आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई 'जॉली एलएलबी 2'.
नई दिल्ली:
इस शुक्रवार को सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म 'जॉली एलएलबी 2' रिलीज हुई, जो 2013 में बनी 'जॉली एलएलबी' का सीक्वेल है. लेकिन इसे सीक्वेल समझ कर जाने की भूल बिलकुल न करें, क्योंकि पिछली कहानी से इस फिल्म की कहानी का कोई लेना देना नहीं है. यहां कहानी भी अलग है और कलाकार भी, बस टाइटल 'जॉली एलएलबी 2' है. दरअसल पहली फिल्म की तरह ये फिल्म भी एक कोर्टरूम ड्रामा है. साथ ही इसमें सिस्टम और कानून व्यवस्था पर एक तंज है. 'जॉली एलएलबी 2' में जॉली के किरदार में हैं अक्षय कुमार, उनकी पत्नी यानी पुष्पा का किरदार निभाया है हुमा कुरैशी ने और वरिष्ठ वकील के रोल में अन्नू कपूर हैं. फिल्म में जज के किरदार में पिछली फिल्म की तरह ही एक बार फिर सौरभ शुक्ला नजर आएंगे. इन सभी के अलावा अलग-अलग किरदारों में कुमुद मिश्रा, मानव कौल, इनामुल हक और सयानी गुप्ता भी इस फिल्म में आपको नजर आएंगे.
फिल्म की कहानी में जॉली एक वकील है जिसके पिता लखनऊ के एक कोर्ट में मुंशी थे और जॉली एक नामी वकील रिज़वी साहब का सहायक है. उसे कोई भी काबिल वकील नहीं समझता. ऐसे में जॉली का मानना है कि वो कामयाब तभी बन पाएगा जब उसके पास अपना चेंबर हो. लेकिन चेंबर पाने के लिए उसे लाखों की मोटी रकम देनी है जिसके लिए जॉली हर वक्त कोशिश करता है. इसी चेंबर की लालच में जॉली एक ऐसा काम कर बैठता है जिसके कारण उसे और और उसके परिवार को शर्मिंदा होना पड़ता है. इसी के बाद अपनी इज्जत वापस पाने और अपनी गलती सुधारने के लिए वो फैसला लेता है कि अपनी काबीलियत साबित करेगा. इसी जोश में वो एक ऐसे केस को लड़ने के लिए मैदान में कूद पड़ता है जिसकी गुत्थी आप सिनेमाघरों में सुलझते देखिएगा.
अब आपको बताते हैं रिव्यू की अदालत में 'जॉली एलएलबी 2' कैसे उतरती है. सबसे पहले फ़िल्म की खामियां.
'जॉली एलएलबी 1' और इस फिल्म के प्रोमो देखने के बाद मुझे और शायद लोगों को भी इससे कॉमेडी की उम्मीद थी जिसपर ये फिल्म खरी नहीं उतरती. जिस सुर पर जॉली का किरदार शुरू होता है थोड़ी देर के ही बाद वो सुर बिगड़ जाता है. तेज तर्रार, जुगाड़ और बेबाक जॉली कुछ देर बाद ही फिल्म में गुम हो जाता है. फिल्म में हल्के-फुल्के पंच, कहीं डायलॉग्स तो कहीं इशारों इशारों में आपको नजर आएंगे.
फिल्म की अदालत, वकील या फिर किरदार काफी वास्तविक लगते हैं पर फिल्म के कुछ सीन वास्तवकिता से दूर दिखते हैं. मसलन कोर्ट में एक धरने का सीन या फिर जज और वकील के बीच निजि बातों को लेकर नोक-झोंक. फिल्मांकन-आजादी जरूरी है पर इस फिल्म में ये फिट बैठता नजर नहीं आया. वहीं हुमा के किरदार को फिल्म में कुछ खास करने के लिए नहीं था. साथ ही उन्हें अपने डांस मूव्स पर भी शायद काम करने की दरदार है क्योंकि कई जगह वो डांस करते वक्त असहज सी दिखीं.
तो ये थीं फिल्म की खामियां और अब बात खूबियों की. 'जॉली एलएलबी 2' में भले ही कॉमेडी कम हो पर ये आपको बांधे रखेगी जिसकी वजह है इसकी कसी हुई स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले. इसके अलावा फिल्म में अक्षय कुमार पूरी ईमानदारी से अपने किरदार को अंजाम देते हैं. फिल्म में हंसी का तड़का लगाने में सौरभ शुक्ला का बहुत बड़ा हाथ है और पूरी फिल्म में सौरभ ही हैं जो अपने किरदार से दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं. अन्नू कपूर और कुमुद मिश्रा अपने किरदारों से फिल्म को और पुख़्ता करते हैं. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी फिल्म को रियल बनाती है और फिल्म के तंज को दर्शकों तक पहुंचाती है. फिल्म का संगीत अच्छा है. गाना 'गो पागल' पहले ही हिट हो चुका है वहीं 'बावरा मन' सभी की ज़ुबान पर चढ़ रहा है.
