भारत का खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण एक नियामक संस्था है, जिन्हें खाद्य पदार्थों को डिवेलप करने, पैक और देश से बाहर बेचने के नियम और मानक बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। एफएसएसएआई के पास इतनी पावर है कि वह किसी भी खाद्य पदार्थ– जो मानव स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं, पर उंगली उठा सके। मैगी नूडल्स विवाद के परिणाम के बाद राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली और खाद्य बाजार में बनने वाले उत्पादों पर पहले से ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। जहां तक संबंध उपभोक्ता का है, आप में से बहुत से लोग अब कुछ भी खरीदते समय उत्पाद के चमकीले पैक को संदेह की नजर से जरूर देखते होंगे।
बंद दरवाजों के पीछे
हाल ही में एफएसएसएआई के पूर्व अधिकारियों ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए राष्ट्रीय खाद्य नियामक सुरक्षा के अंदर की कमियों के बारे में बताया। यहां के बंद दरवाजों के पीछे छिपे दूसरे पक्ष को दुनिया के सामने लाए। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम एक दशक के बाद वर्ष 2006 में वापस अस्तित्व में आया। एक प्रमुख अखबार में प्रकाशित टुकड़े में एफएसएसएआई के पहले अध्यक्ष पी. सरवथन ने बताया कि “खाने की चीज़ों से संबंधित सभी स्थितियों को एक साथ लाना ही इस कानून का लक्ष्य था। साथ ही, खाद्य पदार्थों के निर्धारण में पारदर्शिता और उनके खराब होने जैसी समस्याओं से निपटने के लिए यह कानून बनाए गए।”
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लेकिन, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के अभाव में, कोई नियामक संस्था कैसे काम कर सकती है? खबरों के अनुसार, एफएसएसएआई में करीब पिछले छह महीनों से पूरे दिन के लिए कोई अध्यक्ष नहीं है। तथ्यों के बारे में बताते हुए सरवथन ने बताया कि संस्था को निरंतर खतरे के मूल्यांकन में कौशल कर्मचारियों की संख्या में कमी का सामना करना पड़ रहा है।
सरवथन ने तथ्यों को सामने लाते हुए कहा कि, “यहां एक लाख से भी ज़्यादा खाद्य से संबंधित केस कोर्ट में लटके हुए हैं। फूड लेबल, स्कूल मील के नियम, कार्य-संबंधी खाद्य पदार्थ, पानी की गुणवत्ता और ऐसे ही दूसरे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर नियामक संस्था अब अपना मन बना रही है।” किसी भी नियामक संस्था का उद्देश्य सिर्फ कानून का उल्लघंन करने वालों को सजा देना नहीं होता, बल्कि उपाय निकालने के साथ यह सुनिश्चित करना भी है कि कंपनी द्वारा वह उल्लंघन फिर से न किया जाए।
और ऐसा क्यों होता है?
सरवथन ने आगे बताया, “ संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे उन्नत देश सभी खाद्य उत्पादों में से सिर्फ एक प्रतिशत को ही जांचने में सक्षम है।” खाद्य मानकों का निर्धारण और नियम बनाना आसान काम नहीं है। इससे संबंधित जटिल मुद्दों की थोड़ी समझ रखने वाला स्टाफ, नियंत्रण के साथ-साथ सुरक्षा का होना भी जरूरी है। सरवथन ने बताया कि, “अनुमति के लिए कोई कारण नहीं दिया जाता। यह अक्सर विपरीत होती हैं। अपील के लिए कोई प्रकिया नहीं है और मंजूरी के लिए कोई समय सीमा नहीं होती।”
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एफएसएसएआई के उत्पाद अनुमोदन समिति के पूर्व निदेशक, प्रदीप चक्रवर्ती ने अनुमति देने की प्रथा और संस्था द्वारा दी जानी वाली अनुमति के बारे में बताया। जबकि, सरवथन ने कुशल कर्मचारियों की कमी पर जोर दिया था। चक्रवर्ती ने इसके पीछे का स्पष्ट कारण- कॉरपोरेट लॉबिंग को बताया।
ऐसे सब कुछ गंभीर होता गया
एफएसएसएआई में कथित तौर पर बड़े पैमाने पर चल रही कॉरपोरेट लॉबिंग के खिलाफ प्रदीप चक्रवर्ती अपनी जनहित याचिका के साथ दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे। इसमें उन्होंने बताया कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अक्सर खाद्य सुरक्षा नियमों और मानकों का फायदा हो रहा है। जब बाद में संगठन के अंदर गैर-तकनीकी कर्मचारी ऑफिस की कुछ चाबी के साथ पकड़े गए, तो सरवथन ने चक्रवर्ती की याचिका पर आवाज उठाते हुए दावा किया। यही नहीं, याचिका में साफ दिया गया था कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा निर्मित एनर्जी ड्रिंक्स को अनुमति न देने में चक्रवर्ती का क्या रोल था। वहीं, चक्रवर्ती के मुताबिक एनर्जी ड्रिंक्स में कैफीन की मात्रा भारतीय स्वीकृति सीमा से ज़्यादा थीं, इसलिए उन्हें शुरुआती दौर में ही अस्वीकार कर दिया गया।
वर्ष 2013 में प्रदीप चक्रवर्ती को अपने पद से हटा दिया गया और इस फरवरी उन्हें एफएसएसएआई से बाहर कर दिया गया। इस समय उन्हें जवाबी जांच का सामना करना पड़ रहा है, जोकि इन्हीं कारणों से उनके खिलाफ जारी की गई। सिर्फ इसके लिए ही नहीं, बल्कि उन्होंने यह भी माना कि सफल अधिकारी के रूप में उन्होंने अमेरिका निर्मित एनर्जी ड्रिंक्स को अक्टूबर 2013 में आयात की अनुमति दी थी- यहां तक कि वैज्ञानिक पैनल की समीक्षा किए बिना।
अब क्या?
