ये हैं देश और देशभक्ति से जुड़ी नौ बेहतरीन फिल्में...

ये हैं देश और देशभक्ति से जुड़ी नौ बेहतरीन फिल्में...

कपड़े का राष्ट्रीय ध्वज तैयार करते लोग (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

आज़ादी का जश्न हो और फिल्मों का जिक्र न हो तो अन्याय होगा। सिनेमा ने समय-समय पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम या उससे जुड़ी किसी घटना या आज़ादी से ही जुड़े किसी महत्वपूर्ण संदेश को फिल्म का विषय बनाकर पर्दे पर अक्सर पेश किया है। फिर चाहे वह रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' हो या फिर राकेश ओमप्रकाश मेहरा की 'रंग दे बसंती'। इन फिल्मों की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तारीफ तो हुई ही, दर्शकों ने भी खूब सराहा। ये फिल्में दर्शकों का ज्ञानवर्धन तो करती ही हैं, उनके मन में देशभक्ति की भावना भी जगाती हैं। इनमें से कुछ फिल्में तो स्वतंत्रता संग्राम और उससे जुड़ी घटनाओं को ही दर्शाती हैं और कुछ आज़ादी के बाद के समय में देश के लिए मर-मिटने के जज़्बे को। यहां ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में जानिए, जो आपके मन में देश और अपनी मातृभूमि के लिए दबे प्यार को एक बार फिर ज़रूर उभार देंगी।

गांधी (1982)
आज़ादी का दिन हो और फिल्म 'गांधी' की चर्चा न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। वर्ष 1982 में रिलीज़ हुई इस फिल्म को बनाया था हॉलीवुड के मशहूर निर्माता-निर्देशक रिचर्ड एटनबरो ने। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि फिल्म में गांधी की भूमिका निभाने वाले भारतीय नहीं, बल्कि ब्रिटिश एक्टर सर बेन किंग्सले हैं। फिल्म में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के संघर्ष और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न पहलुओं को बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है। कई भारतीय और विदेशी कलाकारों से सजी इस फिल्म को पूरी दुनिया में सराहना मिली। 55वें ऑस्कर अवार्ड्स में फिल्म को 11 अलग-अलग कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला और इनमें से आठ पुरस्कार उसकी झोली में आए। आज़ादी की लड़ाई और उसमें राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी के योगदान को समझने में यह फिल्म काफी हद तक सहायक है।

शहीद (1948)
आज़ादी के ठीक बाद वाले साल, यानी 1948 में आई फिल्म 'शहीद' में भी स्वतंत्रता संग्राम को दर्शाने की कोशिश की गई। उस दौर में और भी कई फिल्में राष्ट्रीयता की भावना को दर्शाते हुए बनाई गईं, लेकिन 'शहीद' की बात ही अलग थी। फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं दिलीप कुमार और कामिनी कौशल ने और फिल्म के निर्देशक थे रमेश सहगल। फिल्म का गाना 'वतन की राह में, वतन के नौजवां शहीद हों...' आज भी उतना ही हिट है।

हकीकत (1964)
भारत और चीन के बीच 1962 में हुई जंग को आधार बनाकर इस फिल्म की कहानी लिखी गई थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू आज़ादी के बाद चीन को भारत का सबसे बड़ा मित्र समझ रहे थे। यहां तक कि उस वक्त 'हिन्दी-चीनी भाई-भाई' का नारा भी खूब मशहूर हुआ था, लेकिन 1962 में चीन ने हमारी पीठ में छुरा घोंपा और हम पर हमला कर दिया। भारतीय फौज इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी और हमें हार का मुंह देखना पड़ा। फिल्म देखकर आपको कुछ-कुछ एहसास होगा उस दौर का, जब एक मुल्क जंग भी हार गया और भरोसा भी। फिल्म का निर्देशन किया था चेतन आनंद ने और मुख्य कलाकार थे बलराज साहनी, धर्मेंद्र, प्रिया राजवंश, संजय खान और विजय आनंद।

बॉर्डर (1997)
वर्ष 1997 में रिलीज़ हुई फिल्म बॉर्डर तो याद होगी ही आपको। फिल्म 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राजस्थान के लौंगेवाला पोस्ट पर लड़ी गई लड़ाई पर आधारित थी और सच्ची घटनाओं से प्रेरित थी। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे पंजाब रेजिमेंट के 120 जवानों ने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना की पूरी टैंक रेजिमेंट के खिलाफ रातभर अपनी पोस्ट को बचाए रखा था। फिल्म में सारे कलाकारों ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया और फिल्म सुपरहिट रही। फिल्म के निर्देशक थे जेपी दत्ता और मुख्य कलाकारों में सनी देओल, अक्षय खन्ना, जैकी श्रॉफ, सुनील शेट्टी, पूजा भट्ट, तब्बू, शर्बानी मुखर्जी आदि थे।

