पटना:
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा गुजरात में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी जीत पर साधी गयी चुप्पी के पीछे कई प्रकार की अटकलें लगाई जा रही हैं और इस रुख को 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों से भी जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री ने उस समय नीतीश कुमार की जीत पर कोई बधाई नहीं दी थी।
मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों ने बताया कि 2010 में बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को भारी जीत मिली थी, लेकिन इसके लिए नरेंद्र मोदी ने कोई बधाई नहीं दी थी। संभवत: नीतीश कुमार का रुख भी सोची-समझी रणनीति के तहत उसके जवाब में है।
उन्होंने कहा कि मोदी की लगातार तीसरी बार जीत हालांकि कोई छोटी-मोटी जीत नहीं है, लेकिन 2010 में बिहार में विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के नेतृत्व में उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत 85 था। सूत्रों ने कहा, तब भी नरेंद्र मोदी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर नीतीश कुमार को बधाई नहीं दी थी।
बीजेपी और जेडीयू गठबंधन ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद, कांग्रेस और लोजपा को धूल चटाते हुए 2010 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से 206 में जीत हासिल की थी। नीतीश कुमार की चुप्पी से अब कई प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं। अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह मौन सोची-समझी रणनीति के तहत धारण किया गया है, या एनडीए के दोनों दिग्गजों के बीच टकराव का एक और प्रकरण है।
एक आधिकारिक कार्यक्रम के बाद शुक्रवार को जब नरेंद्र मोदी की गुजरात में ऐतिहासिक जीत पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो वह (नीतीश) बिना कुछ कहे एक अन्य बैठक के लिए रवाना हो गए। गुरुवार को भी मुख्यमंत्री ने गुजरात के संबंध में कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार किया था।
नीतीश कुमार की रहस्यमय चुप्पी को जेडीयू के सहयोगी दल बीजेपी के नेताओं ने पसंद नहीं किया। कई नेता इस पर आश्चर्य जता रहे हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर ने नीतीश के मौन धारण पर कहा कि उन्हें आश्चर्य हो रहा है कि मुख्यमंत्री क्यों चुप हैं? यह एक सामान्य बात है कि जीत पर एक-दूसरे को बधाई दी जाती है।
नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक और नीतीश सरकार में पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, बधाई देना एक सामान्य प्रक्रिया है। एक हारा हुआ प्रत्याशी भी जीत हासिल करने वाले को बधाई देता है। गुजरात में 2002 के दंगों के बाद नीतीश कुमार की नापसंदगी जग जाहिर है।
हाल में एक राष्ट्रीय दैनिक को दिए गए साक्षात्कार में नीतीश कुमार ने एनडीए के 2014 के लोकसभा चुनावों को लेकर उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाया था। इसे मोदी की उम्मीदवारी के विरोध के तौर पर देखा जा रहा था। नरेंद्र मोदी बीजेपी के स्टार प्रचारकों में शुमार हैं, लेकिन नीतीश के दबाव के कारण बीजेपी ने 2009 में लोकसभा और 2010 में विधानसभा चुनावों में बिहार में मोदी को चुनाव प्रचार के कार्यक्रम से बाहर रखा था।
वर्ष 2010 में बीजेपी की पटना में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी घमासान हुआ था। कोसी बाढ़ के पीड़ितों की मदद को लेकर अखबारों में मोदी की तस्वीर के साथ प्रकाशित एक विज्ञापन से नाराज नीतीश कुमार ने तब बीजेपी नेताओं के साथ रात्रिभोज को रद्द कर दिया था।
मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों ने बताया कि 2010 में बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को भारी जीत मिली थी, लेकिन इसके लिए नरेंद्र मोदी ने कोई बधाई नहीं दी थी। संभवत: नीतीश कुमार का रुख भी सोची-समझी रणनीति के तहत उसके जवाब में है।
उन्होंने कहा कि मोदी की लगातार तीसरी बार जीत हालांकि कोई छोटी-मोटी जीत नहीं है, लेकिन 2010 में बिहार में विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के नेतृत्व में उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत 85 था। सूत्रों ने कहा, तब भी नरेंद्र मोदी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर नीतीश कुमार को बधाई नहीं दी थी।
बीजेपी और जेडीयू गठबंधन ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद, कांग्रेस और लोजपा को धूल चटाते हुए 2010 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से 206 में जीत हासिल की थी। नीतीश कुमार की चुप्पी से अब कई प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं। अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह मौन सोची-समझी रणनीति के तहत धारण किया गया है, या एनडीए के दोनों दिग्गजों के बीच टकराव का एक और प्रकरण है।
एक आधिकारिक कार्यक्रम के बाद शुक्रवार को जब नरेंद्र मोदी की गुजरात में ऐतिहासिक जीत पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो वह (नीतीश) बिना कुछ कहे एक अन्य बैठक के लिए रवाना हो गए। गुरुवार को भी मुख्यमंत्री ने गुजरात के संबंध में कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार किया था।
नीतीश कुमार की रहस्यमय चुप्पी को जेडीयू के सहयोगी दल बीजेपी के नेताओं ने पसंद नहीं किया। कई नेता इस पर आश्चर्य जता रहे हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर ने नीतीश के मौन धारण पर कहा कि उन्हें आश्चर्य हो रहा है कि मुख्यमंत्री क्यों चुप हैं? यह एक सामान्य बात है कि जीत पर एक-दूसरे को बधाई दी जाती है।
नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक और नीतीश सरकार में पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, बधाई देना एक सामान्य प्रक्रिया है। एक हारा हुआ प्रत्याशी भी जीत हासिल करने वाले को बधाई देता है। गुजरात में 2002 के दंगों के बाद नीतीश कुमार की नापसंदगी जग जाहिर है।
हाल में एक राष्ट्रीय दैनिक को दिए गए साक्षात्कार में नीतीश कुमार ने एनडीए के 2014 के लोकसभा चुनावों को लेकर उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाया था। इसे मोदी की उम्मीदवारी के विरोध के तौर पर देखा जा रहा था। नरेंद्र मोदी बीजेपी के स्टार प्रचारकों में शुमार हैं, लेकिन नीतीश के दबाव के कारण बीजेपी ने 2009 में लोकसभा और 2010 में विधानसभा चुनावों में बिहार में मोदी को चुनाव प्रचार के कार्यक्रम से बाहर रखा था।
वर्ष 2010 में बीजेपी की पटना में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी घमासान हुआ था। कोसी बाढ़ के पीड़ितों की मदद को लेकर अखबारों में मोदी की तस्वीर के साथ प्रकाशित एक विज्ञापन से नाराज नीतीश कुमार ने तब बीजेपी नेताओं के साथ रात्रिभोज को रद्द कर दिया था।
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