
पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न पाने वाले और मिसाइल मैन के रूप में अपनी पहचान बना चुके, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम में इससे भी कहीं ज़्यादा खुबियां थी। उनकी जिंदगी निः स्वार्थ थी। विनम्र दिल वाले डॉ. कलाम में बच्चों के लिए कभी न खत्म होने वाला प्यार था। उनकी कुछ नया जानने के लिए कभी न खत्म होने वाली खोज उन्हें दूसरों से अलग करती थी।
डॉ. कलाम ने एक बार कहा था कि उन्होंने अपना कार्यकाल राष्ट्रपति भवन से शुरू किया, तब वह अपने साथ दो सूटकेस लेकर आए थे और अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद वह वापस भी उन्हीं दो सूटकेस के साथ गए। शेखर गुप्त ने उनसे एक बार इंटरव्यू में सवाल किया कि इन दो सूटकेस में क्या था। इस सवाल का जवाब देते हुए कलाम ने कहा कि, “अगर मैं कहीं एक-दो दिन के लिए जा रहा हूं, तो इससे मेरी दो दिन की जरूरतें पूरी हो जाएंगी। इसमें एक नई प्रकाशित बुक, कभी-कभी मेरा कंप्यूटर, मेरा टेप-रिकोर्डर और दो दिन के कपड़े हैं।”
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डॉ. कलाम का जन्म तमिलनाडू के रामेश्वरम में सादगी में हुआ। भारत के मिसाइल मैन की जिंदगी काफी कठिन थी, लेकिन उनकी अपने सपनों को पाने की इच्छा ने उन्हें मद्रास यूनीवर्सिटी से फिजिक्स में ग्रेजुएशन की डिग्री दिलवाई। डॉ. कलाम के पिताजी के पास अपनी बोट थीं, जो कि वह स्थानीय मछुवारों को किराए पर देते थे। एक टाइम, डॉ. कलाम ने परिवार को आर्थिक स्थिती में मदद करने के लिए अखबार बांटने का काम भी किया और अपनी पढ़ाई के लिए पैसे दिए। उनके शुरुआती दिन संघर्ष से भरे थे, ऐसे में उन्होंने अपने व्यक्तित्व को शेप में लाने का ही काम किया। डॉ. कलाम ने एक बार अपनी स्पीच में कहा था कि अगर कोई सूरज की तरह चमकना चाहता है, तो उसे सूरज की तरह जलना भी होगा और वास्तव में, उनकी योग्यता पर पूरे देश को आज गर्व है और हम उन्हें तेज चमकने वाले सूरज के रूप में ही जानते हैं।
मां के हाथ का फूड था फेवरेट
डॉ. कलाम अपनी मां के बहुत करीब थे और उनके हाथ का बना खाना उनका पसंदीदा था। अपनी किताब, ‘प्राइड ऑफ नेशनः डॉ. अब्दुल कलाम' में महेश शर्मा दत्ता ने लिखा है कि, “ डॉ. अब्दुल कलाम का अपनी मां आशियम्मा के साथ बहुत गहरा रिश्ता था।” उनका मां के हाथ का बनी नारियल की चटनी के साथ चावल और सांभर पसंदीदा खाना था। डॉ. कलाम से संबंधित किताब में लिखा है कि “मैं अक्सर मां के साथ किचन में खाना खाता था। वह मेरा पसंदीदा खाना केले के पत्तों पर परोसती थीं।”
शाकाहारी सिंद्धात
डॉ. कलाम का हर चीज़ के पीछे एक उद्देश्य था और उनकी लाइफ को कुछ भी प्रभावित नहीं करता था। उनके साथ पढ़ने वाले दोस्तों में से एक, रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशालाओं के पूर्व सहयोगी निदेशक ने उन्हें कॉलेज के दिनों से लेकर राष्ट्रपति के समय तक देखा है और उनकी लाइफ स्टाइल में मुश्किल से ही कोई बदलाव आए थे। वह एक शाकाहारी व्यक्ति थे, जो कि सही खाने और फिट रहने को बहुत महत्व देते थे। काम में डूबे रहने वाले कलाम दिन के 18 घंटे काम को देते थे।
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डॉ. कलाम शाकाहारी थे और नियमित खाने में अपने पारंपरिक साउथ इंडियन खाने को ही शामिल करते थे। उन्हें पारंपरिक आयंगर खाना ही पसंद था जैसे- वैंध्या कोज़म्बू और पुलियोडरे। लेकिन उन्होंने शाकाहार को कैसे अपनाया? टेलिग्राफ इंडिया में बताया गया है कि डॉ. कलाम ने 1950 में जब सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली जॉइन किया था, तब से ही वह शाकाहारी बन गए थे। उन्हें स्कॉलरशिप मिली थी, और अपने बजट में वह बहुत कम ही नॉन-वेज फूड का खर्च उठा पाते थे।
एक प्रचलित दैनिक के अनुसार, डॉ. कलाम के कालेज फ्रेंड्स और सहकर्मी की उनके साथ कुछ ही अच्छी यादें है। बैंगलूर, इसरो सेटेलाइट सेंटर के पूर्व निदेशक, आर. अरवामुदान ने बताया कि, “हम इंदिरा भवन लॉज, तिरुवंथमपुरम में रहते थे। लोग उन्हें कलाम अय्यर बुलाते थे, क्योंकि वह ब्राहम्णों के चारों ओर ही घुमते दिखाई देते थे और उनकी खाने की आदतें भी उन्हीं के जैसे हो गईं थी। सिर्फ एक ही नॉन वेजीटेरियन खाना वह कभी-कभी खाते थे और वह था केरल आलू के साथ अंडा मसाला।”
आर. अरवामुदान 1963 में नेशनल एरोनोटिक्स स्पेस एजेंसी में पहली बार डॉ. अब्दुल कलाम से मिले थे। यहां स्टेशन से जुड़ा एक होस्टल भी था, जहां सेल्फ सर्विस काफीहाउस था। आर अरवामुदान ने अपने अकाउंट में आनलाइन प्रकाशित कर कहा, “हम अक्सर मैश आलू, उबली हुई बीन्स और मटर, ब्रेड और बहुत सारा दूध ही पीते थे और हफ्ते के आखिर दिन सुपर मार्किट शॉपिंग, सिनेमा देखने और भारतीय घरों में कभी-कभी डिनर करने के चक्कर में ही निकल जाता था।”
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अगर कोई सही में इन सिंपल साइंटिस के बारे में जानना चाहता है, तो भारत के पूर्व राष्ट्रपति के बारे में जानने में ज़्यादा मज़ा आएगा। इसके लिए आपको बस अपना चेहरा, चेन्नई के अन्नालक्ष्मी रेस्तरां की ओर करना है। भारत के 11वां राष्ट्रपति बनने से पहले वह इस छोटी-सी जगह पर वह नियमित रूप से जाते थे। मैनेजमेंट के अनुसार, यहां उनकी पसंदीदा डिश थी- वथा कोज़म्बू और पापड़। डॉ. कलाम ने अपने जीवन के करीब तीन दशक केरल की राजधानी तिरुवंनतपुरम में बिताए। यहां के एक स्थानीय रेस्तरां में डॉ. कलाम की फोटो हर जगह लगी हुई है, और वह यह दावा करते हैं कि रोज़ दिन के आखिर में कलाम वहां जरूर जाते थे।
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