फिल्म 'क्रेज़ी कुक्कड़ फैमिली' की कहानी है, एक ऐसे परिवार की, जिसके चार बच्चे दुआ में लगे हैं, अपने कोमा में गए पिता की जल्द से जल्द मौत के लिए ताकि इन्हें जल्दी पिता की जायदाद मिल जाए।
यह फिल्म प्रकाश झा प्रोडक्शन में बानी है। हमेशा सामाजिक मुद्दों को उजागर करने वाले प्रकाश झा ने पहली बार कॉमेडी की तरफ रुख किया, एक संदेश के साथ कि आज के बच्चों में मां-बाप के लिए प्यार और इज्जत नहीं, बल्कि उनकी दौलत से प्यार है
आइडिया या विषय अच्छा था, मगर यह सिर्फ पेपर तक ही रह गया। परदे पर यह कहानी बहुत ही कमज़ोर दिखी। हर चीज़ को जबरदस्ती खींचा गया है। अतरंगी किरदार और उनकी अतरंगी हरकतें, बिना मतलब के डाली गईं। कभी फिल्म में समलैंगिक संबंध आ जाता है तो कभी घर का दामाद औरत के कपड़े पहनकर अपना गुस्सा निकालता है। यानी बेरी परिवार के चार बच्चे और चार के चार खराब।
फिल्म 'क्रेजी कुक्कड़ फैमिली' को कॉमेडी बताकर प्रोमोट किया गया, मगर मुश्किल से दो या तीन जगह हंसी आती है। हां, फ़िल्म के अभिनेताओं का अभिनय अच्छा है, जो काम उन्हें सौंपा गया है, उस पर वह खरे उतरे हैं। फिर चाहे शिल्पा शुक्ला हों या गीतकार से एक्टर बने स्वानंद किरकिरे।
मेरी नजर में यह एक कमजोर फिल्म है, जिसमें कोई भी फ्रेशनेस नहीं है और न ही यह फिल्म मनोरंजन देती है इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी तरफ से 1.5 स्टार।
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