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Deepika Padukone pregnant at 38: लेट प्रेगनेंसी में क्या होते हैं रिस्क, बरतनी होती हैं क्या सावधानियां

Deepika Padukone pregnant at 38: शादी और बच्चे की प्लानिंग वैसे तो निजी फैसला होता है लेकिन मेडिकल साइंस के मुताबिक अथिक उम्र में मां बनना बच्चे के साथ-साथ आपके लिए भी परेशानियां खड़ी कर सकता है.

Deepika Padukone pregnant at 38: लेट प्रेगनेंसी में क्या होते हैं रिस्क, बरतनी होती हैं क्या सावधानियां
Deepika Padukone pregnant at 38.

Deepika Padukone pregnant at 38: बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) प्रेंगनेंट हैं और हर ओर इसकी चर्चा है. एक्ट्रेस ने 38 की उम्र में मां बनने का फैसला लिया है. हालांकि, जैसे-जैसे महिलाएं 30 की उम्र के बाद 40 की ओर आगे बढ़ती हैं प्रेगनेंसी चुनौतियों (Late Pregnancy challenges)  से भरी हो सकती है. लेट थर्टीज में महिलाओं को अधिक देखभाल और सावधानियों के बारे में पता होना चाहिए जो हेल्दी प्रेगनेंसी और डिलिवरी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है. डॉक्टर्स का मानना है कि मिड 30 के बाद यानी 35 की उम्र के बाद गर्भधारण (Pregnancy after 35) करने से कुछ समस्याएं हो सकती हैं. आइए जानते हैं कि ये चुनौतियां क्या हैं.

Late Pregnancy Risks: आजकल लोग आर्थिक रूप से पूरी तरह सक्षम होने के बाद ही शादी के बारे में सोचते है. महिलाएं भी शादी से ज्यादा अपने करियर को तरजीह देती हैं और एक मुकाम पर पहुंचने के बाद ही शादी करने का फैसला लेती हैं. शादी के बाद भी कपल पहले घर, गाड़ी खरीदने और इंटरनेशनल ट्रिप्स के बाद ही बच्चा प्लान करना चाहते हैं. ऐसे में उम्र ज्यादा हो जाती है और प्रेगनेंसी का सही समय या यूं कहें कि नॉर्मल प्रेगनेंसी का समय निकल जाता है. लेट प्रेगनेंसी प्लान करने से कॉम्पलिकेशन्स के चांस बहुत ज्यादा बढ़ जाता है.

Maa Banane ki Sahi Umra Kya Hai: प्रेगनेंसी के सही समय की बात करें तो डॉक्टर्स महिलाओं को 35 की उम्र से पहले बेबी प्लान करने की सलाह देते हैं. एक्सपर्ट्स की मानें तो महिलाओं के एग की क्वालिटी में 35 की उम्र के बाद गिरावट आने लगती है. 35 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने पर कॉम्पलिकेशन्स के चांसेज काफी बढ़ जाते हैं.

लेट प्रेगनेंसी के रिस्क (Late Pregnancy Risks)

डाउन सिंड्रोम का खतरा

लेट प्रेगनेंसी के कारण बच्चे में डाउन सिंड्रोम सहित अन्य जेनेटिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस सिंड्रोम के चलते नवजात में क्रोमोजोम 21 की एक एक्स्ट्रा कॉपी रहती है, जिसका मतलब है कि बच्चे में 46 के जगह 47 क्रोमोजोम्स होते हैं. एक्स्ट्रा क्रोमोजोम का असर बच्चे के ब्रेन फंक्शन पर पड़ता है. इससे बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

प्रीमैच्योर बर्थ

ज्यादा उम्र में प्रेगनेंट होने पर प्रिमैच्योर बर्थ का खतरा बढ़ जाता है. जब बच्चे का जन्म प्रेगनेंसी से 37 सप्ताह के पहले हो जाता है तो उसे प्रिमैच्योर या प्रीटर्म बर्थ कहा जाता है. जितना पहले जन्म होता है बच्चे में हेल्थ रिस्क की गंभीरता उतना ही ज्यादा रहता है. समय से पहले जन्मे बच्चों में आमतौर पर सांस संबंधी समस्याएं ज्यादा देखने को मिलती है.

जेस्टेशनल डायबिटीज

महिलाओं में 35 साल की उम्र के बाद प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले डायबिटीज का केस भी ज्यादा देखा जाता है जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है. कई बार डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए डाइट और एक्सरसाइज पर्याप्त नहीं होता है जिस वजह से इंसुलिन का इस्तेमाल करना पड़ता है.

