
मॉनसून सीजन खत्म होते ही, मुंबई के पसंदीदा त्योहारों में से एक गणेश चतुर्थी का क्रेज लोगों में दिखने लगता है। गणेश चतुर्थी देशभर के हिन्दुओं द्वारा बड़े जोर-शोर से मनाई जाती है। इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था, जिन्हें बाधाओं का नाश करने वाला भी कहा जाता है। हिन्दु क्लेंडर के अनुसार भद्र महीने में (अगस्त के मध्य से सितंबर के मध्य तक) इसे मनाया जाता है, यह दस दिन तक मनाई जाती है और आखिरी दसवें दिन को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है।
इस साल, यह 17 सितंबर यानी गुरुवार से शुरू हो रही है। इस दिन भगवान गणेश के भक्त उन्हें आदर्श मानकर धूम-धाम से उनकी स्थापना एक सजे हुए मंच पर करते हैं। इस दौरान उन्हें शहद और दूध के साथ शुद्ध पानी का भोग लगाया जाता है। लेखक और ब्लॉगर, शक्ति सलगाओकर येज़दानी का कहना है कि, “हमारे घर में मेरे दादा कई दशकों से बप्पा के लिए ख़ास तैयारी करते आ रहे हैं। हमारे यहां बहुत सुंदर लकड़ी का मंदिर, एक विशेष सिहांसन और एक ख़ास पाश और अंकुश है। ”
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बप्पा के घर आने के बाद से दिन में दो बार पूजा की जाती है। ऐसा दूसरे, पांचवें, सातवें और आखिरी दिन किया जाता है। इस दिन उत्तरपूजा रस्म की जाती है, जिसके बाद गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। इस दौरान मूर्ति को समुद्र, नदी या फिर बाल्टी में डुबा दिया जाता है (निर्भर करता है कि आप दुनिया में कहां रह रहे हैं)। अंतिम विसजर्न के दिन मुंबई के समुद्र के किनारें बप्पा की मूर्तियों और भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है। इस दिन ऐसा रिवाज़ है कि एक चुटकी मिट्टी और वह पाथ, जिस पर विसर्जन से पहले गणेश जी ने विश्राम किया था को घर लाया जाता है। उन्हें एक या दो दिन तक घर पर रखा जाता है, गणपति के विसर्जन के बाद घर में आए खालीपन को दूर करने के लिए इन्हें रखा जाता है।
शक्ति सलगाओकर ने याद करते हुए बताया कि, “मेरे दादा जी कहा करते हैं कि यह त्योहार हमें जीवन के बारे में सीखाता है। अपने जीवन में आए नए मेहमान की खुशी को सेलिब्रेट करते हैं। बप्पा को प्यारे गेस्ट की तरह समझ कर उन्हें उनका पसंदीदा खाना खिलाते हैं, लोगों को उन्हें देखने के लिए न्यौता देते हैं, घर को सजाते हैं और इसके बाद उनकी प्यारी यादों के साथ बप्पा का विसर्जन कर दिया जाता है। ‘इस वादे के साथ की वह अगले साल फिर से आएं। अगर वह जाएंगे ही नहीं, तो अगले साल आपके पास फिर से वापस कैसे आएंगे?' दादा जी ने खुशी से कहा।”
मुंबई मेनिया
भारतभर के हिन्दु घरों में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है, लेकिन मुंबई में इसकी दिवानगी कुछ अलग है क्योंकि यहां एक बड़ा समुदाय रहता है, जिनमें गणेश चतुर्थी को लेकर काफी उत्साह है। यह सब लोकमान्य तिलक के लागातार प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया है, जिनका मानना था कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह भारतीयों को साथ लाने में मदद करेगा। दस दिनों के लिए शहर गणपति के पंडालों से चमक उठता है। मुंबई का सबसे ज़्यादा लोकप्रिय लालबाग राजा, सार्वजनिक गणेश पंडाल है। यहां हर साल करोंड़ो रुपये का चढ़ावा चढ़ता है और (दूसरे पंडालों की तरह) इसमें से काफी भाग समुदाय द्वारा हेल्थ कैंप, स्कॉलरशिप, हॉस्पिटल आदि में लगा दिया जाता है। इसी तरह, हर इलाके में उनके अपने पंडाल होते हैं, जहां घंटियों की खनखनाहट सुनाई देती है और पूरा दिन चलने वाले भजन से माहौल भक्तिमय बना रहता है।
