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This Article is From Oct 16, 2015

फ़िल्म रिव्यू : हंसाने की कोशिश में हर एक्‍टर ने की ओवर एक्टिंग, कमजोर पड़ी 'बम्पर ड्रॉ'

फ़िल्म रिव्यू : हंसाने की कोशिश में हर एक्‍टर ने की ओवर एक्टिंग, कमजोर पड़ी 'बम्पर ड्रॉ'
मुंबई: फ़िल्म 'बम्पर ड्रॉ' की कहानी 3 आम लोगों के इर्द गिर्द घूमती है जो अपनी-अपनी घर-गृहस्थ्यिों में परेशान हैं। अचानक इनके हाथ एक ऐसा बूढ़ा व्यक्ति लग जाता है जो घर से भागा हुआ है और उसे घर पहुंचाने वाले को 50 लाख का ईनाम मिलेगा। इस बम्पर ड्रॉ के बारे में जैसे-जैसे लोगों को पता चलता है, वैसे-वैसे हिस्सेदारों की संख्या बढ़ती जाती है।

आम आदमी की जद्दोज़हद, थोड़ा इमोशन और थोड़ी इंसानियत को इस फ़िल्म में दिखाया गया है। साथ ही ये भी दिखाने की कोशिश है की गई है कि कई बार जायदाद भी आपकी दुश्मन बन जाती है। 

निर्देशक इरशाद खान ने फ़िल्म 'बम्पर ड्रॉ' को कॉमेडी बनाने की कोशिश की है, मगर हंसी कम आती है। हालांकि फ़िल्म के कुछ दृश्यों में हंसी आती है। कुछ अच्छे संवाद भी लिखे गए हैं, मगर चित्रपट कमज़ोर पड़ गया। कई सीन ज़बरदस्ती के लंबे कर दिए गए। 

मुझे इस फ़िल्म की कहानी से ज़्यादा ऐतराज़ लाउड एक्टिंग से हुआ। हंसाने की कोशिश में हर किसी ने चिल्लाने का काम किया है या फिर यूं कहें की ओवर एक्टिंग की है। राजपाल यादव बहुत ही बेहतरीन अभिनेता हैं मगर वो भी लाउड एक्टिंग करते नज़र आए। पता नहीं क्यों और कैसे निर्देशक इरशाद खान को इस लाउड एक्टिंग पर हंसी आ रही थी।

हां, फ़िल्म का विषय अच्छा है और क्लाइमेक्स तक कहानी की कड़ियां ठीक से खुलती हैं। इसलिए फ़िल्म 'बम्पर ड्रॉ' के लिए मेरी रेटिंग है 2 स्टार

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