प्रीक्लेम्पसिया

ज्यादा उम्र में गर्भधारण करने से प्रीक्लेम्पसिया से जैसे गंभीर मेडिकल कंडीशन का खतरा भी बढ़ जाता है. प्रेगनेंसी के बीच में करीब 20 हफ्ते बाद आप प्रीक्लेम्पसिया का शिकार हो सकते हैं. इसमें आपको सूजन, पेशाब में प्रोटीन आने, सिरदर्द और धुंधला दिखाई देने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जीवन के लिए खतरनाक कॉम्प्लीकेशन्स से बचने के लिए इसका ट्रीटमेंट जरूरी हो जाता है.

लेट प्रेगनेंसी में इन बातों का रखें ध्यान

अगर आप 35 की उम्र के बाद मां बनने वाली हैं या बेबी प्लान कर रही हैं तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें. जरूरी सावधानी बरत कर आप लेट प्रेगनेंसी से बच्चे के साथ-साथ खुद के हेल्थ रिस्क को भी कम कर सकती हैं.
 

कंसीव करने से पहले काउंसलिंग

अगर आप 35 की उम्र को क्रॉस करने के बाद मां बनने के बारे में सोच रही हैं तो कंसीव करने से पहले एक बार काउंसलिंग जरूर कराएं. इससे पॉसिबल रिस्क के बारे में पहले से जानकर इन्हें कम करने के लिए आप जरूरी स्टेप्स ले पाएंगी. सुरक्षित प्रेगनेंसी के लिए हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज के अलावा प्रि-एग्जिस्टिंग मेडिकल कंडीशन्स का निदान करना बेहद जरूरी है.

जेनेटिक स्क्रीनिंग

लेट प्रेगनेंसी में डाउन सिंड्रोम सहित अन्य जेनेटिक डिसऑर्डर का खतरा ज्यादा रहता है. ऐसे केस में डॉक्टर कंसीव करने से पहले जेनेटिक रिस्क का आकलन करने के लिए गैर-इनवेसिव प्रीनेटल परीक्षण (एनआईपीटी) या एमनियोसेंटेसिस जैसे प्रसव पूर्व जांच परीक्षणों की सलाह देते हैं. इन टेस्ट रिजल्ट के आधार पर कपल्स को प्रेगनेंसी को लेकर सही निर्णय लेने में मदद मिलती है.

सप्लीमेंट्स और विटामिन्स

सामान्य तौर पर भी प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को एडिशनल सप्लीमेंट और विटामिन्स की जरूरत होती है. लेट प्रेगनेंसी में मां के बेहतरी और बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए सप्लिमेंट्स और विटामिन्स की जरूरत और अधिक होती है. डीएचए जैसे ओमेगा 3 फैटी एसिड से बच्चे के आंखों और दिमाग के विकास में मदद मिलती है. डॉक्टर की सलाह के मुताबिक, एडिशनल सप्लिमेंट्स और विटामिन्स की खुराक लेनी चाहिए.

फर्टिलिटी इवैल्यूएशन

महिलाओं में 30 की उम्र के बाद फर्टिलिटी में गिरावट देखने को मिलती है. एग की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों में ही कमी दर्ज की गई है. अगर 35 का आंकड़ा पार करने के बाद आप बच्चा प्लान कर रही हैं तो फर्टिलिटी इवैल्यूएशन जरूर करवाएं. इसमें फर्टिलिटी लेवल को परखने के लिए ओवेरियन रिजर्व टेस्टिंग से लेकर हार्मोन लेवल जैसे फर्टिलिटी को प्रभावित करने वाले कई पक्षों की जांच की जाती है.

इस तरह रखें प्रेगनेंसी में ख्याल

  • लेट 30 में प्रेगनेंसी में डायबिटीज की आशंका को देखते हुए आपको अपने खानपान का खास ख्याल रखना चाहिए. समय-समय पर चेकअप जरूर कराते रहे.
  • बीपी को कंट्रोल में रखने के लिए अपना भोजन में बहुत अधिक नमक वाली चीजों शामिल न करें. 
  • 30 की उम्र में गर्भवती होने पर मां और भ्रूण के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए विशेष सप्लीमेंट और विटामिन का सेवन करना जरूरी हो जाता है. फोलिक एसिड, आयरन, कैल्शियम और विटामिन डी जैसे न्यूट्रिएंट्स भ्रूण के विकास और महिला की सेहत के लिए जरूरी हैं.
  • प्रेगनेंसी के दौरान महिला को इमोशनल सपोर्ट की भी जरूरत होती है. ऐसे में फैमिली मेंबर्स खासकर पति को इस फेज में पत्नी का खास ख्याल रखना चाहिए.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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