मुंबई:
आज रिलीज़ हुई इम्तियाज़ अली निर्देशित 'तमाशा' के साथ रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की 'कमाल की जोड़ी' एक बार फिर पर्दे पर आ गई है... रणबीर-दीपिका के अलावा जावेद शेख के अभिनय से सजी इस फिल्म का दर्शकों को बेसब्री से इंतज़ार था...
फिल्म में रणबीर का किरदार 'वेद' घर-परिवार के दबाव में खुद को खोकर दुनिया की रेस में दौड़ता रहता है और फिर कुछ ऐसा होता है, जहां से उसकी ज़िन्दगी बदलने लगती है... अगर मैं कहूं कि यह फिल्म राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' की तरह रची गई, और आमिर खान की 'तारे ज़मीं पर' के विषय से कुछ आगे बढ़ती है, तो शायद गलत नहीं होगा, लेकिन फिल्म की अपनी कुछ मुश्किलें हैं, खामियां हैं...
फिलॉसॉफिकल फिल्म है 'तमाशा'
'तमाशा' एक फिलॉसॉफिकल फिल्म है, और इसकी कहानी इतनी घुमावदार है कि एक वक्त के बाद जटिल हो जाती है, जो शायद आम दर्शकों को हज़्म न हो पाए... कहानी की नींव फिल्म की शुरुआत में क्रेडिट रोल के वक्त रची गई है, लेकिन यह इतनी लंबी है कि ऊबाऊ हो जाती है... दरअसल, शुरुआत फिल्म के विषय से बिल्कुल हटकर है...
रणबीर ने की ओवर-एक्टिंग
पर्दे पर रणबीर कपूर के बचपन से उसकी जवानी तक का सफर भी ज़रा ऊबाऊ है, और कुल मिलाकर फिल्म के पहले भाग की रफ्तार बेहद धीमी है... कई सीन फिल्म को बेवजह लंबा करते हैं और कहानी को धीमा... कहानी के स्क्रीनप्ले पर ध्यान देने की ज़रूरत थी, क्योंकि एक वक्त के बाद फ्लैशबैक से वापस आकर फिर फ्लैशबैक में जाना दर्शकों को उलझा सकता है... उधर, रणबीर मुझे ज़रा ओवर-एक्टिंग करते भी लगे...
विषय अच्छा, लेकिन पर्दे पर उतारने में नाकाम निर्देशक
ख़ामियों के बाद अब टटोलते हैं फिल्म की खूबियों को... इम्तियाज़ अली ने अच्छा विषय चुना है, लेकिन उसे पर्दे पर उतारने में नाकाम रहे... इंटेलिजेंट फिल्में और इंटेलिजेंट विषयों के लिए दर्शक काफी हैं, लेकिन ज़रूरी है कि ऐसे विषयों को फिल्मकार इंटेलिजेंट और सरल तरीके से ही पर्दे पर लाएं...
गीत अच्छे हैं, दीपिका का अभिनय भी
फिल्म के गाने अच्छे हैं और उनकी लिखाई भी, तो गीतकार इरशाद कामिल और संगीतकार एआर रहमान की तारीफ़ ज़रूरी है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है और बैकग्राउंड स्कोर भी, और साथ ही दीपिका ने एक बार फिर अभिनय में बाज़ी मारी है... रणबीर कपूर के यह कहने पर कि उनकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं, दीपिका का रिएक्शन काबिल-ए-तारीफ है... खैर देखते हैं, 'तमाशा' दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती है या नहीं, बहरहाल, मेरी ओर से फिल्म की रेटिंग है - 2 स्टार
फिल्म में रणबीर का किरदार 'वेद' घर-परिवार के दबाव में खुद को खोकर दुनिया की रेस में दौड़ता रहता है और फिर कुछ ऐसा होता है, जहां से उसकी ज़िन्दगी बदलने लगती है... अगर मैं कहूं कि यह फिल्म राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' की तरह रची गई, और आमिर खान की 'तारे ज़मीं पर' के विषय से कुछ आगे बढ़ती है, तो शायद गलत नहीं होगा, लेकिन फिल्म की अपनी कुछ मुश्किलें हैं, खामियां हैं...
फिलॉसॉफिकल फिल्म है 'तमाशा'
'तमाशा' एक फिलॉसॉफिकल फिल्म है, और इसकी कहानी इतनी घुमावदार है कि एक वक्त के बाद जटिल हो जाती है, जो शायद आम दर्शकों को हज़्म न हो पाए... कहानी की नींव फिल्म की शुरुआत में क्रेडिट रोल के वक्त रची गई है, लेकिन यह इतनी लंबी है कि ऊबाऊ हो जाती है... दरअसल, शुरुआत फिल्म के विषय से बिल्कुल हटकर है...
रणबीर ने की ओवर-एक्टिंग
पर्दे पर रणबीर कपूर के बचपन से उसकी जवानी तक का सफर भी ज़रा ऊबाऊ है, और कुल मिलाकर फिल्म के पहले भाग की रफ्तार बेहद धीमी है... कई सीन फिल्म को बेवजह लंबा करते हैं और कहानी को धीमा... कहानी के स्क्रीनप्ले पर ध्यान देने की ज़रूरत थी, क्योंकि एक वक्त के बाद फ्लैशबैक से वापस आकर फिर फ्लैशबैक में जाना दर्शकों को उलझा सकता है... उधर, रणबीर मुझे ज़रा ओवर-एक्टिंग करते भी लगे...
विषय अच्छा, लेकिन पर्दे पर उतारने में नाकाम निर्देशक
ख़ामियों के बाद अब टटोलते हैं फिल्म की खूबियों को... इम्तियाज़ अली ने अच्छा विषय चुना है, लेकिन उसे पर्दे पर उतारने में नाकाम रहे... इंटेलिजेंट फिल्में और इंटेलिजेंट विषयों के लिए दर्शक काफी हैं, लेकिन ज़रूरी है कि ऐसे विषयों को फिल्मकार इंटेलिजेंट और सरल तरीके से ही पर्दे पर लाएं...
गीत अच्छे हैं, दीपिका का अभिनय भी
फिल्म के गाने अच्छे हैं और उनकी लिखाई भी, तो गीतकार इरशाद कामिल और संगीतकार एआर रहमान की तारीफ़ ज़रूरी है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है और बैकग्राउंड स्कोर भी, और साथ ही दीपिका ने एक बार फिर अभिनय में बाज़ी मारी है... रणबीर कपूर के यह कहने पर कि उनकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं, दीपिका का रिएक्शन काबिल-ए-तारीफ है... खैर देखते हैं, 'तमाशा' दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती है या नहीं, बहरहाल, मेरी ओर से फिल्म की रेटिंग है - 2 स्टार
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