प्रतीकात्मक तस्वीर
मुंबई:
'प्यार का पंचनामा 2' जो 2011 में आई 'प्यार का पंचनामा' की सीक्वल है, वो रिलीज हो चुकी है। फ़िल्म की स्टार कास्ट काफ़ी हद तक बदली हुई है। पिछली फ़िल्म की तरह यहां भी तीन दोस्त हैं अंशुल (कार्तिक आर्यन), सिद्धार्थ (सनी सिंह) और तरुण (ओंकार कपूर)। ये तीनों पढ़े लिखे हैं।
अच्छी नौकरी करते हैं और एकसाथ आलीशान फ्लैट में रहते हैं। इनकी जिंदगी में रुचिका (नुशरत भरुचा), सुप्रिया (सोनाली सहगल) और कुसुम (इशिता शर्मा) नाम की लड़कियां आती हैं और इसके बाद इनकी अच्छी खासी जिंदगी दूभर हो जाती है। ये फ़िल्म कॉमेडी फ़िल्मों के दायरे में आती है।
फ़िल्म में कई जगह आपको हंसी आएगी पर इसकी ख़ामी है कि कहानी में कहीं भी उत्साह भरने वाला मोड़ नहीं आता। कहानी या स्क्रीनप्ले में ज़रूरी उतार-चढ़ाव की कमी है। 2011 की रोमांटिक कॉमेडी 'प्यार का पंचनामा' बड़ी कामयाब हुई थी। फ़िल्म में पुरुषों के दृष्टिकोण से प्यार को बड़े आक्रमक अंदाज़ में दिखाने की कोशिश हुई थी।
ये आंदाज़ और घटनाएं उस वक्त तो नए और मज़ेदार थे, पर 4 साल बाद भी 'प्यार का पंचनामा 2' में किरदारों के सोचने में कोई बदलाव नहीं दिखा। पिछली फ़िल्म की तर्ज पर इसमें भी एक लंबा मोनोलॉग है जिसमें कार्तिक आर्यन जमकर लड़कियों को कोसते हैं और सारी मुसीबत की जड़ उन्हें ही बताते हैं।
किसी एक्टर के लिए ये निभाना मुश्किल है पर मुझे ये मोनोलॉग सपाट लगा। फ़िल्म में जो दिखाया गया है उससे हो सकता है कई लोग इत्तेफ़ाक ना रखें और उन्हें फ़िल्म पसंद ना आए, पर वहीं हो सकता है आज की युवा पीढ़ी इस कहानी से जुड़ पाए। फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है इसका पुराने ढर्रे पर चलना।
फ़िल्म के गाने दिलचस्प नहीं। फ़िल्म के कई सीन्स और कई घटनाएं आपके गले नहीं उतरेंगे। हालांकि कई जगह आपको फ़िल्म हंसा सकती है। अभिनय सभी का अच्छा है। चीकू का किरदार अच्छा है पर कहीं कहीं शोर मचाता है।
ओंकार कपूर फ़िल्म में ठीक हैं पर शायद उनके क़िरदार का चयन ग़लत था। अगर गानों को नज़रअंदाज़ कर दें तो स्क्रीनप्ले कसा हुआ है। वैसे आख़िरी फ़ैसला फ़िल्म देखकर आप खुद लें। विषय अगर आपको मज़ाकिया लगता है तो हंसी शायद आ सकती है और युवा पीढ़ी शायद विषय और कहानी से जुड़ पाए।
फ़िल्म को 2.5 स्टार्स
अच्छी नौकरी करते हैं और एकसाथ आलीशान फ्लैट में रहते हैं। इनकी जिंदगी में रुचिका (नुशरत भरुचा), सुप्रिया (सोनाली सहगल) और कुसुम (इशिता शर्मा) नाम की लड़कियां आती हैं और इसके बाद इनकी अच्छी खासी जिंदगी दूभर हो जाती है। ये फ़िल्म कॉमेडी फ़िल्मों के दायरे में आती है।
फ़िल्म में कई जगह आपको हंसी आएगी पर इसकी ख़ामी है कि कहानी में कहीं भी उत्साह भरने वाला मोड़ नहीं आता। कहानी या स्क्रीनप्ले में ज़रूरी उतार-चढ़ाव की कमी है। 2011 की रोमांटिक कॉमेडी 'प्यार का पंचनामा' बड़ी कामयाब हुई थी। फ़िल्म में पुरुषों के दृष्टिकोण से प्यार को बड़े आक्रमक अंदाज़ में दिखाने की कोशिश हुई थी।
ये आंदाज़ और घटनाएं उस वक्त तो नए और मज़ेदार थे, पर 4 साल बाद भी 'प्यार का पंचनामा 2' में किरदारों के सोचने में कोई बदलाव नहीं दिखा। पिछली फ़िल्म की तर्ज पर इसमें भी एक लंबा मोनोलॉग है जिसमें कार्तिक आर्यन जमकर लड़कियों को कोसते हैं और सारी मुसीबत की जड़ उन्हें ही बताते हैं।
किसी एक्टर के लिए ये निभाना मुश्किल है पर मुझे ये मोनोलॉग सपाट लगा। फ़िल्म में जो दिखाया गया है उससे हो सकता है कई लोग इत्तेफ़ाक ना रखें और उन्हें फ़िल्म पसंद ना आए, पर वहीं हो सकता है आज की युवा पीढ़ी इस कहानी से जुड़ पाए। फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है इसका पुराने ढर्रे पर चलना।
फ़िल्म के गाने दिलचस्प नहीं। फ़िल्म के कई सीन्स और कई घटनाएं आपके गले नहीं उतरेंगे। हालांकि कई जगह आपको फ़िल्म हंसा सकती है। अभिनय सभी का अच्छा है। चीकू का किरदार अच्छा है पर कहीं कहीं शोर मचाता है।
ओंकार कपूर फ़िल्म में ठीक हैं पर शायद उनके क़िरदार का चयन ग़लत था। अगर गानों को नज़रअंदाज़ कर दें तो स्क्रीनप्ले कसा हुआ है। वैसे आख़िरी फ़ैसला फ़िल्म देखकर आप खुद लें। विषय अगर आपको मज़ाकिया लगता है तो हंसी शायद आ सकती है और युवा पीढ़ी शायद विषय और कहानी से जुड़ पाए।
फ़िल्म को 2.5 स्टार्स
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