फिल्मी गीतों में ड्रग्स का प्रचार करने वाले बोलों के इस्तेमाल पर नाराजगी जताते हुए मशहूर गायक सुखविंदर सिंह ने गुरुवार को इस सिलसिले में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की भूमिका पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब इस तरह की शब्दावली वाले गाने सामने आते हैं, तब सेंसर बोर्ड कहां चला जाता है।
निजी यात्रा पर इंदौर आए सुखविंदर ने अनौपचारिक बातचीत में संवाददाताओं से कहा, 'अब फिल्मी गीतों में शराब के साथ दूसरे नशों से जुड़े शब्दों का भी इस्तेमाल किया जाता है। गानों में ड्रग्स का प्रचार किया जाता है, जबकि होना यह चाहिये कि ड्रग्स की बुराई को रोकने के लिए गीत बनाए जाएं।'
43 वर्षीय गायक ने कहा, 'अफसोस की बात यह है कि जब ड्रग्स का प्रचार करने वाले बोलों के गाने सामने आते हैं, तो सेंसर बोर्ड कहां चला जाता है। मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने अच्छी बात कही है कि एक सेंसर बोर्ड गानों के लिए भी होना चाहिए।'
सुखविंदर ने संगीत की दुनिया के बदलते परिदृश्य पर कहा, 'इंटरनेट पर डिजिटल फॉर्मेट में संगीत की प्रस्तुति की सुविधा के चलते आज किसी भी अच्छे गायक को अपनी आवाज आम लोगों तक पहुंचाने के लिए किसी संगीत कम्पनी का मोहताज होने की जरूरत नहीं है। अब कोई भी गायक अपने गीत को इंटरनेट के जरिये जनता तक पहुंचा सकता है।'
मणिरत्नम की फिल्म 'दिल से' (1998) के गीत 'छैंया-छैंया' से बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने वाले गायक ने एक सवाल पर कहा कि मौजूदा वक्त में भारत के शास्त्रीय संगीत को आकर्षक तरीके से पेश करने की जरूरत है।
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