तो कुल मिलाकर फिल्म के पक्ष और उसके खिलाफ मेरी ओर से पैरवी हो चुकी है पर फिल्म का फैसला आप दर्शकों के हाथ में है. मेरी ओर से इस फिल्म को मिलते हैं 3.5 स्टार्स.
फिल्म की कहानी में जॉली एक वकील है जिसके पिता लखनऊ के एक कोर्ट में मुंशी थे और जॉली एक नामी वकील रिज़वी साहब का सहायक है. उसे कोई भी काबिल वकील नहीं समझता. ऐसे में जॉली का मानना है कि वो कामयाब तभी बन पाएगा जब उसके पास अपना चेंबर हो. लेकिन चेंबर पाने के लिए उसे लाखों की मोटी रकम देनी है जिसके लिए जॉली हर वक्त कोशिश करता है. इसी चेंबर की लालच में जॉली एक ऐसा काम कर बैठता है जिसके कारण उसे और और उसके परिवार को शर्मिंदा होना पड़ता है. इसी के बाद अपनी इज्जत वापस पाने और अपनी गलती सुधारने के लिए वो फैसला लेता है कि अपनी काबीलियत साबित करेगा. इसी जोश में वो एक ऐसे केस को लड़ने के लिए मैदान में कूद पड़ता है जिसकी गुत्थी आप सिनेमाघरों में सुलझते देखिएगा.
अब आपको बताते हैं रिव्यू की अदालत में 'जॉली एलएलबी 2' कैसे उतरती है. सबसे पहले फ़िल्म की खामियां.
'जॉली एलएलबी 1' और इस फिल्म के प्रोमो देखने के बाद मुझे और शायद लोगों को भी इससे कॉमेडी की उम्मीद थी जिसपर ये फिल्म खरी नहीं उतरती. जिस सुर पर जॉली का किरदार शुरू होता है थोड़ी देर के ही बाद वो सुर बिगड़ जाता है. तेज तर्रार, जुगाड़ और बेबाक जॉली कुछ देर बाद ही फिल्म में गुम हो जाता है. फिल्म में हल्के-फुल्के पंच, कहीं डायलॉग्स तो कहीं इशारों इशारों में आपको नजर आएंगे.
फिल्म की अदालत, वकील या फिर किरदार काफी वास्तविक लगते हैं पर फिल्म के कुछ सीन वास्तवकिता से दूर दिखते हैं. मसलन कोर्ट में एक धरने का सीन या फिर जज और वकील के बीच निजि बातों को लेकर नोक-झोंक. फिल्मांकन-आजादी जरूरी है पर इस फिल्म में ये फिट बैठता नजर नहीं आया. वहीं हुमा के किरदार को फिल्म में कुछ खास करने के लिए नहीं था. साथ ही उन्हें अपने डांस मूव्स पर भी शायद काम करने की दरदार है क्योंकि कई जगह वो डांस करते वक्त असहज सी दिखीं.
तो ये थीं फिल्म की खामियां और अब बात खूबियों की. 'जॉली एलएलबी 2' में भले ही कॉमेडी कम हो पर ये आपको बांधे रखेगी जिसकी वजह है इसकी कसी हुई स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले. इसके अलावा फिल्म में अक्षय कुमार पूरी ईमानदारी से अपने किरदार को अंजाम देते हैं. फिल्म में हंसी का तड़का लगाने में सौरभ शुक्ला का बहुत बड़ा हाथ है और पूरी फिल्म में सौरभ ही हैं जो अपने किरदार से दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं. अन्नू कपूर और कुमुद मिश्रा अपने किरदारों से फिल्म को और पुख़्ता करते हैं. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी फिल्म को रियल बनाती है और फिल्म के तंज को दर्शकों तक पहुंचाती है. फिल्म का संगीत अच्छा है. गाना 'गो पागल' पहले ही हिट हो चुका है वहीं 'बावरा मन' सभी की ज़ुबान पर चढ़ रहा है.
तो कुल मिलाकर फिल्म के पक्ष और उसके खिलाफ मेरी ओर से पैरवी हो चुकी है पर फिल्म का फैसला आप दर्शकों के हाथ में है. मेरी ओर से इस फिल्म को मिलते हैं 3.5 स्टार्स.
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