मुंबई:
राइटर-डायरेक्टर कबीर कौशिक की फिल्म 'मैक्सिमम' में सोनू सूद, यानि प्रताप पंडित, मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट है, जबकि नसीरुद्दीन शाह, यानि अरुण इनामदार, एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड के एनकाउंटर एक्सपर्ट हैं...
कागज़ पर इनके डिपार्टमेंट भले ही अलग-अलग हैं, लेकिन फील्ड में कोई फर्क करना मुश्किल हो जाता है, इसीलिए अपने-अपने बॉस के आशीर्वाद से लैस होकर ये दोनों एनकाउंटर स्पेशलिस्ट आपसी वजूद की लड़ाई पर उतर आते हैं, और एक-दूसरे के मुखबिरों को उड़ाना शुरू करते हैं...
क्राइम, अंडरवर्ल्ड, बिल्डर माफिया, बॉलीवुड और पॉलिटिक्स से गुज़रते हुए एनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स की कहानी कहने के लिए कबीर कौशिक ने अच्छी-खासी रिसर्च की है, जो फिल्म में झलकती भी है, लेकिन तेजी से इस्तेमाल की गई पुलिस डिपार्टमेंट की अंदरूनी भाषा आम जनता समझ पाएगी, इसमें थोड़ा संदेह है...
सोनू सूद और नसीरुद्दीन शाह के परफॉरमेंस अच्छे हैं, इंटरवल तक फिल्म दिलचस्प है, लेकिन उसके बाद लगातार एनकाउंटरों के बीच कहानी खो जाती है, और फिल्म ऊबाऊ लगने लगती है...
मुंबई के उत्तर भारतीय नेता के रूप में विनय पाठक के चेहरे पर न चमक है, न एनर्जी... शुरुआत में ईमानदार दिखने वाला पत्रकार अंत में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का खासमखास बन जाता है, और क्लाइमेक्स में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स आमने-सामने आकर खून की होली ऐसे खेलते हैं, जैसे गैंगस्टर हों...
'मैक्सिमम' को लेकर उम्मीदें भी मैक्सिमम थीं, क्योंकि एनकाउंटर के विषय पर ही कबीर कौशिक ने 'सहर' जैसी बेहतरीन फिल्म बनाई थी, लेकिन 'मैक्सिमम' ने निराश किया... इस फिल्म के लिए हमारी रेटिंग है - 2 स्टार...
कागज़ पर इनके डिपार्टमेंट भले ही अलग-अलग हैं, लेकिन फील्ड में कोई फर्क करना मुश्किल हो जाता है, इसीलिए अपने-अपने बॉस के आशीर्वाद से लैस होकर ये दोनों एनकाउंटर स्पेशलिस्ट आपसी वजूद की लड़ाई पर उतर आते हैं, और एक-दूसरे के मुखबिरों को उड़ाना शुरू करते हैं...
क्राइम, अंडरवर्ल्ड, बिल्डर माफिया, बॉलीवुड और पॉलिटिक्स से गुज़रते हुए एनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स की कहानी कहने के लिए कबीर कौशिक ने अच्छी-खासी रिसर्च की है, जो फिल्म में झलकती भी है, लेकिन तेजी से इस्तेमाल की गई पुलिस डिपार्टमेंट की अंदरूनी भाषा आम जनता समझ पाएगी, इसमें थोड़ा संदेह है...
सोनू सूद और नसीरुद्दीन शाह के परफॉरमेंस अच्छे हैं, इंटरवल तक फिल्म दिलचस्प है, लेकिन उसके बाद लगातार एनकाउंटरों के बीच कहानी खो जाती है, और फिल्म ऊबाऊ लगने लगती है...
मुंबई के उत्तर भारतीय नेता के रूप में विनय पाठक के चेहरे पर न चमक है, न एनर्जी... शुरुआत में ईमानदार दिखने वाला पत्रकार अंत में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का खासमखास बन जाता है, और क्लाइमेक्स में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स आमने-सामने आकर खून की होली ऐसे खेलते हैं, जैसे गैंगस्टर हों...
'मैक्सिमम' को लेकर उम्मीदें भी मैक्सिमम थीं, क्योंकि एनकाउंटर के विषय पर ही कबीर कौशिक ने 'सहर' जैसी बेहतरीन फिल्म बनाई थी, लेकिन 'मैक्सिमम' ने निराश किया... इस फिल्म के लिए हमारी रेटिंग है - 2 स्टार...
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