Mumbai:
'डबल धमाल'... चार जोकर जैसे नौजवानों - अरशद वारसी, जावेद जाफरी, रितेश देशमुख और आशीष चौधरी - की कहानी है... संजय दत्त, यानि कबीर, एक जालसाज है, जो इन चारों को उल्लू बनाकर पैसा लेकर भाग निकला है और ऐशोआराम की ज़िन्दगी जी रहा है। चारों अपने साथ हुई धोखाधड़ी का बदला लेने कबीर के पास पहुंच जाते हैं, और फिर शुरू होता है एक-दूसरे को बेवकूफ बनाने का सिलसिला। डायरेक्टर इंद्रकुमार की 'डबल धमाल' के कैरेक्टर, दरअसल कार्टून फिल्मों के कैरेक्टर की तरह हैं, जो एक-दूसरे का पीछा करते हैं, पकड़कर चांटे लगाते हैं, नाक-मुंह सिकोड़ते हैं, आंखें मींचते हैं, फिल्म स्टार्स की मिमिक्री करते हैं, लेकिन फिर भी हंसा नहीं पाते। फिल्म के बोरिंग फर्स्ट हाफ ने मेरे सब्र का काफी इम्तिहान ले लिया था, सो, जैसे-तैसे सेकंड हाफ देखने की हिम्मत जुटाई, और शुक्र है, यहां डायरेक्टर ने फिल्म थोड़ी-बहुत संभाल ली। गोरिल्ले से लड़ते और गोल्फ खेलते कैरेक्टर्स के कुछ अच्छे कॉमिक सीन हैं। 'पीपली लाइव', 'तारे ज़मीं पर', 'काइट्स' और 'गुज़ारिश' जैसी ढेरों फिल्मों का खूब अच्छे से मज़ाक उड़ाया गया, हालांकि अंत में फिल्म फिर बोरिंग हो गई। मल्लिका शेरावत का स्पेशलाइज़ेशन कुछ और ही तरह की फिल्मों में हैं, इसीलिए एक-दो डांस नंबर करवाकर उन्हें साइडलाइन कर देना अखरता नहीं है, लेकिन अरशद वारसी और जावेद जाफरी को वेस्ट करने पर तरस आता है। सेक्रेटरी के रोल में कंगना से भी बेहतर काम कराया जा सकता था। लड़की के भेष में आशीष चौधरी ज़रा भी नहीं जमते। 'डबल धमाल' माइन्डलेस कॉमेडी है, जिसमें कहानी नाम की कोई चीज़ है ही नहीं... 'डबल धमाल' सीक्वेल है, करीब चार साल पहले रिलीज़ हुई 'धमाल' का, लेकिन इसकी लचर कॉमेडी देखकर कहना पड़ेगा, इसका नाम 'हाफ धमाल' होना चाहिए था... फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 1.5 स्टार...
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