मुंबई:
'राऊडी राठौड़' की बॉक्स ऑफिस सफलता के बाद अक्षय कुमार और सोनाक्षी सिन्हा की एलियन-कॉमेडी फिल्म 'जोकर' बड़े पर्दे पर आई है। इसका निर्देशन 'तीसमार खां' के डायरेक्टर शिरीष कुंदर ने किया है।
'जोकर' ऐसे साइंटिस्ट अक्षय कुमार पर है, जो दूसरे ग्रह के प्राणियों से संपर्क करने में लगा है। यह साइंटिस्ट अपने बीमार पिता से मिलने भारत के पगलापुर गांव लौटता है। पागलों से भरा यह गांव देश के नक्शे पर ही नहीं है और न ही यहां बिजली और पानी है, लेकिन मैं हैरान हूं कि यहां के सारे पागल आत्मनिर्भर हैं।
इस गांव को पहचान दिलाने के लिए यह साइंटिस्ट तरबूज, खरबूजे, कद्दू, करेले, केले के पत्तों और रंग-बिरंगे बल्ब लेता है और दो-तीन पागलों के हाथ-पैर पर फिट करके उन्हें एलियन का रूप दे देता है। फिर खेतों में कटाई-छटाई करवाता है. ताकि लगे कि यहां एलियन्स अपनी उड़नतश्तरी का निशान छोड़ गए। फिर क्या...दुनिया भर का मीडिया पागलपुर आ जाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति इसे पृथ्वी पर एलियन्स का अटैक घोषित कर देते हैं। एफबीआई और आर्मी भेज दी जाती है, जो बस तमाशबीन की तरह एलियन्स का सर्कस देखते रहते हैं। इनमें से एक पागल अजीब भाषा बोलता है और इसी भाषा से वह एलियन्स से संपर्क कर लेता है। ध्यान रहे…साइंटिस्ट एलियन्स से संपर्क नहीं कर पाया था। इस पागल और एलियन्स की भाषा भी एक ही है।
फिल्म 'तेरे बिन लादेन' की तरह हम ये सारी ज्यादतियां बर्दाश्त कर लेते, काश कि फिल्म में अच्छी कॉमेडी होती। इमोशन्स, एक्शन, थ्रिल, सब 'जोकर' से गायब हैं। सोनाक्षी सिन्हा और मिनिषा लांबा सिर्फ शो-पीस बनकर रह गईं। अक्षय ने भी बेहद कमजोर स्क्रिप्ट के आगे घुटने टेक दिए, लेकिन सबसे ज्यादा बर्बाद किया गया श्रेयस तलपडे के टैलेंट को।
'जोकर' डायरेक्टर शिरीष कुंदर की ही फिल्म 'तीसमार खां' से भी खराब है। अगर बच्चों के लिहाज से भी यह फिल्म देखी जाए, तो फिर इसमें चित्रांगदा सिंह का आइटम नंबर क्यों डाला गया। वैसे फिल्म में देखने लायक भी बस यही एक आइटम नंबर है, जिसमें चित्रांगदा ने जान डाल दी और इसीलिए 'जोकर' को हमारी ओर से सिर्फ 1 स्टार।
'जोकर' ऐसे साइंटिस्ट अक्षय कुमार पर है, जो दूसरे ग्रह के प्राणियों से संपर्क करने में लगा है। यह साइंटिस्ट अपने बीमार पिता से मिलने भारत के पगलापुर गांव लौटता है। पागलों से भरा यह गांव देश के नक्शे पर ही नहीं है और न ही यहां बिजली और पानी है, लेकिन मैं हैरान हूं कि यहां के सारे पागल आत्मनिर्भर हैं।
इस गांव को पहचान दिलाने के लिए यह साइंटिस्ट तरबूज, खरबूजे, कद्दू, करेले, केले के पत्तों और रंग-बिरंगे बल्ब लेता है और दो-तीन पागलों के हाथ-पैर पर फिट करके उन्हें एलियन का रूप दे देता है। फिर खेतों में कटाई-छटाई करवाता है. ताकि लगे कि यहां एलियन्स अपनी उड़नतश्तरी का निशान छोड़ गए। फिर क्या...दुनिया भर का मीडिया पागलपुर आ जाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति इसे पृथ्वी पर एलियन्स का अटैक घोषित कर देते हैं। एफबीआई और आर्मी भेज दी जाती है, जो बस तमाशबीन की तरह एलियन्स का सर्कस देखते रहते हैं। इनमें से एक पागल अजीब भाषा बोलता है और इसी भाषा से वह एलियन्स से संपर्क कर लेता है। ध्यान रहे…साइंटिस्ट एलियन्स से संपर्क नहीं कर पाया था। इस पागल और एलियन्स की भाषा भी एक ही है।
फिल्म 'तेरे बिन लादेन' की तरह हम ये सारी ज्यादतियां बर्दाश्त कर लेते, काश कि फिल्म में अच्छी कॉमेडी होती। इमोशन्स, एक्शन, थ्रिल, सब 'जोकर' से गायब हैं। सोनाक्षी सिन्हा और मिनिषा लांबा सिर्फ शो-पीस बनकर रह गईं। अक्षय ने भी बेहद कमजोर स्क्रिप्ट के आगे घुटने टेक दिए, लेकिन सबसे ज्यादा बर्बाद किया गया श्रेयस तलपडे के टैलेंट को।
'जोकर' डायरेक्टर शिरीष कुंदर की ही फिल्म 'तीसमार खां' से भी खराब है। अगर बच्चों के लिहाज से भी यह फिल्म देखी जाए, तो फिर इसमें चित्रांगदा सिंह का आइटम नंबर क्यों डाला गया। वैसे फिल्म में देखने लायक भी बस यही एक आइटम नंबर है, जिसमें चित्रांगदा ने जान डाल दी और इसीलिए 'जोकर' को हमारी ओर से सिर्फ 1 स्टार।
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