गणेश चतुर्थी के करीब आते ही, उनकी मूर्तियां विकसित होने लगती हैं। इस साल, आप सेल्फी लेते गणेश जी, बाहुबली से प्रेरित हुए बप्पा और बहुत सारे पर्यावरण के अनुकल गणपति की मूर्तियां बाजारों में देख सकते हैं। यहां तक की, इस बार नवी-मुंबई में ब्राजील की फुटबॉल टीम के रंग से सजी गणपति की मूर्ति भी कुछ अलग है।
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पूरे भारत में होता है सेलिब्रेशन
मुंबई के पुणे में पंडाल और मंदिरों में गणेश चतुर्थी बड़े धूम-धाम से मनाई जाती है, इनमें दगड़ु सेठ मंदिर सबसे लोकप्रिय है। गणेश दर्शन के लिए गणपतिफूले का स्वयंभू मंदिर भी एक शानदार जगह है।
महाराष्ट्र का यह उत्साह हाल ही में कोलकत्ता में भी स्पीड पकड़ गया है। शहर भर में पंडालों का गुलदस्ता-सा खिला दिखता है। घर अल्पोना (चावल के आटे से बनी रंगोली) से सजे होते हैं और नर्केल नरस (नारियल और चीनी की मिठाई) दोस्तों और पड़ोसियों में बांटी जाती है। पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में भी बहुत सारे गणेश भक्त छिपे हुए हैं। उदाहरण के लिए- पश्चिम बंगाल में हुबली धारवाड़ में 21 फुट मूर्ती बनवाई गई है।
और यह सिर्फ बंगाल तक ही सीमित नहीं है। गणपति झारखंड में भी काफी फेमस हैं, जहां पर पंडाल सजाने वालों को बंगाल से ही बुलाया गाता है। जयपुर के मठ डूंगरी मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उनका उत्साह बयां करती है, मंदिर की प्रसिद्ध मोदक झांकी देखने को लोग उत्सुक होते हैं। इसके साथ ही, हैदराबाद भी इसके सेलिब्रेशन में पीछे नहीं है।
खाने की है यह दास्तां
गणेश चतुर्थी चटोरे लोगों के लिए एक बहुत अच्छा समय है। यह मोदक का मौसम होता है, सदियों से महाराष्ट्र की प्लेट की शान बढ़ाती आ रही गणपति की पसंदीदा मिठाई है। इन्हें ख़ासतौर से उकडीच मोदक के नाम से जाना जाता है। इन चावल की पोटली में पारंपरिक नारियल और गुड़ की स्टफिंग की जाती है और इन्हें शुद्ध घी के साथ गर्म-गर्म खाया जाता है। कई बार, मोदक को खुशबूदार हल्दी के पत्तों के साथ स्टीम दी जाती है। हालांकि, आजकल मोदक कई तरह के रूपों में बनाए जाते हैं- स्ट्राबेरी और चॉक्लेट के साथ बने मोदक, हेल्दी बेक्ड मोदक और शुगर फ्री मोदक सब जगह मौजूद हैं।
ब्लॉगर, लेखक और फूड सलाहकार साई कोरेन खांडेकर का कहना है कि, “ मोदक के अलावा, गणपति के दिन निवाग्रय भी बनाया जाता है। निवाग्रय थोड़ी नमकीन, स्टीम पकौड़े की तरह होती है। जिसे बचे हुए ‘उकड़' (चावल के आटे की लोई, जो कि मोदक आवरण के लिए बनाया जाता है) से बनाते हैं। बची हुई लोई में जीरा पाउडर, हरी मिर्च का मोटा पेस्ट, नमक और दूसरे स्वादों के साथ स्टीम देकर बनाया जाता है। इन्हें मूंगफली के तेल के साथ खाया जाता है।” उन्होंने बताया कि, “बेसन से बने लड्डू भी पारंपरिक रूप से विशेष माने जाते हैं। इस सब सेलिब्रेशन के बाद, समारोह का अंत होता है। इसके आखिरी दिन, हम बप्पा को एक हल्के मील दही भात और दही पोहे के साथ विदा करते हैं।”
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