लगान (2001)
आमिर खान की फिल्म 'लगान' भी देशभक्ति की भावना से लबरेज़ फिल्म है, जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने और क्रिकेट, जो उस दौर में अंग्रेजों का पसंदीदा खेल था, में उन्हीं ही मात देने की अनोखी कहानी है। फिल्म में अंग्रेज अधिकारी गांव वालों पर भारी लगान थोपता है। जब गांव वाले लगान कम करने की विनती करते हैं तो लगान और बढ़ा दिया जाता है। तभी एक सीनियर अंग्रेज अधिकारी प्रस्ताव रखता है कि अगर गांव वाले अंग्रेजों को क्रिकेट में हरा दें तो उनका तीन साल का लगान माफ हो जाएगा। प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद गांव वाले क्रिकेट सीखने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं और अंत में फिरंगियों को हरा भी देते हैं, जो देखना काफी दिलचस्प है। फिल्म को ऑस्कर अवार्ड के लिए नॉमिनेशन भी मिला, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। 'लगान' का निर्देशन किया था आशुतोष गोवारीकर ने और मुख्य कलाकार थे आमिर खान, ग्रेसी सिंह, रैचेल शैली और पॉल ब्लैकथॉर्न।

लीजेंड ऑफ भगत सिंह (2002)
शहीद भगत की सिंह की जिंदगी पर बनी फिल्मों के जिक्र के बगैर आज़ादी से जुड़ी फिल्मों की पूरी चर्चा बेमानी होगी। जंग-ए-आज़ादी के दौरान शहीद भगत सिंह ने केवल 24 साल की उम्र में अंग्रेजों के फांसी के फंदे को हंसते-हंसते गले लगा लिया था। उनके जीवन की कहानी हमेशा ही लोगों के लिए प्रेरणादायी रही है। उनके ऊपर न जाने कितने नगमे बनाए गए, जो देश के युवाओं को प्रेरित करते रहे। वह बहादुरी और राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। 'लीजेंड ऑफ भगत सिंह' उन्हीं भगत सिंह की जिंदगी पर बनी फिल्म है। फिल्म में अजय देवगन ने भगत सिंह का किरदार निभाया है। उनके अलावा फिल्म में राज बब्बर, अमृता राव और फरीदा जलाल जैसे मशहूर कलाकार भी थे। फिल्म के निर्देशक थे राजकुमार संतोषी।

स्वदेस (2004)
शाहरुख खान अभिनीत इस फिल्म में अमेरिका में रह रहा एक कामयाब भारतीय वैज्ञानिक कैसे वापस अपनी मिट्टी से जुड़ता है, इसे बखूबी दिखाया गया है। फिल्म में शाहरुख खान वैज्ञानिक की भूमिका हैं, जो नासा में काम करते हैं। वह अपनी दादी को लेने भारत आता है और यहां उसकी पहचान एक बार फिर अपनी मातृभूमि से होती है। भारत आकर वह पाता है कि शहरों में हो रहे विकास से गांव वाले अब भी महरूम हैं और वह गांव वालों की हर तरह से मदद करने की कोशिश करता है। आशुतोष गोवारीकर की इस फिल्म न सिर्फ कामयाबी के झंडे गाड़े, बल्कि शाहरुख खान को एक अभिनेता के तौर पर स्थापित भी कर दिया।

लक्ष्य (2004)
2004 में आई फिल्म 'लक्ष्य' 1999 के करगिल युद्ध पर आधारित थी। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक युवक, जिसे पता ही नहीं है कि उसे जीवन में क्या करना है। वह सेना में भर्ती होता है और न सिर्फ युद्ध में हिस्सा लेता है, बल्कि अपनी टीम को विजय भी दिलाता है। ऋतिक रोशन ने लेफ्टिनेंट करण शेरगिल का किरदार बखूबी निभाया है। हालांकि फिल्म की कहानी काल्पनिक थी, लेकिन फिर भी लोगों का दिल जीतने में कामयाब रही। फिल्म के निर्देशक थे फरहान अख्तर और ऋतिक के अलावा प्रीति जिंटा, अमिताभ बच्चन, ओम पुरी और बमन ईरानी मुख्य भूमिकाओं में थे।

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रंग दे बसंती (2006)
'रंग दे बसंती' को अगर आंखें खोलने वाली और लोगों के विश्वास की फिल्म कहा जाए तो गलत नहीं होगा, जहां विद्रोह की भावना समय और उम्र से परे हो जाती है। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और उनके सहयोगियों की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई पर फिल्म बनाने के लिए एक फिरंगी युवा फिल्म निर्माता सू भारत आती है, लेकिन पैसों की कमी की वजह से वह अपनी फिल्म में काम करने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिर्टी के कुछ छात्रों को चुनती है। ये युवा आज के युवाओं जैसे ही हैं, आत्मकेंद्रित और मस्ती करने वाले, जिनके लिए देशभक्ति और बदलाव लाने जैसी बातें किताबों में ही होती हैं। फिल्म बेहतरीन है और युवाओं को भी काफी पसंद आई। फिल्म में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जो इन युवकों को सिस्टम के खिलाफ लड़ने को मजबूर कर देती हैं। फिल्म के निर्देशक हैं राकेश ओमप्रकाश मेहरा और मुख्य कलाकार हैं आमिर खान, सोहा अली खान, कुणाल कपूर, आर माधवन, सिद्धार्थ नारायण, शरमन जोशी, अतुल कुलकर्णी और ब्रिटिश एक्ट्रेस एलिस पैट्टन।