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यह फिल्म मन्या सुर्वे और उसका एनकाउंटर करने वाले पुलिस ऑफ़िसर इसाक बगवान की है, जिसे बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है।फिल्म में तड़कते-भड़कते गाने और बेहतरीन डायलॉग्स हैं।
हालांकि यह फ़िल्म आधारित है हुसैन ज़ैदी की किताब 'डोंगरी टू दुबई' पर जिसमें 70 के दशक के आख़री दौर और 80 के दशक की शुरुआत के गैंग्स और गैंग्स्टर्स का ज़िक्र है। फ़िल्म में यह बताया गया है कि मन्या सुर्वे बहुत दिलेर और ताक़तवर था और उसका एनकाउंटर मुंबई का पहला एनकाउंटर था।
मगर कुछ वरिष्ठ पत्रकारों के मुताबिक़ मन्या एक छोटा-मोटा अपराधी था, जो बहुत ताक़तवर नहीं था और मुंबई का पहला एनकाउंटर भी मन्या का नहीं, बल्कि 1980 में लुविस फर्नांडिस का हुआ था।
जो भी हो, हम गैंग्स और गैंग्स्टर्स की सच्चाई पर नहीं, बल्कि फिल्म पर अगर बात करें, तो यह फिल्म मन्या सुर्वे और उसका एनकाउंटर करने वाले पुलिस ऑफ़िसर इसाक बगवान की है, जिसे बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है। निर्देशक संजय गुप्ता ने कहानी को अच्छे से पर्दे पर उतारा है।
जॉन अब्राहम और अनिल कपूर ने अच्छा अभिनय किया है। मनोज बाजपेयी ने अपने रोल के साथ पूरा इंसाफ़ किया है। तुषार कपूर और सोनू सूद का काम भी अच्छा है। अगर फ़िल्म में गालियों का इस्तेमाल न होता, तो और भी अच्छा होता। कहानी के हिसाब से फ़िल्म थोड़ी लंबी लगती है, लेकिन फ़िल्म एंगेजिंग है। तड़कते-भड़कते गाने हैं और बेहतरीन डायलॉग्स का साथ भी मिला है, इसलिए 'शूटआउट एट वडाला' के लिए मेरी रेटिंग है 3.5 स्टार...
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