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This Article is From Apr 22, 2011

दमदार है दम मारो दम

New Delhi: 'दम मारो दम' गोवा के ड्रग माफिया पर है जिसे खत्म करने का ज़िम्मा एसीपी विष्णु कामत यानी अभिषेक बच्चन को सौंपा जाता है। लॉरी यानी प्रतीक बब्बर अमेरिका में पढ़ाई की खातिर पैसा जुटाने के चक्कर में ड्रग डीलर्स के चक्कर में फंस जाता है। जोई उर्फ बिपाशा बसु को एयरहोस्टेस बनने की ख्वाहिश ड्रग माफिया के शिकंजे में फंसा देती है। डीजे जोकी यानी राना दगुबत्ती चाहते हुए भी अपनी प्रेमिका बिपाशा की मदद नहीं कर पाते लिहाजा वो भी ड्रग्स के खिलाफ मुहिम में हैं। गोवा में फैले रशियन, साऊथ अफ्रीकन ब्रिटिश और लोकल ड्रग माफिया के उलझे कारोबार का प्लॉट राइटर श्रीधर राघवन ने खूबसूरती से बुना।  अच्छी एडिटिंग के चलते फर्स्ट हाफ में फिल्म कट-टू-कट है। स्टाइलिश अंदाज़ में तेजी से आगे बढ़ती है। पूर्वा नरेश के लिखे छोटे और बोल्ड डायलॉग्स में लाल चींटी का कंटीलापन है जो ड्रामा में इज़ाफा करते हैं। डायरेक्टर रोहन सिप्पी की दम मारो दम में किरदार धीरे-धीरे एंट्री लेते हैं। कभी फ्लैशबैक में जाते हैं और फिर बड़े स्टाइल से वतर्मान में जुड़ जाते हैं लेकिन सेकेंड हाफ में फिल्म ढीली पड़ती है। बिपाशा बसु और राना दगुबत्ती के बीच जिस चमत्कारी केमिस्ट्री और ग्लैमर की उम्मीद थी वो पूरी नहीं हुई। अभिषेक बच्चन की बेहतरीन एक्टिंग, प्रतीक बब्बर को अपनी आवाज़ पर काम करना होगा। 'दम मारो दम' के टाइटल सॉन्ग की तो आत्मा ही मार दी गई है लेकिन फिल्म के फास्ट पेस में ये गाना ठक जाता है। ठांय ठांय और रात बाकी जैसे गीत अच्छे बन पड़े हैं। 'दम मारो दम' में एक्शन है, थ्रिलर है और एक सस्पेंस भी जो एंड तक बरकरार रहता है। यहां ग्लैमर है ड्रग्स और करप्शन के खिलाफ जंग भी है, जो युवाओं को अपील करेगी। फिल्म देखी जा सकती है और इसके लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार।  

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दम मारो दम, रिव्यू, विजय दिनेश विशिष्ठ
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