एफएसएसएआई ने मई के महीने में तीन एनर्जी ड्रिंक्स मॉन्स्टर, क्लोउड-9 और जिंग पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा टाटा स्टारबक्स के कई पदार्थों को भी अस्वीकार किया था। सिर्फ यही नहीं, एफएसएसएआई ने 30 अप्रैल 2015 में एक सूचीपत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने करीब 500 पदार्थों को अस्वीकार किया। समाचार एजेंसी भाषा में जारी ख़बर के मुताबिक इस सूचीपत्र में कैलॉग्स इंडिया द्वारा निर्मित स्पेशल के रेड बेरी, वैंकी चिकन उत्पाद, रैनबेक्सी रिवाइटल कैप्सूल, रिवाइटल सीनियर टेबलेट और रिवाइटल विमन टेबलेट, मक्केन्स काली मिर्च और चीज़ बाइट मिश्रण समेत कई पदार्थ शामिल थे। इसके अलावा कुछ हफ्ते पहले आई खबर के मुताबिक नॉर और टॉप रैमन नूडल्स भी बाज़ार से हटा दिए गए हैं।
एफएसएसएआई और अन्य सभी लोगों की नज़र मार्किट में मौजूद ज़्यादातर सभी खाद्य पदार्थों पर है, जिसका उद्देश्य खाद्य बाज़ार में किसी भी प्रकार की दुर्घटना का पता लगाना है। पिछले हफ्ते कई खबर आईं, जिसमें बताया गया था कि एफएसएसएआई कैसे नए कैफ़ीन मानकों को तैयार करने पर विचार कर रही है। साथ ही, दूध और दूध से संबंधित खाद्य पदार्थों में मेलामाइन की मात्रा को सीमित कर रही है। भाषा के मुताबिक, एफएसएसएआई ने शिशु के दूध वाले एक किलो पाउडर में एक मिलीग्राम मेलामाइन की सीमा रखने का प्रस्ताव रखा है। इसके अलावा लिक्विड में 0.15 मिलीग्राम प्रति किलो मेलामाइन और बाकी के खाद्य पदार्थों में 2.5 मिलीग्राम प्रति किलो का प्रस्ताव रखा है, जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वैश्विक सीमा है।
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बने हुए खाद्य पदार्थों में सुरक्षा चिंता के ऊपर सवाल खड़े हो गए हैं। साथ ही, इसके खिलाफ जनहित याचिका दायर की जा चुकी है। यही नहीं, केंद्र के साथ राज्य की खाद्य नियामक संस्थाएं, खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर ज़्यादा अक्रामक रवैया अपना रही हैं। पैक फूड में जहरीली सामग्री को लेकर नियम बनाने पर संसदीय पैनल में भी विचार विमर्श हो चुका है।
खाद्य और पेय पदार्थों की कंपनियों का नियमों के पालन करने को लेकर बढ़ता फोकस उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है। सरवथन के शब्दों में, “ खाद्य सुरक्षा नियामक पुरानी चाल पर वापस आने के खतरे में है और देश में अवैज्ञानिक प्रक्रियाएं खाद्य सुरक्षा नियामक को नियंत्रित करेंगी। जब विज्ञान और परिश्रम के वजह से फैसले वापस नहीं आएंगे, तो नियामक तेजी से बदलती अर्थव्यवस्था और समाज की जरूरत को बेकार में दिए जा रहे खतरों से बचाएगा”।
जहां तक कॉरपोरेट लॉबिंग की बात थी, तो अब वहां ऐसा कुछ नहीं है। चक्रवर्ती समेत दो पूर्व एफएसएसएआई निदेशकों ने स्वास्थ्य मंत्री एवं परिवार कल्याण के जे.पी. नड्डा को मामले के बारे में पत्र लिखकर पूरी जानकारी दी है। आगे की कार्रवाई की प्रतीक्षा की जा रही है।