अगर बीच-बीच में ब्लीडिंग हो, जरूरत से ज्यादा ब्लड लॉस हो, क्लोट हो या बहुत ज्यादा दर्द हो तो यह नॉर्मल मेंस्ट्रुएशन नहीं है. अमूमन लड़कियों को 9 से 16 साल के बीच पीरियड्स आ जाते है. लेकिन कुछ एनवायरमेंटल, जेनेटिक या फिर स्ट्रेस की वजह से आजकल पीरियड्स जल्दी हो जाते है. वहीं कुछ हार्मोनल प्रॉब्लम या सेहत संबंधी परेशानी की वजह से पीरियड्स देर से होते है. अगर 16 साल की उम्र तक पीरियड्स न हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं.
जवाब: पीरियड्स से फिजिकल और मेंटल हेल्थ में बदलाव आते है. थकान होना, सिरदर्द, मूड स्विंग होना, ब्रेस्ट में सूजन, चिड़चिड़ापन, बैचेनी जैसी समस्याएं हो सकती हैं, जिसे प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम यानि की पीएमएस कहते है. यह लक्षण अगर गंभीर हो जाए तो डॉक्टर की मदद लेनी पड़ सकती है. इस समय चीनी और नमक का सेवन सीमित मात्रा में करें. एल्कोहल का सेवन और स्मोकिंग न करें, ऑयली और स्पाइसी खाना न खाएं. कैल्शियम और बी-6 का सप्लीमेंट लें, अदरक वाली चाय पिएं. योग या एक्सरसाइज करें. इस समय ज्यादा से ज्यादा अपनी सेहत का ध्यान रखें.
जवाब: अगर मेंस्ट्रुअल साइकिल 21 दिन से पहले और 35 दिन से लेट हो तो इसे इर्रेगुलर पीरियड्स कहते हैं. इसका मुख्य कारण हार्मोनल इंबैलेंस होता है. वैसे ज्यादा एक्सरसाइज करना, डाइट का ज्यादा या कम होना भी इर्रेगुलर पीरियड्स के कारण हो सकते है. रजोदर्शन या रजोनिवृत्ति के समय भी एक से डेढ़ साल तक इर्रेगुलर पीरियड्स होना नॉर्मल है. कभी-कभी फाइब्रॉइड, ओवरी सिस्ट, पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज की वजह से भी पीरियड्स इर्रेगुलर होते हैं. अगर 3 महीने से ज्यादा समय तक मेंस्ट्रुअल साइकिल डिस्टर्ब हो तो ऐसे में डॉक्टर से जरूर संपर्क करें.
जवाब: डॉ नूपुर गुप्ता बताती है, ऐसा करने से वैसे तो कोई नुकसान नहीं है लेकिन जरूरत से ज्यादा ऐसा करना और अपने सुविधा के अनुसार ऐसा करना, सही नहीं है. इसके लिए कुछ हार्मोन पिल्स दी जाती है लेकिन बिना मेडिकल सुपरविजन के इसे नहीं खाना नुकसानदायक हो सकता है.
जवाब: डॉक्टर के अनुसार यह लोगों की पर्सनल चॉइस है. फायदे की जहां तक बात है तो पीरियड्स के दौरान सेक्स करने से मेंस्ट्रुअल क्रैम्प्स कम हो जाते है, क्योंकि यूट्रस कॉन्ट्रैक्ट करता है, रिलैक्स करता है. इस समय एंडोर्फिन रिलीज होने से मूड बेहतर होता है. सेक्स ड्राइव बढ़ती है. मेंस्ट्रुअल ब्लड फ्लो कम होता है. साथ ही यह मेंस्ट्रुअल माइग्रेन को भी कम करने में मदद करता है. वहीं नुकसान की बात करें तो इन्फेक्टेड मेंस्ट्रुअल ब्लड सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन, रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन, एचआईवी इन सभी बीमारियों के रिस्क को बढ़ा देता है. इसलिए अपने पार्टनर से इन पर जरूर बात करें. साथ ही कंडोम का इस्तेमाल भी जरूर करें ताकि एक दूसरे की प्रोटेक्शन हो सके. मेंस्ट्रुअल ब्लड नेचुरल लुब्रिकेशन का काम करता है, जिससे जिन महिलाओं में वेजाइनल ड्राईनेस है, उनको इस समय आराम मिलता है. लेकिन इस बात का ध्यान जरूर रखें कि इस समय इंफेक्शन होने का रिस्क बढ़ जाता है.
जवाब: 20% प्रेगनेंसी केस में पहले ट्राइमेस्टर में ब्लीडिंग होती है लेकिन प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग होना मां और उसके होने वाले बच्चे, दोनों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. अगर प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग होती है यह गर्भपात के खतरे को बढ़ा देता है. साथ ही यह प्री-मैच्योर डिलीवरी और लो-बर्थ वेट बेबी का भी रिस्क बढ़ाता है. प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग के दो कारण है, लो लाइंग प्लेसेंटा जिसे प्लेसेंटा प्रेविया कहते है या फिर वासा प्रेविया, जिसे अल्टरासाउंड के जरिए डायग्नोसिस किया जाता है. प्रेगनेंसी में किसी भी तरह की ब्लीडिंग को अनदेखा न करें और डॉक्टर से जरूर संपर्क करें.
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यह लेख डॉ. नुपुर गुप्ता (निदेशक, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, फोर्टिस गुरुग्राम) से बातचीत पर आधिरत है.
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