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ठंड शुरू होते ही उत्तराखंड का 'लाल चावल' क्यों बिकता है 200 रुपये किलो? इसकी खासियत जान उड़ जाएंगे आपके होश

Lal chawal khane ke fayde : यह चावल शरीर को अंदर से गर्म रखता है, तुरंत ऊर्जा देता है और ठंड से लड़ने की ताकत देता है. इसके अलावा और क्या कुछ खास है इस चावल में आइए जानते हैं आगे...

ठंड शुरू होते ही उत्तराखंड का 'लाल चावल' क्यों बिकता है 200 रुपये किलो? इसकी खासियत जान उड़ जाएंगे आपके होश
उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल (जैसे बागेश्वर, पिथौरागढ़, टिहरी, उत्तरकाशी) के सीढ़ीनुमा खेतों में यह चावल पारंपरिक तरीके से उगाया जाता है.

Lal chawal health benefits: ठंड शुरू होते ही उत्तराखंड के गांवों और पहाड़ों पर एक खास चावल की मांग तेजी से बढ़ जाती है. यह है 'पहाड़ी लाल चावल', जो सिर्फ स्वाद में ही नहीं, बल्कि सेहत के मामले में भी सफेद चावल से कहीं आगे है. बागेश्वर और आसपास के पहाड़ी इलाकों में इसे सदियों से सर्दियों में खाने का रिवाज है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यह चावल शरीर को अंदर से गर्म रखता है, तुरंत ऊर्जा देता है और ठंड से लड़ने की ताकत देता है. इसके अलावा और क्या कुछ खास है इस चावल में आइए जानते हैं आगे...

क्यों है लाल चावल सफेद चावल से बेहतर

डॉक्टरों की मानें तो लाल चावल पोषक तत्वों का असली खजाना है. इसमें सफेद चावल से कई गुना ज्यादा आयरन, फाइबर, मैग्नीशियम और विटामिन B-कॉम्प्लेक्स पाया जाता है. यह शरीर में खून की कमी दूर करता है, पाचन को ठीक रखता है और शरीर से गंदगी (टॉक्सिन) बाहर निकालने में मदद करता है. इसमें भरपूर प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं जो आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.

सबसे खास बात यह है कि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) कम होता है, इसलिए यह डायबिटीज के मरीजों के लिए भी सफेद चावल से बेहतर माना जाता है.

ऐसे होती है पहाड़ों में इसकी खेती

उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल (जैसे बागेश्वर, पिथौरागढ़, टिहरी, उत्तरकाशी) के सीढ़ीनुमा खेतों में यह चावल पारंपरिक तरीके से उगाया जाता है. यह खेती सिर्फ बारिश के पानी पर निर्भर होती है और इसमें किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता. ठंडी जलवायु और पहाड़ी मिट्टी की वजह से इसका स्वाद और पौष्टिकता मैदानी इलाकों के चावलों से बिल्कुल अलग होती है.

आज यह सिर्फ पहाड़ों तक सीमित नहीं है. स्वाद और सेहत के प्रति जागरूक लोगों की वजह से देहरादून, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में भी इसकी डिमांड कई गुना बढ़ गई है. लोग अब इसे ऑनलाइन ऑर्डर कर रहे हैं, जिससे किसानों को भी अच्छे दाम120 से 200 रुपये प्रति किलो) मिल रहे हैं.

लाल चावल की खीर

सर्दियों में पहाड़ों में लाल चावल की खीर तो हर घर में बनती है. इसे पारंपरिक तरीके से धीमी आंच पर दूध में पकाया जाता है और फिर गुड़ या शहद, देसी घी और मेवों के साथ परोसा जाता है. यह खीर शरीर को ऊर्जा और गर्माहट देने के साथ-साथ बच्चों और बुजुर्गों के लिए बेहतरीन पौष्टिक आहार मानी जाती है.
 

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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