New Delhi:
'जोकोमॉन' कुणाल नाम के अनाथ बच्चे पर है जिसे रास्ते से हटाकर उसके बदमाश चाचा और चाची लाखों की ज़ायदाद हड़पना चाहते हैं। जैसे-तैसे ये बच्चा बच जाता है और उसकी मुलाकात हो जाती है एक साइंटिस्ट से। चाचा को सबक सिखाने के लिए और गांव को अंधविश्वास से मुक्त कराने के लिए कुणाल और साइंटिस्ट एक हो जाते हैं। टेकनोलॉजी के ज़रिए साइंटिस्ट कुणाल को ऐसी ताकत दे देता है जिससे वह सुपरहीरो वाले हर कारनामे कर सकता है। गांव वाले इसे भूत का साया समझते हैं। लेकिन जिस अंधविश्वास को दूर करने की बात डायरेक्टर सत्यजीत भटकल कर रहे हैं वही फिल्म के एंड तक ये खुलासा नहीं करते कि सुपरहीरो के जादुई स्टंट्स के पीछे साइंस के कौन-से कारनामे हैं। फर्स्ट हाफ डल है इंटरवेल होते-होते कुणाल सुपरहीरो बनता है। उम्मीद जगती है कि अब फिल्म में जान आ जाएगी लेकिन ऐसा नहीं होता। मंजरी के होने न होने का कोई मतलब नहीं है। हां ,कई खूबसूरत लोकेशन्स ज़रूर हैं। दरअसल, डायरेक्टर ने एक्शन, इमोशन्स, अंधविश्वास, साइंस और बॉलीवुड गानों की एक भेल बनाई है जो प्राइमरी तक के बच्चे तो खा भी लें लेकिन उससे ऊपरी क्लास के बच्चे लॉजिक मांगेंगे और 'जोकोमॉन' ये कहां से लाएगा। बच्चों की फिल्म है इसीलिए उन्हीं के हिसाब से रेटिंग 'जोकोमॉन' को 2 स्टार।
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जोकोमॉन, समीक्षा